कारगिल शहीद इश्तियाक खान की अनटोल्ड स्टोरी: पाकिस्तान की सीमा में घुसकर दुश्मनों को मारा था, 3 महीने पहले ही हुई थी शादी

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  • There Had been 2 Bullets In The Waist And Thigh, But Killed The Pakistani Troopers By Operating For 1 Kilometer And Had Killed The Enemies By Getting into The Border Of Pakistan,

14 मिनट पहले

तारीख: 27 मई, साल:1999, जगह: सिकंदराबाद, वक्त: शाम 5 बजे। हम अपना रूटीन काम कर रहे थे। तभी कमांडिंग ऑफिसर का मैसेज आया कि 22 ग्रेनेडियर को कल कारगिल के द्रास सेक्टर के लिए मूव करना है। हमें भी जाना था। सेना को ले जाने वाली स्पेशल ट्रेन स्टेशन पर खड़ी थी। हमने रात भर पैकिंग की। हथियारों को ट्रेन में लोड कर दिया।

कारगिल शहीद इश्तियाक खान के गांव के दोस्त और वॉर के दौरान एक यूनिट में साथ रहे सूबेदार मोहम्मद बख्तावर हुसैन ने भास्कर से बातचीत की। उस दौरान कारगिल युद्ध से जुड़ी पूरी कहानी बयां की। चलिए एक-एक करके पूरी कहानी सुबेदार बख्तावर हुसैन की जुबानी सुनते हैं…

सुबह होते हम कारगिल के लिए रवाना हो गए। 1 जून को ट्रेन जम्मू स्टेशन पहुंची। वहां सिविल ट्रक पहले से इंतजार कर रहे थे। रात में ही हम श्रीनगर के RR ग्राउंड पहुंच गए। अगले दिन 2 जून की सुबह 4 बजे हम कारगिल के लिए मार्च कर दिए और शाम तक कारगिल पहुंच गए। वहां हमें जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के 10वीं बटालियन से चार्ज लेना था लेकिन वहां पहुंचने के बाद सभी को बुर्ज खरबु पहुंचने को कहा गया।

बुर्ज खरबु कारगिल जिले के द्रास तहसील में पड़ने वाला एक गांव है। यह कारगिल से 26 किलोमीटर की दूरी पर है। कारगिल से खरबु जाने के लिए नाले के सहारे रास्ता है।

6 जून से हम तैयारी में लग गए। हमें बटालिक सेक्टर के जेवर हिल पर कब्जा करना था, वो बिल्कुल खड़ी पहाड़ी थी। वहां पर पहुंचने के लिए हमें रोप क्लाइम्बिंग करनी थी, यानी रस्से के सहारे चढ़ना था। कारगिल युद्ध के दौरान एक स्पेशल यूनिट को इसी काम के लिए लगाया गया था। ताकि जवानों को चढ़ने के लिए रस्से का रास्ता बन सके।

कारगिल का बटालिक सेक्टर चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों से घिरा है। ये जगह भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है।

कारगिल का बटालिक सेक्टर चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों से घिरा है। ये जगह भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है।

पाकिस्तानी सेना पर हमले के लिए 30 जून की तारीख तय थी। 1 जुलाई की सुबह 4 बजे से पहले हमला खत्म करने का आदेश था। हम लोगों ने समय से पहले ही अटैक कर दिया। 4 बजे तक पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़कर सब क्लियर कर दिया। अटैक कामयाब रहा, उस समय तक हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ था।

हालांकि, थोड़ी देर बाद वहां हैवी अर्टिलरी फायर होने लगी। तोप के गोले ऐसे बरस रहे थे मानों पत्थरों की बरसात हो रही हो। पूरे 2 दिनों तक हमने अपनी पोजिशन होल्ड की। 3 जुलाई को यानी 2 दिन बाद 9 बजकर 35 मिनट पर पाकिस्तानी सेना की 10 पंजाब रेजिमेंट ने काउंटर अटैक कर दिया। हमारी पलटन में कुल 40 सैनिक थे और सहायता के लिए लद्दाख स्काउट्स के 80 जवान आने वाले थे।

रेडियो सेट पर भारतीय सेना की बात को ट्रैक करने के बाद पाकिस्तानी फौज ने एक प्लान तैयार किया। वो भारतीय सेना के लद्दाख स्काउट्स के भेष में जाएंगे। उन्हें इस बात का पता था कि हमारी रिइंफोर्समेंट आ रही है। पाकिस्तानी सेना लद्दाख स्काउट्स की भेष में आ गई। आने के बाद वो हमारे सूबेदार साहब से बोले कि “आप लोग सरेंडर कर दें”।

सरेंडर के लिए कहने पर कंपनी क्वार्टर मास्टर कमरुद्दीन को तुरंत शक हो गया। उन्होंने साथी तुफैल से धीरे से कहा कि ये तो पाकिस्तानी हैं। उनकी बात को पाकिस्तानी सेना के कमांडिंग ऑफिसर ने सुन लिया। उनको ये पता चलते ही की हमें शक हो गया, उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

धोखे से हुए हमले में हमें 2 मिनट तक संभलने का मौका तक नहीं मिला। वो चारों तरफ से घेरकर ताबड़तोड़ बर्स्ट फायर कर रहे थे। हमने कवर लिया और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। दोनों तरफ से गोलियों की बौछार हो रही थी। 10 मिनट तक आमने-सामने की लड़ाई में दोनों तरफ से ताबड़तोड़ गोली बरस रही थी। इसके बाद जब उनको लगा कि वे हार जाएंगे तो वे सीमा की तरफ भाग खड़े हुए।

इस हमले में 40 में से हमारे 10 जवानों की शहादत हुई। 17 जवान घायल और 13 जवान सुरक्षित थे। पाकिस्तानी सेना के 30 से ज्यादा सैनिक मारे गए और 25 से ज्यादा गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

शहीद इश्तियाक की प्रतिमा को सरकार ने स्थापित कराया है। क्षेत्र के युवा इनको अपना आदर्श मानते हैं।

शहीद इश्तियाक की प्रतिमा को सरकार ने स्थापित कराया है। क्षेत्र के युवा इनको अपना आदर्श मानते हैं।

आखिरी सांस तक लड़े इश्तियाक, पाकिस्तानी सैनिकों को घर में घुसकर मारा
आमने सामने की लड़ाई में इश्तियाक को पैर की जांघ और कमर में गोली लगी। बावजूद इसके उन्होंने पहाड़ी के निचले हिस्से में 1 किलोमीटर तक दुश्मनों का पीछा किया। पीछा करते- करते वो दुश्मन की सीमा में प्रवेश कर गए। हम उनको 2 दिनों तक ढूंढते रहे पर वो नहीं मिले।

7 जुलाई को पूरी चोटी कब्जाने के बाद शाम को सभी मिसिंग जवानों को ढूंढने का सिलसिला शुरू हुआ। जब हम अपने सैनिकों की डेड बॉडी को ढूंढते हुए पहाड़ी से 1 किलोमीटर नीचे पहुंचे तो वहां पर इश्तियाक की बॉडी मिली।

हमने उनकी पत्नी, दोस्तों से बातचीत की, उनसे बातचीत को एक-एक करके नीचे बता रहे हैं…
गाजीपुर जिले के फखनपुरा गांव के रहने वाले शहीद इश्तियाक खान 4 भाइयों और 3 बहनों में तीसरे नंबर के थे। इश्तियाक खान 1996 में भारतीय सेना के 22 ग्रेनेडियर में भर्ती हुए थे। 10 अप्रैल 1999 में रशीदा बेगम से उनकी शादी हुई थी। शहादत से पहले इश्तियाक खान अपनी शादी के लिए 2 महीने की छुट्टी पर घर आए थे। छुट्टी खत्म होने में अभी 15 दिन बाकी था तभी उन्हें यूनिट से बुलावा आ गया। कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था।

इश्तियाक खान ने अपने बचपन के दोस्त मोहम्मद आजम को एक चिठ्ठी में लिखी थी। इसमें उन्होंने लिखा था, मौत से जिस दिन हम सब डरने लगे तो फिर भारत माता की रक्षा कौन करेगा। यह चिट्ठी मोहम्मद आजम को इश्तियाक खान की शहादत के बाद मिली थी।

गांव के लोग गब्बर नाम से पुकारते थे, वादा किया था “जल्द मिलूंगा मित्र”
इश्तियाक के बचपन के दोस्त संशुजूहा ने बताया कि शाम का समय था। मैं सड़क पर टहल रहा था। तभी 2 पुलिस वाले आते दिखे, मुझे देखा तो रोककर पूछा कि इश्तियाक खान को जानते हो? जवाब में कुछ कहता तभी दूसरा सवाल किया कि उनका कौन सा घर है? मैंने कहा कि उनका दोस्त हूं। क्या बात है? सिपाही बोले कि कारगिल युद्ध में इश्तियाक खान शहीद हो गए हैं। सिपाहियों ने जो कहा एकबारगी उस पर मुझे यकीन ही नहीं हुआ। जहां मैं खड़ा था वो वही जगह थी जब अंतिम बार मेरी इश्तियाक से मुलाकात हुई थी। उस वक्त वो ड्यूटी पर जा रहा था और जाते टाइम कहा था “जल्द मिलूंगा मित्र।”

आर्मी में भर्ती के लिए इश्तियाक जब भर्ती सेंटर गए थे तब लगातार 1 महीने संशुजूहा ने उनकी मां की देखभाल की थी। पीछे उनकी कब्र है। जहां उन्हें दफनाया गया है।

आर्मी में भर्ती के लिए इश्तियाक जब भर्ती सेंटर गए थे तब लगातार 1 महीने संशुजूहा ने उनकी मां की देखभाल की थी। पीछे उनकी कब्र है। जहां उन्हें दफनाया गया है।

इश्तियाक को गांव में लोग गब्बर के नाम से बुलाते थे। वो फुटबाल खेलने और दौड़ लगाने में बहुत तेज तर्रार थे। हम उनके साथ ही रहते थे उनके साथ खाना, दौड़ना, एक दूसरे के खेत में काम करना आम बात थी। वो मेरे कपड़े पहन लेते थे और मैं उनके।

पति को मना किया कि मत जाइए, बोले- देश को मेरी जरूरत है जाना पड़ेगा
इश्तियाक की पत्नी रशीदा ने बताया कि शादी को 2 महीने हुए थे। सेना से बुलावा आने के बाद उन्होंने कहा कि हमें जाना पड़ेगा। मैंने कहा “लड़ाई लगी है मत जाइए”। उन्होंने कहा देश को मेरी जरूरत है। घर पर बैठकर नहीं रह सकता। उनकी शहादत के बाद सरकार ने हमें एक HP गैस एजेंसी, गांव में 5 बीघा जमीन और गाजीपुर शहर में एक प्लॉट और मकान बनवाने के लिए पैसा भी दिया था।

छोटे भाई का परिवार खंडहर में रहता है
माता-पिता के निधन के बाद छोटा भाई का परिवार इश्तियाक पुश्तैनी घर में रहता है। छोटे भाई की भी मृत्यु हो चुकी है। उनकी पत्नी अपने 4 बच्चों के साथ उसी खंडहरनुमा पुश्तैनी घर में रहती हैं। जबकि पत्नी सरकार के तरफ से मिले घर गाजीपुर में रहती हैं।

इश्तियाक खान का यह पुश्तैनी मकान है। घर के हालात बेहद जर्जर हैं। उनकी भाभी अपने 4 बच्चों के साथ इसी में रहती हैं।

इश्तियाक खान का यह पुश्तैनी मकान है। घर के हालात बेहद जर्जर हैं। उनकी भाभी अपने 4 बच्चों के साथ इसी में रहती हैं।

बड़े भाई इम्तियाज ने भी भाई के साथ मिलकर लड़ी कारगिल की लड़ाई
पखनपुरा गांव के कुल 4 सैनिकों ने कारगिल युध्द लड़ा। जिसमें इस्तियाक के बड़े भाई इम्तियाज भी शामिल थे। दोनों भाई एक साथ एक ही यूनिट में तैनात थे। युद्ध के दौरान इम्यियाज के पैर में बर्फ लगने के कारण इनको वापस बेस भेज दिया गया था। इस वक़्त वो बिहार पुलिस में अपनी सेवा दे रहे हैं।

शहादत के बाद उनके पार्थिव शरीर को गांव के ही कब्रगाह में दफनाया गया था। फोटो में दिख रहे उनके भाई इम्तियाज खान ने भी कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था।

शहादत के बाद उनके पार्थिव शरीर को गांव के ही कब्रगाह में दफनाया गया था। फोटो में दिख रहे उनके भाई इम्तियाज खान ने भी कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था।

(यह स्टोरी विकास सिंह ने की है। विकास दैनिक भास्कर के साथ इंटर्नशिप कर रहे हैं।​​​​​​)

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