संविधान को ताकत देने वाली 15 महिलाएं: 284 पुरुषों के साथ बनाया संविधान; किसी ने समान मताधिकार तो किसी ने लैंगिक समानता मांगी थी

नई दिल्ली18 घंटे पहले

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संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे, जिनमें 15 महिलाएं भी थीं। भारत की संविधान-निर्मात्रियों का यह समूह-चित्र दुर्लभ है। तस्वीर सोर्स- सीडब्ल्यूडीएस आर्काइव। - Dainik Bhaskar

संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे, जिनमें 15 महिलाएं भी थीं। भारत की संविधान-निर्मात्रियों का यह समूह-चित्र दुर्लभ है। तस्वीर सोर्स- सीडब्ल्यूडीएस आर्काइव।

यूं तो डॉ. भीमराव आम्बेडकर को संविधान का निर्माता माना जाता है, लेकिन जिस सभा ने हमारे इस संविधान को आकार दिया, उसमें 299 सदस्य थे। इनमें से 15 महिलाएं भी थीं, जिन्होंने न केवल संविधान को संपूर्ण बनाने में मुख्य भूमिका निभाई, बल्कि उसमें गरीबों, वंचितों, महिला अधिकारों को प्रमुखता से शामिल कराकर किसी भी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

संविधान सभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू

संविधान सभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू

75वें गणतंत्र दिवस पर पढ़िए उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने गणतंत्र को ताकत देने वाले संविधान को बनाने में भूमिका निभाई…

  1. अम्मू स्वामीनाथन : समान मतदान अधिकार की पैरवी की तमिलनाडु की अम्मू स्वामीनाथन ने महिलाओं के लिए समान मतदान अधिकार की वकालत की थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के कारण उन्हें जेल भी हुई। बाल विवाह और देवदासी जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन पर काम किया।
  2. बेगम कुदसिया : हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पक्षधर पंजाब के राजसी परिवार में जन्मी बेगम कुदसिया ऐजाज रसूल संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला थीं। वे राजनीति में उतरीं तो फतवा जारी किया गया। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी।
  3. दक्षायनी वेलायुधन : आरक्षण के खिलाफ रहीं केरल निवासी दक्षायनी वेलायुधन संविधान सभा में एकमात्र दलित महिला थीं। इनके समुदाय के लोगों को सार्वजनिक सड़क पर चलने तक की मनाही थी। फिर भी दक्षायनी सामाजिक आरक्षण के खिलाफ थीं।
  4. एनी मैस्करीन : रियासतों के विलय में निभाई भूमिका त्रिवेंद्रम में जन्मी एनी मैस्करीन केरल की पहली महिला सांसद थीं। वे देश में रियासतों के विलय की मुहिम की अग्रणी नेताओं में थीं। संविधान सभा में हिंदू कोड बिल पर काम करने वाली चयन समिति में भी रहीं।
  5. दुर्गाबाई देशमुख : हिंदी को बढ़ावा दिया आंध्रप्रदेश की दुर्गाबाई देशमुख ने केवल 10 साल की उम्र में ही अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का बहिष्कार कर महिलाओं के लिए हिंदी स्कूल खोल लिया था।
  6. हंसा जीवराज मेहता : लैंगिक समानता की हिमायती गुजरात की हंसा मेहता ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में प्रतिनिधित्व कर ‘सभी पुरुषों को समान बनाया गया है’ में ‘पुरुष’ शब्द को ‘मानव’ करवाया।
  7. कमला चौधरी : स्वतंत्रता संग्राम में छह बार जेल गईं मेरठ निवासी कमला चौधरी को एक सभा में तिरंगा फहराने पर अंग्रेजों ने जेल की सजा सुना दी थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छह बार जेल गईं।
  8. लीला रॉय : दंगों में 400 महिलाओं को बचाया लीला रॉय ढाका विवि की पहली छात्रा थीं। नोआखाली दंगों के दौरान राहत केंद्र खोलकर 6 दिनों में 90 मील पैदल यात्रा करके 400 महिलाओं को बचाया था।
  9. मालती चौधरी : किसान अधिकारों की आवाज उठाई चौधरी का जन्म कलकत्ता में हुआ था। बाद में उड़ीसा चली गईं। गांधीजी उन्हें ‘तूफानी’ कहते थे। देश की पहली महिला मार्क्सवादी नेताओं में से थीं। गरीब किसानों और आदिवासियों ने उन्हें ‘उड़ीसा की मां’ नाम दिया था।
  10. रेणुका राय : पैतृक संपत्ति में अधिकारों के लिए मुहिम पश्चिम बंगाल से संविधान सभा की सदस्य बनने वाली रेणुका राय ने पैतृक संपत्ति में विरासत के अधिकारों के लिए महिलाओं के पक्ष में अभियान चलाया। हालांकि पहले वे महिला आरक्षण के खिलाफ थीं।
  11. राजकुमारी अमृत कौर : एम्स की स्थापना में भूमिका कौर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गईं। एम्स दिल्ली की स्थापना के दौरान सरकार के पास फंड की कमी होने पर जगह-जगह घूमकर चंदा इकट्‌ठा किया। आजाद भारत की पहली कैबिनेट मंत्री बनीं।
  12. पूर्णिमा बैनर्जी : दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल ये प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली की छोटी बहन थीं। 24 दिन के दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन्होंने जेल में रहकर बीए की परीक्षा दी थी।
  13. सरोजिनी नायडू : आजादी की लड़ाई लड़ी। प्लेग महामारी के दौरान काम किया। 1928 में ‘केसर-ए-हिंद’ सम्मान मिला।
  14. सुचेता कृपलानी : भारत छोड़ो आंदोलन के लिए एक साल जेल में रहीं। देश की पहली महिला मुख्यमंत्री (उप्र) बनीं।
  15. विजयलक्ष्मी पंडित : पं. नेहरू की बड़ी बहन विजयलक्ष्मी ने भतीजी इंदिरा गांधी के आपातकाल के विरोध में पार्टी छोड़ दी थी।

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