राष्ट्रपति की जीत पर भाजपा का विजय जुलूस: खुशियां मनाइए, जलसा कीजिए, ये उत्सवों की सरकार है…

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24 मिनट पहले

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सही है, उत्सव मनाने चाहिए। खुशियां बांटनी चाहिए। आखिर खुश रहने से ही सेहत अच्छी रहती है। दर्द गायब हो जाता है। पीड़ा पास भी नहीं फटकती। एक आदिवासी महिला देश के सर्वोच्च पद पर चुनी जाए, देशभर के लिए इससे बड़ी खुशी, इससे बड़ा उत्सव और क्या हो सकता है! लेकिन किसी पार्टी के स्तर पर यह सब इस पद पर चयन होने के पहले तक तो ठीक है। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति किसी दल का नहीं होता।

वह तमाम दलीय राजनीति से ऊपर, बहुत ऊपर होता है। अब तक देश में 14 राष्ट्रपति हुए। 15वीं द्रौपदी मुर्मू हैं। उनकी जीत पहले से तय थी। वे जीत भी गईं। लेकिन इस जीत पर भारतीय जनता पार्टी भारी-भरकम जुलूस निकाल कर क्या दिखाना चाहती है? भारत के इतिहास में पहली बार किसी राष्ट्रपति की जीत पर किसी पार्टी ने विजय जुलूस निकाला। इसके कई कारण हैं। पहला- भाजपा यह दिखाना चाहती है कि देश के आदिवासियों, गरीबों का उत्थान करने वाली वह अकेली पार्टी है।

कितने ही विपक्षी भाजपा को मात देने की कितनी ही कोशिश करते रहें, रणनीति के मामले में वे भाजपा से आगे नहीं जा सकते। आखिरकार विपक्षी दलों में फूट पड़ ही जाती है।

कितने ही विपक्षी भाजपा को मात देने की कितनी ही कोशिश करते रहें, रणनीति के मामले में वे भाजपा से आगे नहीं जा सकते। आखिरकार विपक्षी दलों में फूट पड़ ही जाती है।

दूसरा- वह यह दिखाना चाहती है कि विपक्षी एकता का कितना ही दम भरा जाए, कितने ही विपक्षी भाजपा को मात देने की कितनी ही कोशिश करते रहें, रणनीति के मामले में वे भाजपा से आगे नहीं जा सकते। आखिरकार विपक्षी दलों में फूट पड़ ही जाती है।

बहरहाल, भाजपा ने दिल्ली में जंगी विजय जुलूस निकाला। दरअसल, यह उत्सवों का दल है। इसकी सरकार उत्सवों की सरकार है। महंगाई, और अन्य वे मुद्दे जिनसे लोग परेशान हैं, या हो सकते हैं, इन उत्सवों के जरिए उन्हें भुलाने की कोशिश की जाती है। कोशिशें सफल भी हो रही हैं। आखिर उत्सव किसे बुरे लगते हैं भला! किसी ने सही कहा है कि आजादी के बाद के 75 साल में लोगों ने इतनी आत्ममुग्ध सरकार कभी नहीं देखी होगी। भाई लोगों ने मतगणना पूरी होने से पहले ही जलसे शुरू कर दिए थे।

उधर ममता बनर्जी बंगाल में भाजपा के खिलाफ रैली निकालकर यह संदेश दे रही हैं कि भाजपा आए दिन विपक्षी सरकारों को गिरा रही है। यह ठीक नहीं है। छोटे दलों की ऐसी दुर्दशा कभी देखी न सुनी। उन्हीं ममता से यह सवाल भी किया जा सकता है कि फिर राजनीति का क्या मतलब? आप में ताकत हो तो आप भी सरकारें गिराइए! किसने रोका है। … और गिराई नहीं क्या? अटलजी की सरकार से समर्थन वापस लेने वालों में तो आप भी शामिल थीं! तब गठबंधन के धर्म ने आपको नहीं रोका तो अब दूसरों को क्यों रोकने पर तुली हैं?

बनर्जी बंगाल में भाजपा के खिलाफ रैली निकालकर यह संदेश दे रही हैं कि भाजपा आए दिन विपक्षी सरकारों को गिरा रही है। यह ठीक नहीं है।

बनर्जी बंगाल में भाजपा के खिलाफ रैली निकालकर यह संदेश दे रही हैं कि भाजपा आए दिन विपक्षी सरकारों को गिरा रही है। यह ठीक नहीं है।

जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसने तो 65 साल इस देश पर शासन किया,उसे कोई आदिवासी महिला इस पद के लिए क्यों नहीं दिखी? आज मुर्मू के चयन पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस को तब किसने रोक रखा था? बल्कि उसने तो अपनी ही पार्टी के दो राष्ट्रपति प्रत्याशी खड़े किए थे, ये पूरा देश जानता है। कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को और इंदिरा गांधी ने पिछले दरवाजे से निर्दलीय के रूप में वीवी गिरी को मैदान में उतारा था। आखिर कांग्रेस प्रत्याशी की हार हुई थी और वीवी गिरी जीत गए थे।

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