Today’s Word: Selected excerpts from the epic Saket composed by Bharatkhand and Maithilisharan Gupta

                
                                                             
                            'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- भरतखंड, जिसका अर्थ है- भारतवर्ष। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त रचित महाकाव्य साकेत से चुनिंदा अंश- 
                                                                     
                            

आंजनेय को अधिक कृती उन कार्त्तिकेय से भी लेखो,
माताएँ ही माताएँ हैं जिसके लिए जहाँ देखो।
पर विलम्ब से हानि, सुनो मैं हनूमान, मारुति, प्रभुदास,
संजीवनी-हेतु जाता हूँ योग-सिद्धि से उड़ कैलास।"
"प्रस्तुत है वह यहीं, उसी से प्रियवर, हुआ तुम्हारा त्राण।"
"आहा! मेरे साथ बचाये तुमने लक्ष्मण के भी प्राण।
थोड़े में वृतान्त सुनो अब खर-दूषण-संहारी का,
तुम्हें विदित ही है वह विक्रम उन दण्डक वन-चारी का।

हरी हरी वनधरा रुधिर से लाल हुई हलकी होकर,
शूर्पणखा लंका में पहुँची, रावण से बोली रोकर--
'देखो, दो तापस मनुजों ने कैसी गति की है मेरी,
उनके साथ एक रमणी है, रति भी हो जिसकी चेरी।
भरतखण्ड के दण्डक वन में वे दो धन्वी रहते हैं,
स्वयं पुनीत--नहीं, पावन बन, हमें पतित जन कहते हैं।'

शूर्पणखा की बातें सुन कर क्षुब्ध हुआ रावण मानी,
वैर-शुद्धि के मिष उस खल ने सीता हरने की ठानी।
तब मारीच निशाचर से वह पहले कपट मंत्र करके,
उसे साथ ले दण्डक वन में आया साधु-वेश धरके।
हेम-हरिण बन गया वहाँ पर आकर मायावी मारीच,
श्रीसीता के सम्मुख जाकर लगा लुभाने उनको नीच।

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