नई दिल्ली9 मिनट पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
यूपी पुलिस में इंस्पेक्टर 43 साल की डॉ. रंजना गुप्ता फिलहाल आगरा में तैनात हैं। वह पुलिस शूटिंग टीम की चीफ कोच और इंटरनेशनल शूटर हैं।
इस सफर तक पहुंचना आसान नहीं था। रंजना के सपनों के बीच पहली चुनौती उनका अपना परिवार ही था। इसकी वजह यह थी कि वह एक लड़की हैं। जानिए, रंजना के संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी।
पिताजी नहीं चाहते थे कि मैं शूटर बनूं
मैं बचपन से शूटर बनना चाहती थी, लेकिन मेरे पिताजी को यह पसंद नहीं था। इसकी वजह थी कि मैं लड़की हूं। उनका मानना था कि लड़कियों को घर के कामों पर ध्यान देना चाहिए। हम 5 भाई और 3 बहनें हैं।
मेरे भाई अच्छे स्कूल में पढ़े हैं। लेकिन जब मैं कुछ बनी तो बहनों को भी सपोर्ट किया। आज हम तीनों बहनें सरकारी नौकरी में हैं जबकि भाई प्राइवेट जॉब करते हैं।
वहीं, शूटिंग एक महंगा खेल है। मैं जिस स्तर की शूटर हूं, उस स्तर की उत्तर प्रदेश में कोई शूटिंग रेंज नहीं है। 1 घंटे की कोचिंग के लिए 20-30 हजार रुपए लगते हैं। मैं इतना खर्च नहीं कर सकती थी। तो मैंने अपने सपने को कहीं न कहीं दबा दिया था।
खुद के पैसों से पढ़ाई की
मैंने पिताजी के फैसले का विरोध किया तो उन्होंने कहा कि मैं पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं दूंगा। लेकिन मैं पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती थी।
पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने के लिए मैंने फुटपाथ पर दुकान लगाकर सामान बेचा। इसके लिए भी मुझे पिताजी का गुस्सा सहना पड़ा, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। रक्षाबंधन, होली, दिवाली जैसे खास त्योहारों पर अच्छी कमाई हो जाती थी। इससे सालभर की फीस के पैसे जमा हो जाते। ऐसा करते हुए मैंने 12वीं पास की।
जब मैं बीएससी और एमएससी कर रही थी तब आधा समय पढ़ाई करती और आधा समय बच्चों को कोचिंग देती। मैंने एजुकेशन में पीएचडी की हुई है।
लोगों की मदद के लिए पुलिस जॉइन करना चाहती थी
बचपन में हमारे घर के पास एक चौकी थी। जब मुझे वर्दी में अफसर दिखते तो बहुत अच्छा लगता था। लोग तब पुलिसवालों की इज्जत भी खूब करते थे।
रोज उन्हें देखकर मुझे लगता था कि अगर मैं पुलिस में भर्ती हो जाऊं तो कई लोगों की मदद कर सकती हूं। कई महिलाएं पुरुष पुलिसकर्मी से अपनी बात खुलकर नहीं कह पातीं। लेकिन कोई पीड़िता महिला ऑफिसर के सामने हो तो वह सहज महसूस करती है।
मैंने कई ऐसे केसों को सुलझाया जिनमें लड़कियों की प्राइवेसी बनी रही। मुझे खुशी है कि मैंने जो सोचा वह कर रही हूं।
डॉ. रंजना गुप्ता कानपुर से हैं। 2007 में उनकी यूपी पुलिस में भर्ती हुई।
पुलिस जॉइन करने के बाद शूटर बनने का सपना पूरा हुआ
मैंने 2007 में यूपी पुलिस जॉइन की थी। इसके बाद मैंने शूटिंग शुरू की। तब मैं 25 साल की थी। इस फील्ड में भले ही मेरी शुरुआत बहुत देर से हुई लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने अपने लक्ष्य पर फोकस रखा और 1 साल बाद ही यानी 2008 में ऑल इंडिया पुलिस स्पोर्ट्स शूटिंग में कांस्य पदक जीता।
यह शूटिंग में यूपी पुलिस का पहला मेडल था। जब मेरा पुलिस में चयन हुआ तब विभाग में कोई शूटर नहीं था। ऐसे में मैंने खुद शूटिंग की प्रैक्टिस करनी शुरू की। उस समय यहां शूटिंग के लिए नेशनल लेवल के स्तर की कोई सुविधा नहीं थी।
कई नेशनल और इंटरनेशनल चैंपियनशिप में जीते मेडल
मैं 300 मीटर में राइफल शूटर हूं। पहले मैं किराए पर राइफल लेकर चैंपियनशिप में भाग लेती थी। मैंने यूपी पुलिस चैंपियनशिप के साथ ही स्टेट चैंपियनशिप, नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप, वर्ल्ड पुलिस गेम्स, वर्ल्ड चैंपियनशिप साउथ कोरिया और इंडो-भूटान इंटरनेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में कई मेडल जीते।
2015 में डॉ. रंजना गुप्ता को ‘रानी लक्ष्मीबाई अवॉर्ड’ से नवाजा जा चुका है।
मेडल जीतने पर पिताजी को हुआ गलती का एहसास
जब मैंने पहला मेडल जीता तो मीडिया के लोग मेरे घर पहुंच गए थे। पब्लिक भी मेरा बहुत सपोर्ट कर रही थी। तब मैं घर पर नहीं थी।
उन्होंने मेरे पिताजी से जब सवाल किया कि आपकी बेटी मेडल लाई है, आपको कैसा लग रहा है? तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ कि अगर बेटी को पहले सपोर्ट किया होता तो आज वह बहुत आगे होती।
बिना कोचिंग के जीते मेडल
इस पूरे सफर में मां ने मेरा बहुत साथ दिया। मैंने जो करना चाहा उन्होंने उसके लिए कभी मना नहीं किया। हालांकि घर में उनकी बात भी नहीं सुनी जाती थी। मैंने जब प्रैक्टिस करनी शुरू की तब मैंने बिना कोच के शूटिंग की। दरअसल मैंने एक किताब खरीदी थी।
उसे पढ़कर ही मुझे शूटिंग की बारीकियां और नेशनल और इंटरनेशल शूटिंग के नियमों का पता चला। मैं पहले 13 घंटे तक शूटिंग की प्रैक्टिस करती थी, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि शूटिंग के लिए फिजिकल फिट होना जरूरी है। इसके बाद मैंने अपनी फिटनेस को भी समय दिया।
कुछ पैसे जमा हुए तो एक फिजियोथेरेपिस्ट रखा। उन्होंने मुझे शूटिंग के हिसाब से एक्सरसाइज बताईं। पिछले 2 साल पहले मैंने कोच को रखा। अब मैं 2022 में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए प्रैक्टिस कर रही हूं।
अवॉर्ड मनी और सैलरी जमा कर खरीदी राइफल
मैंने चैंपियनशिप में जीती राशि और सैलरी से जमा किए पैसों से 13 लाख 50 हजार रुपए की राइफल को स्विट्जरलैंड से मंगवाया।
मैंने खुद के लिए शूटिंग रेंज भी बनाई। लेकिन मुश्किलें आसानी से हल नहीं होतीं। जब मेरा सपना पूरा हुआ तो मैं वैष्णो देवी चली गई और पीछे से शूटिंग रेंज में आग लग गई।
इस घटना में मेरी राइफल भी जल गई। उस समय मैं डिप्रेशन का शिकार हो गई थी। करियर अच्छा चल रहा था। ओलिंपिक के 2 आखिरी ट्रायल बचे थे। आग की घटना की वजह से मैं उनमें भाग नहीं ले पाई।
डॉ. रंजना गुप्ता पुलिस शूटिंग टीम की चीफ कोच भी हैं।
एक बच्ची को गोद लिया और बनाया शूटर
मैं अनमैरिड हूं और मैंने एक बेटी को गोद लिया है। आज वह भी पुलिस में है और नैशनल शूटर भी है। उसे भी ‘रानी लक्ष्मीबाई अवॉर्ड’ मिल चुका है।
मैं शूटिंग के लिए कितनी भी लड़कियों को गोद ले सकती हूं और उन्हें मुफ्त में शूटिंग सिखा सकती हूं। बेटियों को सपोर्ट करना बहुत जरूरी है।