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नई दिल्ली4 घंटे पहलेलेखक: सुजीत ठाकुर
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आगामी चुनावों को लेकर भाजपा ने कमर कस ली है। 2023 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी। रणनीति के मुताबिक किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का नाम प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। हालांकि, मौजूदा मुख्यमंत्रियों को चुनाव जीतने के बाद भी सीएम बने रहने का मौका मिल सकता है। इस साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं। जबकि अगले साल कर्नाटक, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं।
हिमाचल, गुजरात, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। पिछले दिनों संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन के बाद आला नेताओं की इस बात पर सहमति बनी कि सत्तारूढ़ राज्यों के नेतृत्व को लेकर सत्ता-विरोधी रुझान हैं। संगठन स्तर पर आपसी तालमेल की कमी है। ऐसे में मौजूदा मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के विकल्प से बचने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के इतिहास में ऐसे पहले ऐसे नेता हैं जिसके खिलाफ अब भी एंटी इंकम्बेंसी न के बराबर है।
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि, मौजूदा मुख्यमंत्रियों की भी यही राय है कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ पीएम का चेहरा होना चाहिए। केंद्र की योजनाओं का सत्तारूढ़ राज्य सरकार की तरफ से बेहतर डिलिवरी का नैरेटिव सेट करना चाहिए। राज्यों के मतदाताओं को यह संदेश देना चाहिए, मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार बेटर चॉइस है।
पार्टी के एक महासचिव ने कहा, सामूहिक नेतृत्व का मतलब यह नहीं है कि सत्ता में आने पर सीएम बदला जाएगा। हो सकता है कि मौजूदा सीएम को दोबारा मौका दिया जाए, जैसा गोवा या उत्तराखंड में हुआ।
जहां विपक्ष में भाजपा, वहां भी मोदी का ही चेहरा
जिन राज्यों में भाजपा विपक्ष में है वहां भी पार्टी मोदी के चेहरे के साथ सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के आंतरिक सर्वे में कोई मौजूदा सीएम ऐसा नहीं है जिसकी लोकप्रियता 25 फीसदी से ऊपर हो, जबकि पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 75 फीसदी से ऊपर है। ऐसे में पार्टी किसी भी मौजूदा सीएम को ही अपना चेहरा प्रोजेक्ट कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी।