SC बोला- कोर्ट टेप रिकॉर्डर की तरह काम न करें: सरकारी वकीलों को नसीहत- विरोधी गवाह से क्रॉस एग्जामिनेशन करते समय सार्थक बहस करें

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नई दिल्ली7 घंटे पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों के महज टेप रिकॉर्डर की तरह काम न करें, बल्कि उन्हें केस में सहभागी भूमिका निभानी चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने इस बात पर अफसोस जताया कि किसी आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील विरोधी गवाह से व्यावहारिक रूप से कोई प्रभावी और सार्थक बहस नहीं की जाती।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 3 मई को मामले में फैसला सुनाते वक्त यह भी कहा कि एक जज को न्याय की सहायता के लिए कार्यवाही की निगरानी करनी होती है, भले ही प्रॉसिक्यूशन (अभियोजक) कुछ मायनों में लापरवाह या सुस्त हो। कोर्ट को कार्यवाही को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना चाहिए, ताकि सच्चाई तक पहुंचा जा सके।

सुप्रीम कोर्ट बोला- अदालतों का कर्तव्य कि वे सच तक पहुंचें

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच उस मामले में सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1995 में एक व्यक्ति ने पत्नी की हत्या कर दी थी और उसकी आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया था।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विस और ज्यूडिशियरी के बीच बेहतर संबंध आपराधिक न्याय प्रणाली की आधारशिला हैं। शीर्ष कोर्ट बार-बार कह चुका है कि पब्लिक प्रॉसिक्यूटर जैसे पदों पर नियुक्ति जैसे मामलों में राजनीति का घालमेल नहीं होना चाहिए।

बेंच ने ये भी कहा कि जजों को ट्रायल में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। साथ ही गवाहों से केस के लिए जरूरी सामग्री हासिल करें, जो सही निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए जरूरी हो।

जनता को लगता है कि अभियोजन पक्ष के गवाह अक्सर मुकर जाते हैं- सुप्रीम कोर्ट
बेंच के मुताबिक, सरकारी वकील, जो अभियोजन के लिए जिम्मेदार हैं और अदालत के फैसलों के खिलाफ अपील कर सकते हैं, वे केस की कार्यवाही में जजों के स्वाभाविक समकक्षों में से एक हैं। जनता के मन में यह आशंका भी रहती है कि आपराधिक मुकदमा न तो स्वतंत्र है और न ही निष्पक्ष, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर इस तरह से इस तरह से केस लड़ रहा होता है, जहां अक्सर अभियोजन पक्ष के गवाह मुकर जाते हैं।

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CJI बोले- क्लास 5 में मुझे छड़ी से मार पड़ी:शर्म के मारे माता-पिता को नहीं बता पाया था, 10 दिन हाथ छिपाना पड़ा

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जब वे पांचवीं क्लास में थे, तो उन्हें एक छोटी सी गलती के लिए छड़ी से हाथ पर मार पड़ी थी। शर्म के मारे 10 दिन बाद तक वे अपने माता-पिता को ये बात नहीं बता पाए थे। उन्हें अपना घायल हाथ माता-पिता से छिपाना पड़ा था। CJI ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल की तरफ से आयोजित कराए गए नेशनल सिम्पोजियम ऑन जुवेनाइल जस्टिस में कहीं। पूरी खबर पढ़ें…

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