श्रमिकों को बचाने वाले रैट होल माइनर्स का दर्द: बोले- CM धामी ने 50-50 हजार रुपए दिए, यह छोटी रकम; परमानेंट नौकरी मिले

देहरादून24 मिनट पहले

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12 नवंबर को सिलक्यारा टनल में 41 मजदूर फंस गए थे। 28 नवंबर को सभी का रेस्क्यू किया गया था। - Dainik Bhaskar

12 नवंबर को सिलक्यारा टनल में 41 मजदूर फंस गए थे। 28 नवंबर को सभी का रेस्क्यू किया गया था।

उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में 12 नवंबर को 41 मजदूर फंस गए थे। एक्सपर्ट्स की मदद से सभी मजदूरों को 17वें दिन टनल से बाहर निकाला गया था। हालांकि ऑपरेशन के फाइनल स्टेज में रैट होल माइनर्स ने अहम भूमिका निभाई थी। उत्तराखंड सरकार ने 21 दिसंबर को इनका सम्मान किया था।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 12 रैट माइनर्स को शॉल और 50-50 हजार रुपए का चेक देकर सम्मानित किया था। दो दिन बाद अब इन रैट माइनर्स ने चेक को कैश कराने से इनकार कर दिया है। इनका कहना है कि हमनें जो काम किया, उसके लिए हमारा उचित सम्मान नहीं हुआ। ​​

रैट माइनर्स के लीडर वकील हसन ने कहा कि जब मशीनों की मदद से टनल में फंसे श्रमिकों तक नहीं पहुंचा जा रहा था तब हमने बिना किसी शर्त के मदद की। अपनी जान जोखिम में डालकर हाथों से ड्रिलिंग की। हम CM धामी के इस कदम की सराहना करते हैं, लेकिन राशि से संतुष्ट नहीं हैं। हम सभी ने चेक कैश नहीं कराने का फैसला किया है।

उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने रैट होल माइनर्स को 50 हजार रुपए के चेक सौंपे हैं।

उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने रैट होल माइनर्स को 50 हजार रुपए के चेक सौंपे हैं।

परमानेंट नौकरी दिए जाने की मांग
वकील ने कहा कि जिस दिन हमें चेक दिए गए थे, मैंने उसी दिन CM धामी से असहमति जाहिर की थी। हमें अधिकारियों ने आश्वासन दिया, जिसके चलते हम वापस लौट आए। हमें लगा कि एक-दो दिन में सरकार हमारे लिए नई घोषणा करेगी। यदि अधिकारियों का किया वादा पूरा नहीं होता है तो हम अपने चेक वापस कर देंगे। हसन ने रैट माइनर्स को परमानेंट नौकरी दिए जाने की बात कही है।

एक और श्रमिक मुन्ना का कहना है कि टनल में फंसे श्रमिकों को बचाने के लिए हम मौत के मुंह में चले गए। अपने परिवार वालों की भी बात नहीं मानी। 50 हजार रुपए बहुत ही मामूली रकम है।

रैट होल माइनिंग क्या है?
रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई। मतलब से ही साफ है कि छेद में घुसकर चूहे की तरह खुदाई करना। इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है और हाथ से ही मलबे को बाहर निकाला जाता है।

रैट होल माइनिंग नाम की प्रकिया का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है, लेकिन रैट होल माइनिंग काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है।

सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाने वाले रैट माइनर्स की टीम। जिन्होंने मैन्युअल ड्रिलिंग करके मजूदरों को बाहर निकाला था। ऑपरेशन सफल होने के बाद टीम खुशी मनाते नजर आई थी।

सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाने वाले रैट माइनर्स की टीम। जिन्होंने मैन्युअल ड्रिलिंग करके मजूदरों को बाहर निकाला था। ऑपरेशन सफल होने के बाद टीम खुशी मनाते नजर आई थी।

सिलक्यारा टनल हादसे के बारे में तारीख दर तारीख से समझें

12 नवंबर: सुबह 4 बजे टनल में मलबा गिरना शुरू हुआ तो 5.30 बजे तक मेन गेट से 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया। टनल से पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप से ऑक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजा जाने लगा। बचाव कार्य में NDRF, ITBP और BRO को लगाया गया। 35 हॉर्स पावर की ऑगर मशीन से 15 मीटर तक मलबा हटा।

13 नवंबर: शाम तक टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी। दोबारा मलबा आने से 20 मीटर बाद ही काम रोकना पड़ा। मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जाना शुरू हुआ।

14 नवंबर: टनल में लगातार मिट्टी धंसने से नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट्स से सलाह ली गई। ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया। लेकिन लगातार मलबा आने से 900 एमएम यानी करीब 35 इंच मोटे पाइप डालकर मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बना। इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई, लेकिन ये मशीनें भी असफल हो गईं।

15 नवंबर: रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत कुछ देर ड्रिल करने के बाद ऑगर मशीन के कुछ पार्ट्स खराब हो गए। टनल के बाहर मजदूरों के परिजन की की पुलिस से झड़प हुई। वे रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी से नाराज थे। PMO के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान हैवी ऑगर मशीन लेकर चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचा। ये पार्ट्स विमान में ही फंस गए, जिन्हें तीन घंटे बाद निकाला जा सका।

रैट माइनर्स ने टनल के अंदर से कुछ इस तरह छोटे फावड़े से मिट्टी निकाली थी।

रैट माइनर्स ने टनल के अंदर से कुछ इस तरह छोटे फावड़े से मिट्टी निकाली थी।

16 नवंबर: 200 हॉर्स पावर वाली हैवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन ऑगर का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ। शाम 8 बजे से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ। रात में टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाले गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रेस्क्यू ऑपरेशन की रिव्यू मीटिंग की।

17 नवंबर: सुबह दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ी। उन्हें दवा दी गई। दोपहर 12 बजे हैवी ऑगर मशीन के रास्ते में पत्थर आने से ड्रिलिंग रुकी। मशीन से टनल के अंदर 24 मीटर पाइप डाला गया। नई ऑगर मशीन रात में इंदौर से देहरादून पहुंची, जिसे उत्तरकाशी के लिए भेजा गया। रात में टनल को दूसरी जगह से ऊपर से काटकर फंसे लोगों को निकालने के लिए सर्वे किया गया।

18 नवंबर: दिनभर ड्रिलिंग का काम रुका रहा। खाने की कमी से फंसे मजदूरों ने कमजोरी की शिकायत की। PMO के सलाहकार भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे। पांच जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनी।

19 नवंबर: सुबह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड CM पुष्कर धामी उत्तरकाशी पहुंचे, रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लिया और फंसे लोगों के परिजन को आश्वासन दिया। शाम चार बजे सिल्क्यारा एंड से ड्रिलिंग दोबारा शुरू हुई। खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने की शुरुआत हुई। टनल में जहां से मलबा गिरा है, वहां से छोटा रोबोट भेजकर खाना भेजने या रेस्क्यू टनल बनाने का प्लान बना।

20 नवंबर: इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंचकर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए 2 स्पॉट फाइनल किए। मजदूरों को खाना देने के लिए 6 इंच की नई पाइपलाइन डालने में सफलता मिली। ऑगर मशीन के साथ काम कर रहे मजदूरों के रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू टनल बनाई गई। BRO ने सिल्क्यारा के पास वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए सड़क बनाने का काम पूरा किया।

21 नवंबर को पहली बार टनल के अंदर 6 इंच की पाइप के जरिए एंडोस्कॉपिक कैमरा भेजा गया था। पहली बार 41 मजदूरों को देखा गया। इसी पाइप से मजदूरों को खाना और जरूरी सामान भेजा गया था।

21 नवंबर को पहली बार टनल के अंदर 6 इंच की पाइप के जरिए एंडोस्कॉपिक कैमरा भेजा गया था। पहली बार 41 मजदूरों को देखा गया। इसी पाइप से मजदूरों को खाना और जरूरी सामान भेजा गया था।

21 नवंबर: एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई। उनसे बात भी की गई। सभी मजदूर ठीक हैं। मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई।

केंद्र सरकार की ओर से 3 रेस्क्यू प्लान बताए गए। पहला- ऑगर मशीन के सामने रुकावट नहीं आई तो रेस्क्यू में 2 से 3 दिन लगेंगे। दूसरा- टनल की साइड से खुदाई करके मजदूरों को निकालने में 10-15 दिन लगेंगे। तीसरा- डंडालगांव से टनल खोदने में 35-40 दिन लगेंगे।

उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा टनल चारधाम रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है।

उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा टनल चारधाम रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है।

22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सफलता मिली। सिल्क्यारा की तरफ से ऑगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गई। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया।

23 नवंबर: अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई। इससे पहले 1.8 मीटर की ड्रिलिंग हुई थी। इसके बाद ड्रिलिंग के लिए ऑगर मशीन फिर मलबे में डाली गई, लेकिन टेक्निकल ग्लिच के चलते रेस्क्यू टीम को ऑपरेशन रोकना पड़ा। उधर, NDRF ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।

24 नवंबर: सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया। स्टील के पाइप और टनल में डाले जा रहे पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया।

25 नवंबर: शुक्रवार को ऑगर मशीन टूटने के चलते रुका रेस्क्यू का काम शनिवार को भी रुका रहा। इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अरनॉल्ड डिक्स ने कहा है कि अब ऑगर से ड्रिलिंग नहीं होगी, न ही दूसरी मशीन बुलाई जाएगी।

मजदूरों को बाहर निकालने के लिए दूसरे विकल्पों की मदद ली जाएगी। बी प्लान के तहत टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी हो रही है। NDMA का कहना है कि मजदूरों तक पहुंचने के लिए करीब 86 मीटर की खुदाई करनी होगी।

26 नवंबर: उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए पहाड़ की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई। रात 11 बजे तक 20 मीटर तक खुदाई हुई। वर्टिकल ड्रिलिंग के तहत पहाड़ में ऊपर से नीचे की तरफ बड़ा होल करके रास्ता बनाया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा- अगर कोई रुकावट नहीं आई तो हम 100 घंटे यानी 4 दिन में मजदूरों तक पहुंच जाएंगे।

27 नवंबर: सुबह 3 बजे सिल्क्यारा की तरफ से फंसे ऑगर मशीन के 13.9 मीटर लंबे पार्ट्स निकाल लिए। देर शाम तक ऑगर मशीन का हेड भी मलबे से निकाल लिया गया। इसके बाद रैट माइनर्स ने मैन्युअली ड्रिलिंग शुरू कर दी। रात 10 बजे तक पाइप को 0.9 मीटर आगे पुश भी किया गया। साथ ही 36 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग हो गई थी।

रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की थी। ये बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे। ट्राली से एक बार में तकरीबन 2.5 क्विंटल मलबा लेकर बाहर आते थे। पाइप के अंदर इन सबके पास बचाव के लिए ऑक्सीजन मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए विशेष चश्मा और हवा के लिए एक ब्लोअर भी मौजूद रहता था।

28 नवंबर: 28 नवंबर की शाम 8.35 बजे यानी 12 नवंबर से 17 दिन, करीब 399 घंटे बाद पहला मजदूर शाम 7.50 बजे बाहर निकाला गया था। पहले बैच में 5 मजदूरों को बाहर निकाला गया था। 45 मिनट बाद रात 8.35 बजे सभी को बाहर निकाल लिया गया था। मजदूर खुद ही 800MM के स्टील पाइप से क्रॉल करके (घुटनों के बल) बाहर आए थे।

भास्कर एक्सप्लेनर- 41 मजदूर, 17 दिन और 6 बड़ी अड़चनें:कुछ तकनीक, कुछ जुगाड़; उत्तरकाशी टनल से जीवित निकालने के लिए क्या-क्या किया गया

12 नवंबर 2023, सुबह करीब 5.30 बजे का वक्त। उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा-डंडालगांव सुरंग का एक हिस्सा भरभराकर धंस गया। मलबा करीब 60 मीटर तक फैल गया और टनल से बाहर निकले का रास्ता ब्लॉक हो गया। अंदर काम कर रहे 41 मजदूर बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गए। पूरी खबर पढ़ें…

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