डार्क वेब पर बिकते हैं रेप के लाइव वीडियो: 8 हजार में लाइव स्ट्रीमिंग, सबूत खुद-ब-खुद मिट जाते हैं, पकड़ में नहीं आते अपराधी

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नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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डार्क वेब; अंधेरे कमरे में फैला ऐसा मकड़जाल, जहां इंटरनेट पर काली करतूतों को अंजाम दिया जाता है। आपने अब तक डार्क वेब पर मशीनगन से लेकर मिसाइल जैसे हथियारों और ड्रग्स जैसे एमडीएमए, एलएसडी, क्रिस्टल मेथ आदि की तस्करी के बारे में सुना होगा। लेकिन इसका एक स्याह चेहरा और भी है जो मासूम बच्चों को अपनी चपेट में लेकर उनकी जिंदगी तबाह कर रहा है। इस भयावह स्थिति को समझने के लिए हम आपको दो किस्से बताते हैं।

पहला चर्चित वाकया ब्रिटिश मॉडल क्लोए ऐलिंग (Chloe Ayling ) का है। ऐलिंग को पांच साल पहले इटली के मिलान शहर में किडनैप किया गया। पहले तो यह मामूली किडनैपिंग का केस लगा, लेकिन जब केस से पर्दा उठा तो पता चला कि आरोपी पोलिश मूल का लुकास पावेल हर्बा था। पावेल इंटरनेट के गुमनाम, छिपे, अंधेरे हिस्से यानी डार्क वेब में एक्टिव रहने वाले ‘ब्लैक डेथ ग्रुप’ का मेंबर था।

यह ग्रुप मानव तस्करी, किडनैपिंग, चाइल्ड पोर्नोग्राफी में एक्टिव था। अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसी ‘इंटरपोल’ की पूछताछ में पावेल ने बताया कि वह ऐलिंग को अरब के शेखों को बेचने वाला था। ‘ब्लैक डेथ ग्रुप’ डार्क वेब की अलग-अलग वेबसाइट के जरिए ‘सेक्स स्लेव्स’ तैयार करता है और उन्हें नीलाम करता है।

अब डार्क वेब से जुड़ा दूसरा किस्सा पढ़िए।

कनाडाई मूल का नागरिक बेंजामिन फॉकनर डार्क वेब पर ‘चाइल्ड्स प्ले’ नाम की चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेबसाइट चलाता था। इस वेबसाइट पर 10 लाख से ज्यादा बच्चों की प्रोफाइल बनी हुई थी। वेबसाइट पर बच्चों को लेकर पोर्नोग्राफी कंटेंट बनाने वाले 100 से ज्यादा प्रोड्यूसर्स के नाम भी थे। ये प्रोड्यूसर्स 10-12 साल से कम उम्र की बच्चियों का यौन शोषण करवाते और उसे फिल्माते थे। बेंजामिन बाद में अमेरिका के वर्जीनिया में पकड़ा गया। उसके लैपटॉप में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े 47,000 फोटो और 2,900 वीडियो मिले। ये फोटो और वीडियो डार्क वेब से जुड़ी कई दूसरी वेबसाइट्स पर अपलोड किए गए थे।

अब जानते हैं कि डार्क वेब पर किस तरह की वेबसाइट्स का फैला है जाल…

‘अल्फा-बे’: ऐसी वेबसाइट्स का झुंड है, जहां बिकती हैं बच्चियां

डार्क वेब पर सैकड़ों ऐसी वेबसाइट्स हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘अल्फा-बे’ कहते हैं। यहां लड़कियों पर ‘प्राइस टैग’ लगा होता है। ‘ब्लैक डेथ ग्रुप’ और ‘चाइल्ड्स प्ले’ महज उदाहरण हैं जो डार्क वेब पर लड़कियों की खरीद-फरोख्त और इनके वीडियो से करोड़ों की कमाई करते हैं। इंटरपोल ने ‘अल्फा-बे’ को बंद करवाया। इसके बावजूद ‘अल्फा-बे’ जैसी ‘हैकफोरम’, ‘द रियल डार्क मार्केट’, ‘मजाफाका’, ‘डारकोड’ कई वेबसाइट्स चल रही हैं।

आइए, अब समझते हैं कि डार्क वेब या डार्क नेट क्या है…

दरअसल, डार्क वेब इंटरनेट का वह भाग है जहां गूगल काम नहीं करता और पासवर्ड की जगह ‘इंक्रिप्टेड कोड’ होता है। इन्क्रिप्टेड कोड में डेटा या किसी तरह की सूचना को प्रोटेक्ट किया जाता है। क्रिप्टोग्राफी के जरिए इंफॉर्मेशन को सेक्रेट कोड में बदला जाता है। इस कोड को वही जान सकता है जिसे पास एक्सेस की हो। इन्क्रिप्टेड कोड कुछ वैसा ही होता है जैसा वाट्सएप कॉल। इसमें एंड टू एंड इन्क्रिप्शन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

पल-पल URL एड्रेस बदलने से जांच एजेंसियां इन्हें पकड़ नहीं पातीं। URL एड्रेस यानी किसी वेबसाइट तक पहुंचने का पता जैसे गूगल का URL है- google.com, इसलिए URL इंटरनेट पर उपलब्ध किसी भी डेटा का यूनिक एड्रेस होता है। URL एड्रेस बदलने से डार्क वेब में कौन-कौन सी वेबसाइट्स क्या-क्या कर रही हैं, यह जानना जांच एजेंसियों के लिए मुश्किल हो जाता है।

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 79 केस ऐसे हैं जिनमें इंटरनेट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लिए किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रैफिकर्स किस तरह से डार्क वेब को ‘वर्चुअल पोर्नोग्राफी टूरिस्ट डेस्टिनेशन’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें लोगों को पोर्नोग्राफी की लाइव स्ट्रीमिंग दिखाने का लालच देकर बुलाया जाता है।

तस्करी के लिए 40 हजार वेब पेज, 6 करोड़ विज्ञापनों पर 2000 करोड़ से ज्यादा खर्च

डार्क वेब से जुड़ी वेबसाइट्स पर रोज 25 लाख से अधिक विजिटर्स आते हैं। यह ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां ड्रग्स माफिया, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, आर्म्स डीलर जैसे दुनिया भर के आपराधिक संगठन के लोग आपस में बात करते हैं। वॉट्सऐप, फोन, फेसबुक के जरिए बात करने से पुलिस और जांच एजेंसियों की रडार में आने का खतरा रहता है। चूंकि डार्क वेब दुनिया भर की पुलिस को चकमा देने का अड्डा है, इसलिए ये अपराधी यहां आकर काले बिजनेस की प्लानिंग करते हैं।

यहां पर कुछ भी खरीदा या बेचा जा सकता है, यहां तक कि इंसान भी। अमेरिका में हुए एक रिसर्च के अनुसार, पिछले दो साल में ह्यूमन ट्रैफिकर्स ने 30 से 40 हजार डार्क वेब पेज पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के विज्ञापन दिए। इन विज्ञापनों की गिनती 6 करोड़ है। जिन पर 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए।

डार्क वेब पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बाजार ने ड्रग्स माफिया को पछाड़ा

डार्क वेब पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के माफियाओं के साम्राज्य का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक साल में मानव तस्करी से करीब 12 लाख करोड़ रुपए का कारोबार होता है। जिस वक्त आप यह लाइन पढ़ रहे हैं, उस समय डार्क वेब पर 2 करोड़ लोगों की तस्करी हो रही होगी। इनमें आधी से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं होती हैं। इनमें 10 लाख से ज्यादा बच्चे रहते हैं। यूनाइटेड नेशंस ने 2020 में अपनी एक रिपोर्ट में ये अनुमान लगाया है। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 2 करोड़ लोगों में से 25% से ज्यादा को सेक्स स्लेव के रूप में खरीदा और बेचा जाता है। डार्क वेब पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी सबसे ज्यादा मुनाफे का धंधा बन गया है और इसने ड्रग्स के धंधे को भी पीछे छोड़ दिया है।

डार्क वेब से अलग बच्चों के यौन शोषण का काला सच

अंतररराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, पूरी दुनिया में बंधुआ मजदूरी से होने वाली कमाई का करीब 65% हिस्सा इन मजदूरों के यौन शोषण से आता है। इस धंधे की सालाना कमाई करीब 8 लाख करोड़ रुपए है। हर साल 18 साल के कम उम्र के 55 लाख बच्चों से जबरन मजदूरी कराई जाती है, जिनमें से 10 लाख बच्चे जबरदस्ती देह व्यापार में उतारे जाते हैं।

1 बच्चे से 1.5 करोड़ की कमाई करते हैं तस्कर

यूरोपियन लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसी ‘यूरोपॉल’ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में हर साल 2 लाख से अधिक बच्चों की यौन शोषण के लिए तस्करी की जाती है। तस्करों ने एक बच्चे की तस्करी से करीब 1.5 करोड़ रुपए की कमाई की। इनका बिजनेस मॉडल यह है कि डार्क वेब पर मौजूद वेबसाइट्स बच्चों से दुष्कर्म और यौन शोषण की लाइव स्ट्रीमिंग की जाती है।

अब आइए समझें कि कैसे होती है बच्चों के शोषण से कमाई, और कोई सबूत भी नहीं होता

चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने वाला एक एशियाई कस्टमर वीडियो फीड के जरिए डार्क वेब पर कनेक्ट होता है। अपनी कुंठाओं को पूरी करने के लिए वह एक डिमांड रखता है। इसमें वह 8 लोगों के एक ग्रुप को 8 साल की बच्ची से लाइव रेप करने का निर्देश देता है। वह महज 8 हजार रुपए देकर रियल टाइम में इस रेप का लाइव वीडियो देखता है। चूंकि इस घटना के वीडियो या फोटो उस इंसान को डाउनलोड करके भेजने के बजाए लाइव दिखाए जा रहे थे। इसलिए इन घटनाओं का कोई सबूत भी नहीं जुटाया जा सकता है।

ये घटना खुद संयुक्त राष्ट्र की तरफ से सामने लाई गई थी। ये उन केसों में से एक केस है जो इंटरनेट से चाइल्ड ट्रैफिकिंग से जुड़े हैं और हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में चल रहे हैं।

बच्चे को बेचने की शुरुआत फैमिली मेंबर से ही होती है

ताज्जुब की बात ये है कि चाइल्ड ट्रैफिकर अनजान व्यक्ति तो हो सकता है। मगर, वो परिवार का सदस्य, गार्जियन, दोस्त या कोई जान-पहचान वाला भी हो सकता है। जितने भी केसेज पकड़ में आते हैं, उनमें आधे से ज्यादा मामलों में परिवार का ही कोई सदस्य शामिल होता है। चाइल्ड ट्रैफिकिंग के मामलों में परिवार से जुड़े लोगों का हाथ 4 गुना ज्यादा होता है।

डार्क वेब यानी ऐसी दुकान जहां सब कुछ बिकता है

डार्क वेब एक ऐसी नर्सरी है जहां चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रमोट किया जाता है। हार्ड कैंडी, जैलबेट, लोलिता सिटी, पेडोइंपायर, लव जोन, द फैमिली एलबम, किंडरगार्टन पोर्न आदि साइट्स डार्क वेब पर हैं जहां बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी हर गतिविधि होती है।

इनमें से कई वेबसाइट्स ऐसी हैं जिनके एक लाख से अधिक मेंबर हैं। डार्क वेब पर ये मेंबर बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी अपनी फैंटेसी की कहानियां बताते हैं और फोटो-वीडियो भी धड़ल्ले से शेयर करते हैं। यहां फोटो, वीडियो और किस्से; सभी कुछ बिकता है और खरीदारों की कमी भी नहीं है।

भारत इस दलदल में कहां तक फंसा है

कई कानूनों के रहने के बावजूद भारत में मानव तस्करी दूसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में IPC की अलग-अलग धाराओं में ट्रैफिकिंग के 2088 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2018 में 1830 और 2017 में 2854 केस दर्ज हुए। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में भी ऑनलाइन सेक्स ट्रैफिकिंग का ट्रेंड बढ़ा है। इसे देखते हुए महाराष्ट्र और केरल में एक्शन लिए गए हैं। महाराष्ट्र में पायलट स्कीम के तहत टैक्टिकल रिस्पॉन्स अगेंस्ट साइबर चिल्ड्रन एक्सप्लॉयटेशन (TRACE) यूनिट बनाई गई है। वहीं, केरल में 2021 और जुलाई 2022 तक ऑनलाइन सेक्स ट्रैफिकिंग को लेकर 472 FIR दर्ज की गईं। इन मामलों में 67 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है।

डार्क वेब की आड़ में छिप रहे ह्यूमन ट्रैफिकर

अब आइए जानते हैं कि डार्क वेब पर ह्मूमन ट्रैफिकर अपनी काली करतूतों को किस तरह छिपाते हैं। गूगल सर्च इंजन पर डॉट कॉम, डॉट इन, डॉट ओआरजी, डॉट जीओवी वेब एड्रेस का इस्तेमाल किया जाता है। इन साइट्स पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वाले अपने आप को जांच एजेंसियों की नजर से बचा नहीं सकते। इसलिए उन्होंने अपना ठिकाना बदला है।

डार्क वेब की वेबसाइट्स के लास्ट में ‘डॉट अनियन’ (.onion) जुड़ा होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो डार्क वेब पर ‘अनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी’ का इस्तेमाल होता है जिसे TOR कहा जाता है। ये टेक्नॉलॉजी ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाती है। Onion नाम के इस्तेमाल के पीछे की वजह है कि जिस तरह से प्याज में कई परतें होती हैं, डार्क वेब के TOR में भी सेफ्टी की कई परतें होती हैं। ये सेफ्टी लेयर्स ही गैरकानूनी काम करने वालों को जांच एजेंसियों की पकड़ से दूर रखती हैं।

एंटी ट्रैफिकिंग पर काम कर रही संस्था ‘एक्शन एगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्शुअल एक्सप्लाटेशन ऑफ चिल्ड्रेन’ के को-ऑर्डिनेटर संजय मिश्रा कहते हैं, ‘ऑनलाइन ह्यूमन ट्रैफिकिंग, आर्म्स और ड्रग्स की तरह सबसे बड़ा चैलेंज है। जो भी डिजिटली सेफ्टी फीचर्स लाए जाते हैं, ट्रैफिकर्स भी उन्हें काउंटर करते रहते हैं। डार्क वेब इसी का नतीजा है। चूंकि हाल के दिनों में ट्रैफिकर्स पर लगातार कार्रवाई की गई है। इससे बचने के लिए उन्होंने डार्क वेब पर सुरक्षित ठिकाना बना लिया है।’

नाबालिग लड़कियों के प्रति अपराध चिंताजनक

इंटरपोल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017 से 2020 के बीच चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज के 24 लाख मामले सामने आए। इनमें 80 प्रतिशत बच्चे 14 वर्ष से कम उम्र के थे। इसी तरह, फ्री ए गर्ल संस्था के अनुसार, हर साल नेपाल से भारत में करीब 12 हजार लड़कियों की तस्करी की जाती है। ऑनलाइन ट्रैफिकिंग के कारण मानव तस्करी में बढ़ोतरी देखने को मिली है। ट्रैफिकर्स एडवांस टेक्नोलॉजी के सहारे सोशल मीडिया और डार्क वेब पर अपना शिकार तलाशते हैं। ऐसे में पुलिस इन साइबर क्रिमिनल्स तक पहुंच नहीं पाती।

डार्क वेब में नाबालिगों के फंसने का क्या है कारण

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वरुण एस मेहता बताते हैं कि कोविड के बाद टीनजर्स ऑनलाइन अधिक समय बिता रहे। कोविड से पहले जहां 12 से 16 वर्ष के बच्चे हर दिन औसतन 110 मिनट ऑनलाइन रहते थे, वो अब 200 मिनट से अधिक रहने लगे। यानी 24 घंटे में से 3 घंटे 20 मिनट बच्चों ने मोबाइल पर समय बिताया।

डॉ. वरुण के अनुसार, बच्चों के ऑनलाइन रहने को लेकर हाल में एक स्टडी आई। इसमें बताया गया है कि ऑनलाइन रहने के दौरान 9 प्रतिशत बच्चों ने न चाहते हुए भी सेक्सुअल कंटेंट देखा। मोबाइल इंटरनेट पर सर्फिंग के दौरान 23 प्रतिशत बच्चे पोर्न वेबसाइट्स पर गए। 8 प्रतिशत टीन्स ने ऑनलाइन ही रोमांटिक पार्टनर खोजा। इसी स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया कि 11 प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन हैरासमेंट के शिकार हुए।

इंटरनेट की काली दुनिया से ऐसे बचें

प्राइवेसी सेटिंग्सः इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया अकाउंट को पब्लिक न रखें। सेटिंग्स में जाकर अपने अकाउंट को प्राइवेट करें। किसी पोस्ट पर लोकेशन शेयरिंग का ऑप्शन ऑफ रखें।

फ्रेंड रिक्वेस्टः जिन्हें आप जानते हैं उनके ही फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करें। कभी भी पर्सनल सूचनाएं जैसै अपना फोन नंबर, एड्रेस या लाइव लोकेशन शेयर न करें।

विज्ञापनों से सावधानः सामान्य काम के बदले अच्छी सैलेरी देने के विज्ञापनों के झांसे में न आएं। कंपनी की विश्वसनीयता और उसके टर्म एंड कंडिशंस को जांच लें।

एक्शन लेंः सोशल मीडिया पर आपके अकाउंट से छेड़छाड़ होने पर तुरंत अनफ्रेंड या ब्लॉक करें। बिना देरी किए इसकी रिपोर्ट करें। ऐसे किसी पोस्ट का स्क्रीनशॉट भी करें।

ग्रैफिक्स: सत्यम परिडा

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