फ्रीबीज मामला…SC बोला- हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई: निर्देश दिया- पार्टियों को दिए मेमो में से मुख्यमंत्री ऑफिस की जगह राज्य सरकार लिखें

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नई दिल्ली6 घंटे पहले

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मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत 5 राज्यों में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। एमपी और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने हाल ही में जमकर घोषणाएं की हैं। - Dainik Bhaskar

मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत 5 राज्यों में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। एमपी और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने हाल ही में जमकर घोषणाएं की हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर को फ्रीबीज मुद्दे (चुनाव से पहले की जाने वाली घोषणाओं) पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई?

शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ये भी निर्देश दिया कि पार्टियों को दिए मेमो में मध्य प्रदेश के चीफ मिनिस्टर ऑफिस के नाम की जगह राज्य सरकार लिखें। साथ ही राज्य सरकार को मुख्य सचिव के जरिए रिप्रजेंट करें।

फ्रीबीज मुद्दे पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।

हर बार सरकार घोषणाएं करती है, इससे टैक्सपेयर्स पर बोझ- याचिकाकर्ता
फ्रीबीज मुद्दे पर अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है। कोर्ट में उनकी तरफ से वरिंदर कुमार शर्मा पेश हुए। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले सरकार का लोगों को पैसे बांटना प्रताड़ित करने जैसा है। यह हर बार होता है और भार टैक्स चुकाने वाली जनता पर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी याचिका में भट्टूलाल जैन की याचिका को भी शामिल करने को कहा है।

केंद्र और दो राज्य सरकारों को नोटिस

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने इनसे 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।

कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने नई जनहित याचिका को पहले से चल रही अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। सभी मामलों की सुनवाई अब एकसाथ होगी।

जनवरी 2022 में BJP नेता अश्विनी उपाध्याय फ्रीबीज के खिलाफ एक जनहित याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। अपनी याचिका में उपाध्याय ने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के वोटर्स से फ्रीबीज या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की अपील की। इसमें मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियां की मान्यता रद्द करनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने अश्विनी से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से फ्रीबीज की परिभाषा तय करने की अपील की। केंद्र ने कहा कि अगर फ्रीबीज का बंटना जारी रहा तो ये देश को ‘भविष्य की आर्थिक आपदा’ की ओर ले जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ?
फ्रीबीज मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई में तीन सदस्यीय बेंच ने अगस्त 2022 में शुरू की थी। इस बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली भी थे।

सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ…

3 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रीबीज मुद्दे पर फैसले के लिए एक समिति गठित की जानी चाहिए। इसमें केंद्र, राज्य सरकारें, नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, चुनाव आयोग, RBI, CAG और राजनीतिक पार्टियां शामिल हों।
11 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘गरीबों का पेट भरने की जरूरत है, लेकिन लोगों की भलाई के कामों को संतुलित रखने की जरूरत है, क्योंकि फ्रीबीज की वजह से इकोनॉमी पैसे गंवा रही है। हम इस बात से सहमत हैं कि फ्रीबीज और वेलफेयर के बीच अंतर है।’
17 अगस्त 2022: कोर्ट ने कहा, ‘कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को वोटर्स से वादे करने से नहीं रोका जा सकता…अब ये तय करना होगा कि फ्रीबीज क्या है। क्या सबके लिए हेल्थकेयर, पीने के पानी की सुविधा…मनरेगा जैसी योजनाएं, जो जीवन को बेहतर बनाती हैं, क्या उन्हें फ्रीबीज माना जा सकता है?’ कोर्ट ने इस मामले के सभी पक्षों से अपनी राय देने को कहा।

23 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आप सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाते? राजनीतिक दलों को ही इस पर सबकुछ तय करना है।

26 अगस्त 2022: पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने मामले को नई बेंच में रैफर कर दिया। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कमेटी बनाई जा सकती है, लेकिन क्या कमेटी इसकी परिभाषा सही से तय कर पाएगी। रमना ने ये भी कहा था कि इस केस में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

चुनाव आयोग ने कहा था- फ्री स्कीम्स की परिभाषा आप ही तय करें
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 11 अगस्त को चुनाव आयोग ने कहा था कि फ्रीबीज पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है।

चुनावों से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा। कोर्ट ही तय करें कि फ्री स्कीम्स क्या हैं और क्या नहीं। इसके बाद हम इसे लागू करेंगे।

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