ISRO के आदित्य L1 की लॉन्चिंग आज 11:50 AM पर: पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर लैग्रेंज पॉइंट तक जाएगा, वहां से सूर्य की स्टडी करेगा

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बेंगलुरुएक घंटा पहले

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शुक्रवार को इसरो ने एक वीडियो शेयर करके बताया कि आदित्य L1 के लॉन्च की तैयारियां जारी हैं। - Dainik Bhaskar

शुक्रवार को इसरो ने एक वीडियो शेयर करके बताया कि आदित्य L1 के लॉन्च की तैयारियां जारी हैं।

चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) सूरज की स्टडी करने की तैयारी में है। इसके लिए आज सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर PSLV XL रॉकेट के जरिए श्री श्रीहरिकोटा से आदित्य L1 स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया जाएगा।

​आदित्य L1 सूर्य की स्टडी करने वाला पहला भारतीय मिशन होगा। ये स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के 4 महीने बाद लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) तक पहुंचेगा। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिसके चलते यहां से सूरज की स्टडी आसानी से की जा सकती है। इस मिशन की अनुमानित लागत 378 रुपए है।

आदित्य L1 की तस्वीरें…

आदित्य L1 स्पेसक्राफ्ट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा।

आदित्य L1 स्पेसक्राफ्ट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा।

आदित्य L-1 को बेंगलुरु के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में बनाया गया है। जिसके बाद स्पेसक्राफ्ट को इसरो सेंटर पहुंचाया गया।

आदित्य L-1 को बेंगलुरु के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में बनाया गया है। जिसके बाद स्पेसक्राफ्ट को इसरो सेंटर पहुंचाया गया।

आदित्य L1 काे पहले लो अर्थ ऑर्बिट में भेजा जाएगा। इसके बाद इसे इलिप्टिकल ऑर्बिट (अंडाकार कक्षा) में भेजा जाएगा।

आदित्य L1 काे पहले लो अर्थ ऑर्बिट में भेजा जाएगा। इसके बाद इसे इलिप्टिकल ऑर्बिट (अंडाकार कक्षा) में भेजा जाएगा।

स्पेसक्राफ्ट को सूर्य के पास स्थित लैगरेंज पॉइंट (L1) के हैलो ऑर्बिट में भेजा जाएगा। L1 पॉइंट पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है।

स्पेसक्राफ्ट को सूर्य के पास स्थित लैगरेंज पॉइंट (L1) के हैलो ऑर्बिट में भेजा जाएगा। L1 पॉइंट पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है।

आदित्य L1 को लैगरेंज पॉइंट तक पहुंचने में करीब चार महीने लगेंगे।

आदित्य L1 को लैगरेंज पॉइंट तक पहुंचने में करीब चार महीने लगेंगे।

लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?
लैगरेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है और सेंट्रिफ्युगल फोर्स बन जाता है।

ऐसे में इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है और एनर्जी भी कम लगती है। पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।

आदित्य L-1 पृथ्वी से L-1 पॉइंट तक पहुंचने के लिए इस ट्रैजेक्टरी पर चलेगा।

आदित्य L-1 पृथ्वी से L-1 पॉइंट तक पहुंचने के लिए इस ट्रैजेक्टरी पर चलेगा।

आदित्य L1 को तस्वीर में दिखाए गए L1 पॉइंट पर प्लेस किया जाएगा।

आदित्य L1 को तस्वीर में दिखाए गए L1 पॉइंट पर प्लेस किया जाएगा।

L1 पॉइंट पर ग्रहण बेअसर, इसलिए यहां भेजा जा रहा
आदित्य यान को सूर्य और पृथ्वी के बीच हेलो ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। इसरो का कहना है कि L1 पॉइंट के आस-पास हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी।

आदित्य L1 के 7 पेलोड सूर्य को समझेंगे
आदित्य यान, L1 यानी सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेंजियन पॉइंट पर रहकर सूर्य पर उठने वाले तूफानों को समझेगा। यह लैग्रेंजियन पॉइंट के चारों ओर की कक्षा, फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर के अलावा सबसे बाहरी परत कोरोना की अलग-अलग वेब बैंड्स से 7 पेलोड के जरिए टेस्टिंग करेगा।

आदित्य L1 के सात पेलोड कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटीज की विशेषताओं, पार्टिकल्स के मूवमेंट और स्पेस वेदर को समझने के लिए जानकारी देंगे। आदित्य L-1 सोलर कोरोना और उसके हीटिंग मैकेनिज्म की स्टडी करेगा।

आदित्य L1 देश में ही बनाया गया
ISRO के एक अधिकारी के मुताबिक, आदित्य L1 देश की संस्थाओं की भागीदारी से बनने वाला पूरी तरह स्वदेशी प्रयास है। बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ ने इसके पेलोड बनाए हैं। जबकि इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे ने मिशन के लिए सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड विकसित किया है।

सूर्य की स्टडी क्यों जरूरी?
जिस सोलर सिस्टम में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा बहती है। इन्हें हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्य्यन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष को और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

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