CAA लागू हुए एक महीना पूरा: असम से सिर्फ एक, बंगाल से कोई आवेदन नहीं; नियमों के चलते नागरिकता के आवेदन थमे

कोलकाता25 मिनट पहलेलेखक: प्रभाकर मणि तिवारी

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ठीक एक महीने पहले यानी 11 मार्च को जब देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू हुआ था, तब पश्चिम बंगाल और असम में सबसे ज्यादा खुशी मनाई गई थी। मिठाइयां बांटी गईं थीं, क्योंकि CAA से इन राज्यों के करीब 2.10 करोड़ लोगों को भारतीय नागरिकता मिलना आसान हो जाता।

लेकिन, हैरानी की बात है कि 10 अप्रैल तक बंगाल में एक भी शख्स ने नागरिकता के लिए आवेदन नहीं किया है और असम में सिर्फ एक व्यक्ति ही आवेदन के लिए आगे आया। जबकि यहां से करीब 10 लाख आवेदन आने की संभावना थी।

पश्चिम बंगाल में 2.70 लोगों के पास वोटर आईडी, पर नागरिकता नहीं
पश्चिम बंगाल में मतुआ 3.55 करोड़ तो राजबंशी समुदाय में 40 लाख लोग हैं। इनमें करीब 2.70 करोड़ वोटर हैं। इनमें भी 2 करोड़ ऐसे हैं, जिनके पूर्वज 1971 के बाद और 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत आए थे। इनके पास वोटर आईडी, आधार कार्ड तो है, लेकिन भारतीय नागरिकता नहीं है।

ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के महासचिव सुखेंद्र नाथ गायन ने बताया कि अभी किसी ने फार्म नहीं भरा है, क्योंकि इसके कॉलम नंबर 15 में बांग्लादेश का कोई आईडी प्रूफ मांगा गया है। ये हम कहां से लाएंगे? राजबंशी नेता बंशी बदन वर्मन का कहना है कि सीएए के नियम स्पष्ट नहीं हैं। अब चुनाव बाद ही देखेंगे। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर खुद मतुआ समुदाय से हैं। बीते दिनों उन्होंने कहा था कि वे भी आवेदन करेंगे, लेकिन उन्होंने अब तक नहीं किया।

केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने मतुआ समुदाय के साथ CAA नोटिफिकेशन जारी होने की खुशी मनाई थी।

केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने मतुआ समुदाय के साथ CAA नोटिफिकेशन जारी होने की खुशी मनाई थी।

असम: 10 लाख लोग चुप, न विरोध-न खुशी
CAA जिस दिन लागू हुआ, असम के 30 संगठन विरोध में थे। फिर भी करीब 10 लाख लाेग ऐसे थे, जिन्हें सीएए से नागरिकता मिलने की उम्मीद थी। कानून लागू होने के एक माह बद से यहां सीएए पर हर आवाज चुप है। इस डर के बीच बराक वैली के एक शख्स ने हिम्मत दिखाकर पोर्टल पर नागरिकता के लिए आवेदन कर दिया है।

खुद सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने इसका जिक्र किया है। उन्हें उम्मीद है कि 2000 आवेदन और आ सकते हैं। जबकि इस वैली में बांग्लादेश मूल के 50 से 80 हजार से लोग हैं। कम आवेदन का सवाल जब सीएम के राजनीितक सलाहकार पबित्र मार्गेरिटा से भास्कर ने पूछा तो उन्होंने बोलने से मना कर दिया।

बंगाली युवा छात्र फेडरेशन के सुदीप चौधरी के मुताबिक एनआरसी के बाद करीब 10 लाख लोग नागरिकता के लिए सीएए का इंतजार कर रहे थे। इनमें बांग्लादेश से आए बंगाली हिंदू हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया में जो पेंच है, उनसे लोग डर रहे हैं। बता दें कि सीएए को लेकर ऊपरी और मध्य असम की 8 सीटों पर असमिया प्रभाव है।

असम में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के स्टू़डेंट्स CAA के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए।

असम में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के स्टू़डेंट्स CAA के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए।

तृणमूल लोगों को आवेदन करने के नुकसान बता रही
सीएए के नियम-शर्तों में इसका उल्लेख कहीं भी नहीं है कि आवेदन रिजेक्ट हुआ तो क्या होगा? तृणमूल इसी के सहारे घर-घर जाकर लोगों को आवेदन करने के नुकसान बता रही है। भास्कर से तृणमूल सांसद ममता बाला ठाकुर ने कहा कि इस कानून से जिनकी नागरिकता छिनेगी, उन्हें डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा। समुदाय में यही डर फैला हुआ है।

भाजपा ने फार्म भरवाने बूथ कार्यकर्ता उतारे, ट्रेनिंग दी
मतुआ समुदाय का बंगाल में 10 लोकसभा सीटों पर असर है। इसलिए कम आवेदन से भाजपा टेंशन में है। हाल ही में पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कोलकाता में बनगांव और नदिया के कार्यकर्ताओं को पोर्टल पर फार्म भरवाने की ट्रेनिंग दी। चुनाव के बीच अब ये लोग जिला और बूथ कार्यकर्ताओं को ट्रेंड कर समुदाय के घर-घर जाकर आवेदन कराएंगे।

तस्वीर 12 मार्च की है। देश में CAA का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद पश्चिम बंगाल के भाजपा सुकांत मजूमदार ने दक्षिण दिनाजपुर के भाजपा कार्यालय में सेलिब्रेशन किया था।

तस्वीर 12 मार्च की है। देश में CAA का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद पश्चिम बंगाल के भाजपा सुकांत मजूमदार ने दक्षिण दिनाजपुर के भाजपा कार्यालय में सेलिब्रेशन किया था।

CAA क्या है, इसकी 3 बड़ी बातें…
केंद्र सरकार ने 11 मार्च को सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी CAA का नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके साथ ही यह कानून देशभर में लागू हो गया। CAA को हिंदी में नागरिकता संशोधन कानून कहा जाता है। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश अफगानिस्तान से आए गैर- मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया।

1. किसे मिलेगी नागरिकता: 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इन तीन देशों के लोग ही नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे।

2. भारतीय नागरिकों पर क्या असर: भारतीय नागरिकों से CAA का कोई सरोकार नहीं है। संविधान के तहत भारतीयों को नागरिकता का अधिकार है। CAA या कोई कानून इसे नहीं छीन सकता।

3. आवेदन कैसे कर सकेंगे: आवेदन ऑनलाइन करना होगा। आवेदक को बताना होगा कि वे भारत कब आए। पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेज न होने पर भी आवेदन कर पाएंगे। इसके तहत भारत में रहने की अवधि 5 साल से अधिक रखी गई है। बाकी विदेशियों (मुस्लिम) के लिए यह अवधि 11 साल से अधिक है।

CAA में मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया?
बीजेपी ने कहा कि केंद्र सरकार CAA के माध्यम से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रभावित अल्पसंख्यक समुदायों को राहत देना चाहती है। मुस्लिम समुदाय इन देशों में अल्पसंख्यक नहीं, बल्कि बहुसंख्यक है। यही कारण है कि उन्हें CAA में शामिल नहीं किया गया।

CAA को अदालतों में चुनौती दी गई थी, तब क्या हुआ?
CAA को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 200 से ज्यादा जनहित याचिकाएं दायर की गईं थी। 19 दिसंबर 2019 को उस वक्त के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस पर पहली बार सुनवाई करते हुए कहा था कि सरकार का पक्ष जाने बगैर कोर्ट इस पर कोई निर्णय नहीं लेगी।

जिसके बाद सरकार ने इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट भी प्रस्तुत किया था, जिसमें CAA को कानून का अंग बताकर इसका बचाव किया गया था। 6 दिसंबर 2022 के बाद इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई, जिसके बाद से ही याचिकाएं अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

CAA को लागू करने के लिए 4 साल से मामला क्यों अटका था?
CAA कानून पर 12 दिसंबर 2019 को मुहर लग गई थी। इसके बाद सरकार ने इस कानून को लागू करने वाले नियम बनाने के लिए समय मांगा था। तब से लेकर अब तक सरकार नियम बनाने की इस समय सीमा को 8 बार बढ़ा चुकी है। जिसके चलते सरकार को इस कानून का समर्थन कर रहे लोगों का विरोध भी झेलना पड़ा है।

हालांकि इन नियमों को बनने में देरी क्यों हो रही है, इस पर सरकार ने स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। गृहमंत्री अमित शाह ने अपने एक पुराने बयान में कहा था कि महामारी के कारण नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने में देरी हो रही है। वहीं कानून के पास होने के बाद नॉर्थ ईस्ट समेत देशभर में हुआ हिंसक विरोध भी कानून के लंबित होने का कारण हो सकता है।