प्रेग्नेंसी में गलत दवा नवजात के लिए खतरनाक: दुनिया के सबसे अमीर इंसान एलन मस्क भी शिकार, 2 साल की उम्र में दिखते हैं लक्षण

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नई दिल्ली14 मिनट पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलन मस्क हमेशा चर्चा में रहते हैं। हाल ही में वह ट्विटर डील कैंसिल करने को लेकर सुर्खियों में हैं। इस मामले में उन पर केस दर्ज हुआ है। लेकिन 2021 में उन्होंने दुनिया के सामने खुलासा किया था कि वह एस्पर्जर सिंड्रोम से जूझे।

यह ऑटिज्म का ही प्रकार है जो एक डेवलपमेंट डिसऑर्डर है। ऐसे बच्चों का दिमाग बहुत तेज होता है, लेकिन वह अपनी ही दुनिया तक सीमित रहते हैं। अगर आपने रितिक रोशन की फिल्म ‘कोई मिल गया’ या रानी मुखर्जी की फिल्म ‘ब्लैक’ देखी होगी तो आप इस बीमारी को आसानी समझ जाएंगे।

सबसे पहले आपको बताते हैं कि कि क्या होता है एस्पर्जर सिंड्रोम

खुद से ही बातें करते रहते हैं

एस्पर्जर सिंड्रोम में बच्चा लोगों से मिलता-जुलता नहीं है। वह खुद से ही बातें करता है। किसी से आंखें नहीं मिलाता। वह लोगों के हाव-भाव नहीं पहचान पाता। न ही अपनी भावनाएं किसी से शेयर करता। वह हमेशा एक ही काम करता रहता है।

ऐसे बच्चों को एक ही विषय में दिलचस्पी रहती है और वह घंटों तक एक ही चीज पर बात कर सकते हैं। एस्पर्जर सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों को चलने या दौड़ने में भी परेशानी होती है।

जेनेटिक होती है यह बीमारी

फरीदाबाद के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर कुणाल बहरानी ने बताया कि एस्पर्जर सिंड्रोम जेनेटिक कारणों से ज्यादा होता है। इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री हो तब भी यह हो सकता है।

अगर किसी के पहले बच्चे को एस्पर्जर सिंड्रोम हो और महिला दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली हो तो उसे भी यह होने के चांस रहते हैं।

डॉक्टर की सलाह के बिना दवा न खाएं

बच्चे की हेल्थ मां की प्रेग्नेंसी पर काफी निर्भर करती है। डॉक्टर कुणाल बहरानी के अनुसार प्रेग्नेंसी में अगर महिला को कोई इंफेक्शन हो जाए या वह डॉक्टर की सलाह के बिना गलत दवा खा लें तब भी बच्चा एस्पर्जर सिंड्रोम का शिकार हो सकता है।

जन्म के वक्त जब बच्चा न रोए या लंबे समय तक लेबर पेन में रहे तो इससे दिमाग में कुछ बदलाव आ जाते हैं जिससे बच्चे में इस सिंड्रोम के लक्षण आने लगते हैं। प्रेग्नेंसी में किसी भी तरह के टेराटोजेनिक ड्रग्स नहीं लेने चाहिए।

गलत दवा भ्रूण को पहुंचा सकती है नुकसान

पटना के कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में गायनाकोलॉजिस्ट डॉक्टर मीना सामंत ने वुमन भास्कर को बताया कि जब महिला गर्भवती होती है तो उन्हें कोई भी दवा खुद से नहीं खानी चाहिए। प्रेग्नेंसी के 8-10 हफ्ते में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। गलत दवा प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण में प्रवेश कर सकती है जो उसे नुकसान पहुंचाती है।

हालांकि गर्भावस्था में यह नहीं पता चल पाता कि बच्चे को कोई दिमाग संबंधी दिक्कत हो सकती है। महिलाओं को समय-समय पर अल्ट्रासाउंड और डॉक्टर से जांच कराते रहना चाहिए।

प्रेग्नेंसी के दौरान इंफेक्शन हो तो तुरंत कराएं इलाज

प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के इंफेक्शन हो सकते हैं जो नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर होते हैं। जैसे टक्सोप्लाज्मा, लिस्टेरिया। यह तमाम इंफेक्शन वायरस, बैक्टीरिया और प्रोटोजुआ के कारण होते हैं। अगर इनका सही समय पर इलाज न हो तो बच्चे को एस्पर्जर सिंड्रोम हो सकता है।

गर्भावस्था से पहले जर्मन मीसल्स (रूबेला) का टीका जरूर लगवाना चाहिए। ये बच्चे को ऑटिज्म से बचाता है।

गर्भावस्था से पहले जर्मन मीसल्स (रूबेला) का टीका जरूर लगवाना चाहिए। ये बच्चे को ऑटिज्म से बचाता है।

बिहेवियरल थेरेपी और दवा से होता है इलाज

अगर बच्चे को एस्पर्जर सिंड्रोम है तो पेरेंट्स 1 से 2 साल के बीच ही उसके लक्षण पहचान सकते हैं। इस तरह के बच्चों को बात करने में प्रॉब्लम होती है लेकिन उनकी स्पीच ठीक होती है। वह अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते।

मुस्कुराते नहीं हैं और न ही किसी से आंखें मिला पाते। अगर इस तरह के लक्षण हो तो तुरंत बच्चे को न्यूरोलॉजिस्ट के पास ले जाना चाहिए। सही समय रहते दवा और बिहेवियरल थेरेपी शुरू करनी चाहिए। ऐसा कर इस बीमारी को पूरी से मात दी जा सकती है। लेकिन समय पर इलाज न हो तो यह ठीक होना मुश्किल है।

ऑटिज्म के 4 प्रकार होते हैं
ऑटिज्म 4 तरह के होते हैं:ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD), एस्पर्जर सिंड्रोम, हैलर्स सिंड्रोम और पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) में बच्चा सामाजिक नहीं होता। वह शब्द भी साफ नहीं बोलता। इसमें लक्षण 3 साल की उम्र से पहले दिखने लगते हैं लेकिन इलाज 3 साल के बाद शुरू किया जाता है।

हैलर्स सिंड्रोम में बच्चे का विकास 6 साल की उम्र के बाद प्रभावित होने लगता है। उनकी सीखने की क्षमता कम होने लगती है। जो सीखा होता है वह भूलने लगते हैं। मिर्गी के दौरे आते हैं। पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर को एटिपिकल ऑटिज्म भी कहा जाता है। इसमें बच्चा देर से चीजें सीखता है। वह असामाजिक होता है। चीजों को बार-बार दोहराता है।

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