किसी का सीना नोंचा…किसी का पूरा शरीर छेद डाला: सीतापुर में 40 दिन से घूम रहे आदमखोर तेंदुए, 3 को मारा…जो बच गए उनपर पंजे के निशान

5 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी

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शाम का वक्त था। 8 साल का शिवपाल बहन विनीता के साथ खेत पर पिता रघुराज को खाना देने गया था। दोनों घर लौट ही रहे थे, तभी गन्ने के खेत से अचानक एक तेंदुआ दौड़ते हुए आया और शिवपाल के सीने पर झपट्टा मार दिया। गर्दन पर पंजा मारा, चेहरे पर दांत गड़ा दिए। ये देख विनीता जोर से चिल्लाई…बापू।

बेटी की चीख सुन रघुराज और उनके भाई रामविरेश खाना छोड़कर भागे। उन्होंने देखा कि तेंदुआ शिवपाल को घटीसते हुए जंगल की तरफ ले जा रहा था। दोनों लाठी लेकर दौड़े। शोर मचाने पर तेंदुआ शिवपाल को छोड़कर भाग गया। बहन विनीता ये सब देखकर बहुत डर गई थी। वह बस जोर-जोर से रोए जा रही थी।

रघुराज ने घायल बेटे को गोद में उठाया। उसके पूरे शरीर पर खरोंच के निशान थे और घाव से खून ही खून बह रहा था। परिवार बच्चे को पास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) लेकर पहुंचा। डॉक्टरों ने बताया कि काफी खून बह गया है। मासूम का बचना मुश्किल है। घरवाले डर गए। रातोंरात एंबुलेंस से शिवपाल को सीतापुर से लखनऊ लाया गया। 5 दिन बीत चुके हैं…शिवपाल ICU में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है।

सीतापुर के कछार इलाके में बसे गांवों में तेंदुए की दहशत है। बीते 1 महीने में तेंदुए ने 10 से ज्यादा लोगों पर हमला किया। इस दौरान 3 लोगों की मौत हुई। जो बच गए, उनमें किसी का पैर गया तो किसी के हाथ। कस्बे में ऐसे कई लोग हैं, जिनके शरीर पर तेंदुए के पंजों के निशान आज भी मौजूद हैं।

  • भास्कर टीम उन गांवों में पहुंची, जहां तेंदुए के डर से लोग रात-रात भर जाग रहे हैं। डर ऐसा कि स्कूलों में बच्चे तक पढ़ने नहीं आ रहे हैं। हमने विन-विभाग के अधिकारियों से लेकर लोगों से बात की। चलिए एक-एक करके सब कुछ बताते हैं…

शिवपाल के शरीर पर 8 जगह टांके लगे, बोल भी नहीं पा रहा

ये फोटो 8 साल के शिवपाल की है। तेंदुए के हमले के बाद उसका इलाज लखनऊ में हो रहा है।

ये फोटो 8 साल के शिवपाल की है। तेंदुए के हमले के बाद उसका इलाज लखनऊ में हो रहा है।

सीतापुर से 60 किलोमीटर दूर पड़ता है रेउसा इलाका। यहां 98 ग्राम पंचायतों में करीब 30 हजार की आबादी रहती है। यहां दूर-दूर तक गन्ने के खेत और घने जंगल हैं। इनसे निकलकर आए दिन तेंदुए लोगों पर हमला करते हैं। इन्हीं जंगलों से होते हुए हमारी टीम रेउसा के गुलरिहा गांव पहुंची। इसी गांव के आसपास तेंदुए की सबसे ज्यादा हलचल दिखी है।

हम सबसे पहले उस स्पॉट पर पहुंचे, जहां तेंदुए ने 18 अगस्त की रात शिवपाल पर हमला किया था। यहां वन-विभाग ने तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया है। गांव के लोग इस कदर सहमे हुए हैं कि दिन में भी खेत पर नहीं जा रहे। हम शिवपाल के चाचा रामविरेश से मिले। उन्होंने ही तेंदुए को लाठी लेकर दौड़ाया था, जिसके बाद वह शिवपाल को छोड़कर भाग गया।

रामविरेश कहते हैं, “उस रात लगा कि शिवपाल बच नहीं पाएगा। लेकिन लोगों और प्रशासन की मदद से उसे लखनऊ ले जाया गया। उसका इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में चल रहा है। पूरे शरीर पर घाव हैं, जिसे भरने के लिए 8 जगह टांके लगाए गए हैं। घायल शिवपाल अभी बोल भी नहीं पा रहा है।”

लाठी और भाला लेकर खेत की रखवाली कर रहे किसान
सीतापुर के बिसवां तहसील में किसानों के लिए अब तक छुट्टा पशु सबसे बड़ी मुसीबत थे। लेकिन लगातार हो रहे तेंदुए के हमलों से नई आफत खड़ी हो गई है। लोग मजबूरन झुंड बनाकर खेतों की रखवाली कर रहे हैं। सरैया भटपुरवा गांव के फौजदार यादव और उनके साथियों ने 10 दिन पहले ही गांव में घुसे तेंदुए को लाठी लेकर दौड़ाया था।

फौजदार यादव कहते हैं, “13 या 14 अगस्त की बात है। हमारे साथ 8 से 10 लोग खेत की तरफ जा रहे थे। तभी तेंदुए ने हम लोगों पर हमला कर दिया। यह गनीमत थी कि कुछ लोगों के पास डंडे थे, जिसकी वजह से तेंदुआ किसी को घायल नहीं कर पाया। किसानों ने उसे दौड़ा-दौड़ाकर गांव से बाहर खदेड़ दिया। लेकिन 21 अगस्त को फिर से तेंदुआ रामचंद्र के घर पर बंधे मवेशी को उठा ले गया।”

“पूरे रेउसा इलाके में दर्जनों लोगों पर तेंदुए के हमले हो चुके हैं। यहां अपनी जान बचाना भी चुनौती बन गया है। हालत यह है कि लोग दिन में भी लाठी और भाला लेकर घरों से बाहर निकलते हैं। वन विभाग के आदेश पर महिलाएं और बच्चे घर से बाहर नहीं जा रहे हैं। फॉरेस्ट रेंजर बंदूक लेकर कॉम्बिंग कर रहे हैं। जंगली जानवर को पकड़ने के लिए पिंजरा भी लगाया गया। लेकिन अब तक एक भी तेंदुआ पकड़ा नहीं गया है।”

  • यहां रुकते हैं। खबर में आगे बढ़ने से पहले सीतापुर में तेंदुए के हमले से हुई मौत और घायलों के बारे में जान लीजिए…

घर की दहलीज से बच्चे को उठा ले गया आदमखोर
तेंदुए का सबसे ज्यादा खौफ बिसवां, तंबौर, लहरपुर और महमूदाबाद में है। यहीं पर सबसे ज्यादा हमले हुए। 2 अगस्त को तंबौर थाना क्षेत्र के हरकी बेहड़ गांव में तेंदुए ने 7 साल के अजीत की जान ले ली। आदमखोर उसे घर के सामने से उठा ले गया।

अजीत के पिता उमेश जायसवाल आज भी वह रात नहीं भूलते, जब उन्होंने आखिरी बार बेटे को देखा था। उमेश कहते हैं, “रात का समय था। मेरा बेटा घर के दरवाजे पर खेल रहा था। तभी अचानक तेंदुए ने उस पर झपट्टा मारा और उसे घसीटकर ले गया। जब अजीत मिला, तो वह बहुत घायल था। हम उसे अस्पताल लेकर जा रहे थे कि रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। आज भी वह रात याद आती है, तो रूह कांप जाती है।”

2 अगस्त को तेंदुए के हमले में अजीत की मौत हो गई।

2 अगस्त को तेंदुए के हमले में अजीत की मौत हो गई।

तेंदुए के खौफ ने पढ़ाई चौपट कर दी, स्कूल खाली पड़े
सीतापुर की महमूदाबाद तहसील के सरकारी स्कूलों में तेंदुए की दहशत साफ दिखती है। राज्य सरकार से सम्मानित प्राथमिक विद्यालय बघाइन में 157 बच्चों का एडमिशन हुआ है। लेकिन बीते 10 दिन से यहां 40 बच्चे भी नहीं आ रहे हैं। बच्चों के अभिभावक खौफजदा हैं। उन्हें डर है कि कहीं तेंदुए उनके बच्चों का शिकार न कर लें।

प्राथमिक विद्यालय बघाइन के सहायक अध्यापक उमेश वर्मा कहते हैं, “20 अगस्त को हमारे स्कूल के पास तेंदुए के पैरों के निशान देखे गए। यहीं से 1 किलोमीटर दूर प्राथमिक विद्यालय माल सराय के पास लोगों ने 3 तेंदुए देखे थे। स्कूल के पास किसी जानवर का खून भी फैला हुआ था। जब लोगों ने खोजबीन की, तो पता चला कि गांव में घूमने वाला एक सांड बुरी तरह से जख्मी था।”

“इलाके में तेंदुए की हलचल के बाद स्कूलों में सन्नाटा पसरा हुआ है। रोज स्कूल खुलते हैं, लेकिन बच्चे नहीं आते। हमने कई बार वन-विभाग के अधिकारियों से शिकायत भी की, लेकिन सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही हो रही है। सरकार से हमारी अपील है कि जल्द से जल्द लोगों को तेंदुओं के आतंक से बचाने के लिए ठोस कदम उठाया जाए।”

  • यहां रुकते हैं। अब तक आपने तेंदुए के आतंक से परेशान लोगों की बातें सुनी। उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स का इन घटनाओं पर क्या कहना है, खबर के अगले हिस्से में यह जानते हैं।

RFO बोले- नर तेंदुआ कर रहा बच्चों पर हमला, मंगवाई जा रही ट्रैंकुलाइजर बंदूक
सीतापुर में लगातार हो रहे तेंदुए के पर क्षेत्रीय वन अधिकारी अहमद कमाल सिद्दीकी ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। कमाल कहते हैं, “रेउसा और बिसवां क्षेत्र में हुए हमलों के बाद हमने गांवों में मॉनिटरिंग बढ़ा दी है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के साथ उन इलाकों का सर्वे किया है, जहां तेंदुए की हलचल देखी गई। जांच में जो पैरों के निशान मिले हैं, उससे यह लगता है कि कोई नर तेंदुआ है जो लोगों पर (खासकर छोटे बच्चों पर) हमला कर रहा है।”

“मेल लेपर्ड काफी फुर्त होते हैं, जल्दी पकड़ में नहीं आते। ऐसे में वन-विभाग ने इन्हें पकड़ने की कवायद तेज कर दी है। रामपुर-लहरपुर रेंज, कीतरपुर, सरैंया भटपुरवा और शुजातपुर में पिंजरे लगाए गए हैं। इन इलाकों में टीमें दिन-रात कॉम्बिंग कर रही हैं। जिले में तेंदुओं का आतंक रोकने के लिए विभाग ने ट्रैंकुलाइजर बंदूक के प्रयोग की इजाजत मांगी है।”

लखीमपुर के सहारे सीतापुर का वन-विभाग
अहमद कमाल सिद्दीकी कहते हैं कि सीतापुर कभी वाइल्ड लाइफ प्रोन एरिया नहीं रहा है। ऐसे में अभी तक हमें बाघ या फिर तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरे की जरूरत नहीं पड़ी। अब यहां हमले एकाएक बढ़ गए हैं। ऐसे में हमने लखीमपुर और पीलीभीत से पिंजरे मंगवाए हैं। गांवों में जंगली जानवरों की दस्तक बढ़ने के बाद लखीमपुर रिजर्व से ट्रेंड ऑफिसर्स को सीतापुर बलाया गया है।

“जिन इलाकों में तेंदुए की हलचल देखी जा रही है। वह ज्यादातर घाघरा नदी के कछार इलाके में आते हैं। इस वक्त मानसून सीजन में उस क्षेत्र में बाढ़ आई हुई है। ऐसे में तेंदुए जान बचाने के लिए आबादी क्षेत्र की तरफ आ रहे हैं। यह जगह उनके रहने के लिए सबसे उपयुक्त है। क्योंकि यहां पानी और भोजन दोनों पर्याप्त मात्रा में हैं।”

वन्यजीव कानूनों का सही पालन न होना पड़ रहा लोगों पर भारी
देश के जाने-माने वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं, “वन्यजीव कानून का सही तरीके से पालन न होना भी आबादी क्षेत्रों में हो रहे हमलों का मुख्य कारण है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत यह प्रावधान है कि राज्य अपने यहां वाइल्ड लाइफ रिजर्व बनाएंगे। उनको इसके लिए निश्चित बजट भी दिया जाएगा। इसके लिए बकायदा केंद्र सरकार हर राज्य से एक समझौता करता है। जिसमें वाइल्ड लाइफ रिजर्व का फील्ड डायरेक्टर, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) और राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अधिकारी के साइन होते हैं।”

“हर साल इस समझौते का रिव्यू होता है और इसी के आधार पर राज्य केंद्र से बजट मांगते हैं। यानी कि जब आपने वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए इतने कड़े कानूनी प्रावधान बना रखे हैं, तो इसके कहीं न कहीं पालन न होने के कारण ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। एक प्रावधान यह भी कहता है कि वन्यजीव संरक्षित इलाकों में स्किल्ड ऑफिसर्स को ही नियुक्त किया जाए। लेकिन ऐसा कभी होता नहीं। ट्रेंड कर्मियों की नियुक्ति होती तो वह लोगों को वन्यजीवों के प्रति बेहतर जागरूक कर पाएंगे। इससे मौतें और हमले दोनों में कमी आएगी।”

  • आखिर में सबसे ज्यादा तेंदुओं की आबादी वाले देश के राज्यों के बारे में जान लीजिए…

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