सिल्क्यारा टनल के निर्माण में कई अनियमितताएं थीं: शुरुआती प्लान में बाहर निकलने के 3 रास्ते थे, कंपनी ने एक भी नहीं बनाया

  • Hindi News
  • National
  • Irregularities In The Construction Of Silkyara Tunnel Where 41 Labors Were Trapped For 16 Days

उत्तरकाशी/नई दिल्ली22 मिनट पहलेलेखक: एम. रियाज हाशमी

  • कॉपी लिंक

सिल्क्यारा-डंडारगांव टनल का काम सेफ्टी ऑडिट के बाद भी जारी रहेगा, क्योंकि यह टनल 12 हजार करोड़ रुपए के महत्वाकांक्षी चार धाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है। हालांकि इसके निर्माण की खामियों पर उठ रहे सवालों पर कंस्ट्रक्शन एजेंसी और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय अभी चुप है।

भास्कर पड़ताल में पता चला है कि टनल प्रोजेक्ट की डीपीआर और निर्माण में बड़ा अंतर है। सरकारी वेबसाइट infracon.nic.in पर जून 2018 में अपलोड इस प्रोजेक्ट का आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) देखेंगे तो नेशनल हाईवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेट लिमिटेड के बनाए टनल का प्लान समझ आएगा। इसमें इमरजेंसी में टनल से बाहर निकलने के तीन रास्ते थे, लेकिन कंपनी ने अब तक एक भी नहीं बनाया। टनल के निरीक्षण में भी विशेषज्ञों ने इसकी अनदेखी की।

सिल्क्यारा टनल चूने की चट्‌टान पर बनी, इसके ढहने का खतरा ज्यादा
भास्कर एक्सपर्ट्स भूवैज्ञानिक नवीन जुयाल, भूवैज्ञानिक रवि चोपड़ा और भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद एसपी सती ने बताया कि इस प्रोजेक्ट का भू वैज्ञानिक और भू तकनीकी सर्वेक्षण ठीक से नहीं हुआ। सुरंग का स्थान मेन सेंट्रल थ्रस्ट के करीब है और यह क्षेत्र भूकंप संभावित है। सर्वेक्षण में इस अहम तथ्य की अनदेखी की गई। इस प्रोजेक्ट की डीपीआर और निर्माण कंपनी के काम की गहन जांच होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सिल्क्यारा सुरंग चूने की चट्टान (तलछटी चट्टान) वाले क्षेत्र में बनाई जा रही है, जिससे इसके बार-बार ढहने का खतरा है। इसके दो संभावित कारण हैं। पहला- ब्लाइंड शियर जोन की संभावना, जिसकी पहले रिपोर्ट नहीं की गई थी। दूसरा- सुरंग बनाने के लिए विस्फोटकों का उपयोग। यह घटना सुरंग निर्माण सुरक्षा प्रोटोकॉल से समझौते का परिणाम है।

टनल का A To Z : सुरंग की खुदाई में भी गलती की

  • मंत्रालय की एस्टिमेट्स समिति की रिपोर्ट के मुताबिक 1383.78 करोड़ के प्रोजेक्ट में दो लेन की बाय-डायरेक्शन टनल, इसके ऑपरेशन और मेंटेनेंस के अलावा संपर्क मार्ग और एस्केप पैसेज (बाहर निकलने के रास्ते) का निर्माण शामिल था।
  • एनएचआईडीसीएल ने शॉर्टलिस्टेड 10 कंस्ट्रक्शन कंपनियों में से एनईसीएल (नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड) को 853.79 करोड़ में ठेका ईपीसी मोड में दिया। फिर एनईसीएल ने तीन अन्य कंपनियों श्री साई कंस्ट्रक्शन, नव दुर्गा और पीबी चड्ढा के जरिए मजदूरों को अनुबंधित किया।
  • तय हुआ कि टनल, एस्केप पैसेज और अप्रोच रोड आठ जुलाई 2022 तक बन जाएंगे। इसका काम जुलाई 2018 में शुरू हुआ, लेकिन अब तक सिर्फ 56% ही काम हो पाया। अब इसकी डेडलाइन मई 2024 है। रेस्क्यू पैसेज तो टनल में है ही नहीं।
  • भास्कर ने जब कंपनी से सवाल किया तो कहा गया कि टनल में इसकी जरूरत नहीं थी, क्योंकि दोनों लेन के बीच दीवार में इमरजेंसी एग्जिट गेट का प्रावधान है। इससे आपात स्थिति में एक से दूसरी तरफ मूवमेंट होगा। हकीकत ये है कि सुरंग में कहीं भी एग्जिट गेट अब तक नहीं हैं।
  • सुरंग के खोदे गए हिस्से में सुरक्षा (ह्यूम) पाइप नहीं डाले गए। इस प्रोजेक्ट के लिए एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक के रूप में काम कर रहे कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि कमजोर स्थानों पर ह्यूम पाइप का उपयोग करने की योजना थी, लेकिन किसी को भी एहसास नहीं था कि इस पैमाने पर कुछ हो सकता है।
  • 10 और 11 नवंबर को भी मलबा गिर रहा था, जिसे जेसीबी मशीन से एक लोडर में भरा गया। उस वक्त भी कंपनी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।मलबा गिरने के बाद आपदा की प्रारंभिक प्रतिक्रिया में भी देरी हुई। फंसे हुए मजदूरों और बचाव टीमों के बीच बातचीत का कोई भी चैनल नहीं था। जबकि सुरक्षा के लिहाज से ये जरूरी था।कंपनी के पास ऐसी चुनौती से निपटने के लिए एक भी विशेष मशीन नहीं थी, न ही उसने किसी दूसरी कंपनी से इसे लेकर करार किया था।कुछ टनल विशेषज्ञों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सिल्क्यारा सुरंग की खुदाई के दौरान भी गलती हुई। इस वजह से उसके अंतिम आकार और सपोर्ट के लिए सेकंड लेयर के दौरान पुन: प्रोफाइलिंग करनी पड़ी। लाइनिंग के दौरान रीप्रोफाइलिंग भी बेतरतीब तरीके से की गई।

जांच कमेटी भी सवालों में…
हादसे की जांच समिति का नेतृत्व निदेशक, भूस्खलन शमन और प्रबंधन केंद्र (एलएमएमसी) उत्तराखंड कर रहे हैं। एलएमएमसी नया स्वायत्त निकाय है। इनमें कोई भू-वैज्ञानिक नहीं है। सिर्फ इंजीनियर हैं। 6 सदस्यीय समिति में श्रमिक संघ या स्वतंत्र विशेषज्ञ भी नहीं है।