सोशल मीडिया पर फैला है स्पर्म डोनेशन का मकड़जाल: ‘आर्य’ नस्ल के बच्चे पैदा हों इसलिए बना डोनर, देश में संभावित ‘IAS’ के स्पर्म की डिमांड

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नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: मृत्युंजय

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2012 में आयुष्मान खुराना की एक फिल्म आई थी; नाम था- ‘विकी डोनर’। फिल्म में आयुष्मान खुराना एक ऐसे युवक के किरदार में हैं, जो पैसों के लिए स्पर्म डोनेट करता है। इससे उसको मोटी कमाई होती है। लेकिन जब यह बात उसके पार्टनर को पता चलती है, तो वह नाराज होती है। हालांकि, यह मालूम चलने पर कि उसके स्पर्म से मां नहीं बन पा रही महिलाओं का सपना पूरा होता है, फिल्म में विकी की पार्टनर बनीं यामी गौतम बहुत खुश होती हैं।

यह तो हो गई फिल्मी कहानी की बात। लेकिन, आजकल असल जिंदगी में भी ऐसा कुछ होने लगा है। हालांकि, फिल्म में विकी पैसों के लिए स्पर्म डोनेट करता है तो रियल लाइफ में कुछ ‘सुपर डोनर’ अपनी नस्ल बढ़ाने और कथित मर्दानगी की डींगे हांकने के लिए ऐसा करते हैं।

इंटरनेट स्पर्म डोनेशन का अड्डा बना हुआ है। सोशल मीडिया साइट्स पर सैकड़ों की तादाद में स्पर्म डोनर मौजूद हैं, जो मां बनने की ख़्वाहिशमंद महिलाओं को ‘अच्छी नस्ल की औलाद’ देने का वादा करते हैं। इनमें से कुछ ऐसा पैसों के लिए करते हैं तो कुछ अपनी सेक्सुअल डिजायर को पूरा करना चाहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी नस्ल की आबादी को बढ़ाने के लिए स्पर्म डोनर बने हैं।

आइए, अब हम आपको स्पर्म डोनेशन की दुनिया के तमाम पहलुओं के बारे में बताते हैं…

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि यह मामला चर्चा में क्यों है?

दरअसल, लंदन से छपने वाले प्रतिष्ठित अखबार ‘द संडे’ टाइम्स ने एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में ऑनलाइन गैर-कानूनी ढंग से चलने वाला स्पर्म डोनेशन सिंडिकेट महिलाओं के उत्पीड़न का ज़रिया बनता जा रहा है। रिपोर्ट के सामने आने के बाद इसको लेकर तमाम मुद्दों पर चर्चा हो रही है। स्पर्म डोनेशन का तरीका, नैतिकता का सवाल जैसे कई मुद्दों पर लोगों की राय काफी बंटी हुई है। इसके लिए अभी तक स्पष्ट कानून भी नहीं हैं।

‘गोरे-आर्य’ बच्चे पैदा हों, इसलिए बना 800 बच्चों का बाप

‘द संडे टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन के धुर-दक्षिणपंथी संगठन से जुड़ा एक शख्स अब तक 800 से अधिक महिलाओं को स्पर्म डोनेट कर चुका है। उस शख्स का मानना है कि ऐसा करके वह ‘ब्रिटेन में गोरे और आर्य’ नस्ल की आबादी को बढ़ा रहा है। ब्रिटेन में गोरे नस्ल की आबादी बढ़ाने के लिए वह शख्स इतना जुनूनी है कि अपने खर्चे से मां बनने की ख़्वाहिशमंद महिलाओं तक स्पर्म पहुंचाता है।

स्पर्म डोनेशन के झांसे में रेप का शिकार हो रहीं महिलाएं

कुछ ऐसी भी महिलाएं सामने आई हैं जिनके साथ स्पर्म डोनर्स ने बलात्कार किया। रिपोर्ट के मुताबिक, एक महिला को उसके डोनर ने होटल के कमरे में फ्रिज किया हुआ स्पर्म देने के लिए बुलाया। लेकिन जब महिला वहां पहुंची तो डोनर ने उसके साथ जबरदस्ती की। शर्म के मारे महिला ने ये बात अपने घरवालों या पुलिस को भी नहीं बताई। अब वह महिला उसी बलात्कारी डोनर के बच्चे की मां बनने वाली है।

भारत में भी बने हैं ऐसे ग्रुप्स, क्लाइंट से करते हैं ऑनलाइन डील

ब्रिटेन की तरह भारत में नस्ल बढ़ाने के लिए बिना पैसे लिए स्पर्म डोनेशन के मामले अभी सामने नहीं आए हैं। यहां ज्यादातर ऐसा पैसों के लिए किया जाता है। डोनर आमतौर पर बेरोजगार या पढ़ रहे युवा होते हैं। फेसबुक समेत कई सोशल मीडिया साइट्स पर ऐसे ग्रुप बने हैं, जिस पर डोनर अपने संभावित क्लाइंट को ढूंढ़ते हैं।

‘बेस्ट स्पर्म’ नाम के ऐसे ही फेसबुक ग्रुप में एक डोनर ने खुद को स्मार्ट, हेल्दी, धार्मिक और नॉन अल्कोहलिक बताकर ग्राहकों को मैसेज करने के लिए कहा था। साथ ही उसने लिखा कि वह लोगों के परिवार को बढ़ाने में उनकी मदद करेगा और उनकी प्राइवेसी का भी ख्याल रखेगा।

नियम कहता है डोनर और मां एक-दूसरे से अनजान हों

देश में भले ही डोनर और ग्राहक एक-दूसरे से डील कर रहे हों। लेकिन स्पर्म डोनेशन का यह तरीका लीगल नहीं है। श्री IVF क्लिनिक, मुंबई के डॉक्टर जय मेहता के मुताबिक, देश में नियम है कि स्पर्म देने वाले को यह पता नहीं होना चाहिए कि उससे कौन-सी महिला मां बनने वाली है। ठीक इसी तरह, उस महिला को भी पता नहीं होना चाहिए कि स्पर्म डोनर कौन है? वे दोनों सरकार से मान्यता प्राप्त स्पर्म बैंक की मदद से इनडायरेक्टली एक-दूसरे से जुड़े होने चाहिए।’

डोनर और रिसिवर की पहचान इसलिए छिपाई जाती है, ताकि बाद में बच्चे पर स्पर्म डोनर कोई दावा न कर सके। हालांकि, ब्रिटेन में ऐसा नियम है कि स्पर्म डोनेशन से पैदा हुआ बच्चा 18 साल पूरे कर लेने के बाद अपने बाॅयलॉजिकल पिता से मिल सकता है।

दिल्ली में ‘IAS मैटेरियल’ के स्पर्म की कीमत ज्यादा

ऑनलाइन के अलावा दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में स्पर्म बैंक जाकर भी सीमन बेचा जा रहा है। दिल्ली जैसे शहरों में सैकड़ों की तादाद में ऐसे स्पर्म बैंक, जहां युवा 400 से 600 रुपए में अपना स्पर्म देते हैं।

दक्षिणी दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले 22 साल के राहुल (बदला हुआ नाम) ने वुमन भास्कर को बताया कि ‘हम लोग सप्ताह में 2 से 3 बार स्पर्म डोनेट कर लेते हैं। हम लोगों की तरह पढ़ने-लिखने वाले ‘IAS मैटेरियल स्टूडेंट्स’ के स्पर्म की मांग और कीमत ज्यादा है।’

स्पर्म डोनेशन के लिए ICMR ने बना रखे हैं नियम, पर नहीं होता पालन

देश में स्पर्म डोनेशन के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR ) ने नियम-कायदों की एक पूरी लिस्ट बनाई है। लेकिन जमीन पर इन नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता।

रिश्तेदार नहीं कर सकते हैं स्पर्म डोनेट

कई निस्संतान कपल्स की इच्छा होती है कि उन्हें इसके ही वंशा को स्पर्म मिले। लेकिन आईसीएमआर की गाइडलाइन में इसे सही नहीं माना गया है। इसके मुताबिक पति-पत्नी का रिश्तेदार या दोस्त उन्हें स्पर्म डोनेट नहीं कर सकता।

6 महीने डीपफ्रीजर में रहने के बाद यूज होता है स्पर्म

ICMR के नियमों के मुताबिक, इस्तेमाल करने से पहले स्पर्म को 6 महीने के लिए डीप फ्रीजर में रखा जाता है। इस दौरान स्पर्म और डोनर की जांच की जाती है। यह देखा जाता है कि कहीं डोनर को HIV, हेपटाइटिस बी-सी, टीबी, कैंसर या कोई अनुवांशिक बीमारी तो नहीं है। तामाम जांचों में पास होने के बाद भी उस स्पर्म का इस्तेमाल फर्टिलाइजेशन के लिए किया जाता है।

अगर जांच में स्पर्म में किसी तरह की खराबी पाई जाती है तो उसे नष्ट कर दिया जाता है।

आखिर देश में स्पर्म की इतनी डिमांड क्यों है?

Ernst & Young की 2015 की स्टडी के मुताबिक देश के 10 से 12% कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे हैं। यानी देश की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा बच्चे पैदा करने के लिए IVF जैसे तरीकों की ओर देख रहा है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में देश में स्पर्म की मांग तेजी से बढ़ी है।

सस्ते स्पर्म के लिए भारत आते हैं विदेशी

दुनिया भर में स्पर्म की मांग तेजी से बढ़ी है। पश्चिमी देशों में कड़े कानून और महंगे ट्रीटमेंट की वजह से भारत IVF हब के रूप में उभरा है। सस्ते स्पर्म के चलते हर साल 20 से 25 हजार विदेशी भारत में IVF कराते हैं। दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों के अलावा छोटे-छोटे शहरों में भी IVF क्लिनिक बड़ी संख्या में फल-फूल रहे हैं।

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