railway booking clerk lost job for six rupees

  • रेलवे विजिलेंस ने 30 अगस्त, 1997 को बुकिंग क्लर्क को पकड़ा था, 31 जनवरी, 2002 को उसे बर्खास्त कर दिया गया था
  • कुर्ला से आरा तक के लिए 214 रुपये के टिकट पर 500 रुपये में 286 रुपये की जगह छह रुपये कम 280 रुपये ही लौटाया 

Mumbai. अवैध वसूली के आरोप में बर्खास्त किये गये रेलवे बुकिंग क्लर्क (railway booking clerk) की अंतिम आस भी तब खत्म हो गयी जब बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court)  ने उसकी मंशा पर सवाल उठाते हुए किसी तरह ही राहत देने से इनकार कर दिया. मामला कुर्ला टर्मिनस में ऑन डयूटी बुकिंग कर्मी राजेश वर्मा से जुड़ा है. जिन्हें छह रुपये अवैध वसूली के आरोप में रेलवे ने 31 जनवरी, 2002 को उसे बर्खास्त कर दिया गया. रेलवे विजिलेंस ने जाल बिछाकर उसे 30 अगस्त 1997 को पकड़ा था.

बर्खास्तगी आदेश को दी गयी चुनौती पर बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस नितिन जामदार एवं जस्टिस एसवी मारने की बेंच में सुनवाई हुई. इसमें क्लर्क की ओर से तर्क दिया है कि चेंज पैसे उपलब्ध नहीं होने से यात्री को पैसे वापस नहीं किए गए. कोर्ट ने इसे नहीं माना. क्लर्क ने चेंज पैसों को लेकर यात्री को प्रतीक्षा करने को कहा था ऐसा कोई सबूत नहीं है. 7 अगस्त को बेंच ने आदेश में कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह बताता हो कि क्लर्क का 6 रुपये लौटाने का इरादा था. क्लर्क पर कार्रवाई ठोस सबूतों के आधार पर की गयी है. इस तरह हाई कोर्ट ने अप्रैल, 2004 में जारी कैट के आदेश को कायम रखा और क्लर्क राजेश वर्मा की याचिका खारिज कर दी.

हालांकि सुनवाई में (railway booking clerk) राजेश वर्मा की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट मिहिर देसाई ने विजलेंस टीम द्वारा नियमों का पालन नहीं करने करने की बात कही. रेलवे विजलेंस मैन्युअल का हवाला दिया और बताया कि केवल गैजेटेड अधिकारी को ही फर्जी यात्री बनाकर भेजा जा सकता है, मगर इस मामले में आरपीएफ के कॉन्स्टेबल की मदद ली गई है. ऑलमारी में बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के नियंत्रण में नहीं थी और चेंज पैसे उपलब्ध नहीं होने के पर पैसे नहीं लौटाए थे. यात्री को रुकने का अनुरोध किया गया था. वहीं रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया.

यहां यह बताना होगा कि कुर्ला टर्मिनस में नियुक्त राजेश वर्मा के खिलाफ लगातार अवैध वसूली की मिल रही शिकायतों के बाद  रेलवे विजिलेंस ने जाल बिछाकर कार्रवाई की थी. राजेश वर्मा 31 जुलाई 1995 को बतौर कामर्शियल क्लर्क रेलवे से नियुक्ति हुए थे. 30 अगस्त 1997 को विजिलेंस ने फर्जी यात्री बनाकर आरपीएफ के दो कांस्टेबल को भेजा. एक कॉन्स्टेबल ने राजेश वर्मा से कुर्ला से आरा का टिकट मांगा. उन्होंने 500 रुपये दिये थे. टिकट की कीमत 214 रुपये थी, लेकिन क्लर्क ने कॉन्स्टेबल को 286 रुपये की बजाय 280 रुपये ही लौटाए. मूल रूप से 6 रुपये कम दिये गये. विजलेंस टीम ने छापेमारी कर राजेश वर्मा को पकड़ा और वहां मौजूद ऑलमारी से 450 रुपये अतिरिक्त कैश बरामद किया. क्लर्क के काउंटर में भी रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले थे. आवश्यक जांच के बाद रेलवे ने 31 जनवरी, 2002 को राजेश वर्मा को बर्खास्त कर दिया था.

यह मामला केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में पहुंचा. कैट ने वर्मा को कोई राहत नहीं दी, तो हाई कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. इसमें यह बात सामने आयी कि बुकिंग क्लर्क ने रेलवे अधिकारियों के सामने मर्सी (दया) अर्जी भी लगायी है. बेंच ने माना कि नए सिरे से नौकरी में रखने का आग्रह  याचिकाकर्ता द्वारा गलती को स्वीकार करने का संकेत देता है. ऐसे में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिला है.

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