रिकॉर्ड बारिश से MP के डैम फुल: इंदौर-भोपाल में नहीं रहेगा जलसंकट; खेती के लिए बिजली-पानी की टेंशन भी खत्म

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भोपालएक मिनट पहलेलेखक: संतोष सिंह

मध्यप्रदेश में इस बार बारिश ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। MP में 1 जून से अब तक 30 इंच पानी गिरना चाहिए था, जबकि 37 इंच बारिश हो चुकी है। यह सामान्य से करीब 25% ज्यादा है। भोपाल सहित प्रदेश के 22 जिलों में सामान्य से 21% ज्यादा जबकि इंदौर समेत 22 जिलों में सामान्य बारिश हुई है।

दतिया, रीवा, सीधी, झाबुआ और आलीराजपुर में सबसे खराब स्थिति है। यहां पर सामान्य से बहुत कम पानी गिरा है। भारी बारिश से बरगी, ओंकारेश्वर, कोलार, गांधी सागर, इंदिरा सागर सहित सभी डैम लबालब हो गए हैं। इन डैम के कैचमेंट एरिया में इतनी अधिक बारिश हुई कि गेट एक महीने पहले ही खोलने पड़े।

ये डैम भोपाल, इंदौर, जबलपुर सहित कई शहरों की प्यास बुझाते हैं, इसलिए गर्मी तक इन शहरों सहित कई गांवों में वाटर सप्लाई का इंतजाम हो गया है। लाखों हेक्टेयर में फसलें भी डैम के पानी से लहलहाएंगी। डैम अब अपनी कैपेसिटी के मुताबिक बिजली पैदा कर सकेंगे। हमारे डैम, हमारे जल-धन हैं, हमारी जिंदगी पर इसका क्या असर पड़ेगा पढ़िए…भास्कर की खास रिपोर्ट…

पर्यटन स्थल और भोपाल की प्यास मिटाने वाला डैम
केरवा की पहाड़ी पर बाघों का मूवमेंट देखा गया है। भोपाल शहर में पेयजल की समस्या और आसपास के क्षेत्रों की सिंचाई खातिर इस डैम का निर्माण हुआ था। केरवा बांध भोपाल शहर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। केरवा बांध भोपाल शहर के रातीबड़ में स्थित है। यह भोपाल शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे… पीने के पानी का संकट खत्म : केरवा डैम फुल होने से कोलार सहित डीके 3, 5 कॉलोनी, सुमित्रा परिसर, गरीब नगर, ओम नगर, पुलिस कॉलोनी, बैरागढ़ चीचली, सलैया क्षेत्र, रतनपुर, गोडारी, हनुमंत नरेला, हिनोतिया, सोहागपुर, सेमरीकलां, पिपलिया केशर, इनायतपुर, रसूलिया, गौरव नगर, दौलतपुर आदि इलाकों को पूरे साल पानी की सप्लाई हो सकेगी। केरवा डैम से 8.4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की सप्लाई हो सकेगी।

  1. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : इस डैम से भोपाल के 300 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी।
  2. पर्यटन : केरवा डैम भोपाल का मुख्य पर्यटन स्थल है। यहां बड़ी संख्या में शहरवासी घूमने जाते हैं। डैम के छलकने से बारिश के दिनों में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इससे स्थानीय लोगों को अतिरिक्त आय हो जाती है। ये भी होगा: डैम में मछली का ठेका नगर निगम ने 2024 तक दिया है। इससे निगम को 20 लाख से अधिक की आमदनी होती है।

भोपाल की 60 प्रतिशत आबादी के लिए साल भर का इंतजाम
विंध्य पर्वत श्रृंखला से निकली कोलार नदी पर ये डैम बना है। ये डैम अमूमन सितंबर तक भरता था। इस बार अगस्त में ही ये भर चुका है। नर्मदा की सहायक कोलार नदी पर डैम का निर्माण 1984 में किया गया था। रातापानी जंगल में ये डैम है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे…

  1. पीने के पानी का संकट खत्म :भोपाल शहर को इस डैम से 153 एमएलडी पानी की सप्लाई होती है। डैम भरने से शहर को पर्याप्त पानी की सप्लाई हो सकेगी। भोपाल में 60% लोगों की प्यास इस डैम से बुझती है। भोपाल के अशोका गार्डन, होशंगाबाद रोड, कटारा क्षेत्र, जाटखेड़ी आदि क्षेत्रों में पानी की सप्लाई होती है।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : इस डैम से लगभग 25 हजार हेक्टेयर में रबी सीजन में सिंचाई हो पाएगी।
  3. पर्यटन: इस डैम के आसपास का क्षेत्र बारिश में काफी मनोरम हो जाता है। डैम के गेट खुलने से बड़ी संख्या में शहर के लोगों के पहुंचने से स्थानीय लोगों को आय का अतिरिक्त इंतजाम हो जाता है।

बड़े तालाब का पानी सहेजने के लिए बना कलियासोत डैम
बड़े तालाब के ओवरफ्लो हुए पानी को सहेजने और सिंचाई के लिए कलियासोत डैम का निर्माण 1994 में हुआ था। कलियासोत डैम का जलस्तर भदभदा से छोड़े गए पानी से बढ़ता है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : इस डैम से भोपाल व रायसेन जिले में 10,425 हेक्टेयर क्षेत्रों में रबी की फसलों में सिंचाई हो सकेगी।
  2. मछली का ठेका : इस डैम का ठेका नवीन मत्स्य उद्योग सहकारी समिति को 2024 तक मिला हुआ है।
  3. पर्यटन: कलियासोत डैम के चलते यहां भोपाल से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। डैम का गेट खुलने से आसपास के लोगों की अच्छी कमाई हो जाती है।

नर्मदा पर बने पहले बांध की कहानी: 16 साल में तैयार हुआ
इतिहासकार राजकुमार सिन्हा के मुताबिक 60 के दशक में नर्मदा गर्मियों में सूखकर एक लकीर सी बन जाती थी। जबलपुर सहित आसपास के जिलों में गर्मी में पेयजल और सिंचाई की बड़ी समस्या थी। इसके समाधान के लिए केंद्रीय जल और विद्युत आयोग ने 1968 में 2,980 वर्ग किमी में सिंचाई और 100 मेगावाट (2×45 मेगावाट + 2×5 मेगावाट) बिजली पैदा करने के लिए बरगी डैम के निर्माण का प्रपोजल तैयार किया था। बांध निर्माण 1974 में शुरू हुआ और 1990 में पूरा हुआ। आज भी रीवा तक नहर विस्तार का काम चल रहा है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. पीने के पानी का संकट खत्म : जबलपुर को 210 एमडी पानी की सप्लाई होती है। बरेला, सिहोरा, भेड़ाघाट में भी नर्मदा जल पहुंचाया जा रहा है। इस बार इन शहरों में अगले साल तक सप्लाई की कोई दिक्कत नहीं होगी।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : बरगी बांध का कैचमेंट काफी बड़ा है। अमूमन हर साल ये क्षमता के अनुसार भर जाता है। इस बार अधिक बारिश के चलते अगस्त में ही यह भर चुका है। रबी सीजन के अलावा गर्मी में मूंग-उड़द की सिंचाई के लिए भी पर्याप्त पानी मिल पाएगा। बरगी दायीं तट योजना से कुल सिंचाई क्षमता बढ़कर 4.20 लाख हेक्टेयर हो गई। इस बार पूरा क्षेत्र कवर हो जाएगा।
  3. रबी में भी बिजली उत्पादन : रबी सीजन में बिजली की डिमांड बढ़ने पर बिजली उत्पादन भी हो सकेगा। अभी बारिश के चलते रोज 14 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है।

ये भी होगा: डैम से वर्तमान में लगभग 95 टन मछली उत्पादन होता है। रॉयल्टी के तौर पर सरकार को एक करोड़ रुपए मिलते हैं। वहीं मछुआरा समिति को पारिश्रमिक के तौर पर दो करोड़ रुपए मिलेंगे।

हत्या से 8 दिन पहले इंदिरा गांधी ने डैम की रखी थी नींव
नर्मदा नदी पर बने इस डैम की नींव इंदिरा गांधी ने अपनी मौत से 8 दिन पहले 23 अक्टूबर 1984 में रखी थी। खंडवा जिला मुख्यालय से 61 किमी दूर इस बांध का निर्माण महाराष्ट्र के भंडारा, नागपुर व चांदपुर जिलों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की सप्लाई और बिजली उत्पादन के लिए किया था। इस डैम से MP के 26 प्रतिशत हिस्सों की सिंचाई होती है। बांध से 24,865 किमी मुख्य नहर निकली है। इससे 169 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है। 74 मिलियन घनमीटर पेयजल की आपूर्ति से खंडवा के ग्रामीण क्षेत्रों की प्यास बुझाई जाती है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. पीने के पानी का संकट खत्म : खंडवा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 74 मिलियन घनमीटर पानी की सप्लाई हो सकेगी।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : इस डैम से 160 क्यूमेक्स प्रवाह वाली 24,865 किमी लम्बी नहर निकली है। इससे सालभर में 169 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र को सिंचाई जितना पानी मिल पाएगा।
  3. रबी में भी बिजली उत्पादन : रबी सीजन में बिजली की डिमांड बढ़ने पर बिजली उत्पादन भी हो सकेगा। अभी बारिश के चलते रोज 24 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है। रबी सीजन में मांग के समय ये डबल हो जाएगी। ये भी होगा: डैम से वर्तमान में 8 करोड़ रुपए की मछली का उत्पादन होता है। ठेका समितियों को प्रति किलो 38 से 52 रुपए का भुगतान होता है।

अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी आधारशिला

इंदिरा सागर से छोड़े गए पानी को स्टोर करने के लिए इस डैम का निर्माण 2003 में शुरू हुआ था। 30 अगस्त 2003 को अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी आधारशिला रखी थी। यह बांध भगवान शिव के प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर के मंदिर से ठीक पहले ओंकारेश्वर द्वीप के पूर्वी सिरे के निकट बना है। इसके निर्माण से खंडवा और देवास के 30 गांव विस्थापित हुए थे।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. पीने के पानी का संकट खत्म : ओंकारेश्वर सहित इंदौर, पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र को साल भर पर्याप्त पानी मिल पाएगा। 70 किमी दूर इंदौर को रोज 540 एलएमडी पानी की जरूरत होती है। 70 प्रतिशत आपूर्ति नर्मदा जल से होती है।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : इस डैम की दो नहरों से 1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। इस बार डैम के पूरी तरह से फुल होने से रबी के साथ गर्मी में भी सिंचाई हो सकेगी। लगभग एक लाख परिवारों को सिंचाई के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा।
  3. रबी में भी बिजली उत्पादन : रबी सीजन में बिजली की डिमांड बढ़ने पर बिजली उत्पादन 5 मिलियन यूनिट तक हो सकेगा। अभी रोजाना तीन मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है। ये भी होगा: डैम से वर्तमान में 95 टन के लगभग मछली बेची जा रही है। रॉयल्टी के तौर पर सरकार को एक करोड़ रुपए मिलते हैं। मछुआरा समिति को पारिश्रमिक के तौर पर दो करोड़ रुपए मिलेंगे।

172 करोड़ में बनकर तैयार हुआ था

नर्मदापुरम जिले में तवा नदी पर 1974 में बना यह बांध बना है। यह नर्मदाचंल की पहचान और किसानों के लिए एक वरदान है। इसकी प्रशासकीय स्वीकृति 1958 में मिली थी। तब तवा परियोजना में तवा बांध की लागत करीब 14 करोड़ रुपए आंकी गई थी। 1967 में निर्माण कार्य शुरू हुआ तो इसमें 34.14 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया। 7 साल बाद 1974 में 172 करोड़ रुपए में बांध तैयार हुआ। इसमें नहरों का काम भी हुआ। 12 गुना लागत बढ़ गई थी। यह बांध 58 मीटर ऊंचा और 1815 मीटर लंबा है। इसकी क्षमता 1993 मिलियन घन मीटर है। इस बांध से 1978 में नहरें जोड़ी गईं। इसे 1166 फीट तक भरा जाता है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. पीने के पानी का संकट खत्म : इटारसी स्थित ऑर्डिनेंस फैक्ट्री को अनुबंध के मुताबिक हर महीने एक एमसीएम पानी मिल पाएगा। इसके एवज में शासन को 6 करोड़ रुपए मिलते हैं।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : तवा डैम से निकली दो नहरों से रबी में 3.33 लाख हेक्टेयर में सिंचाई का दावा था, पर ये कभी नहीं हो पाया। अधिकतम 1.85 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई हो पाती है। इस बार दो लाख हेक्टेयर तक सिंचाई की उम्मीद है। यह नर्मदापुरम व हरदा जिले के क्षेत्रों को कवर करती है। इस बार डैम भरने से 60 हजार हेक्टेयर मूंग-उड़द की खेती के लिए भी पर्याप्त पानी मिल पाएगा।
  3. बिजली उत्पादन: एचईजी नामक कंपनी ने बांयी मुख्य नहर के मुंह पर (जहां बांध से नहर में पानी छोड़ा जाता है) 6.5×2 मेगावाट का मिनी बिजली संयंत्र लगाया है। इस उत्पादित बिजली को कंपनी यहां पर ग्रिड में देती है और बदले में मंडीदीप स्थित अपने कारखाने में ग्रिड से 80 प्रतिशत बिजली ले लेती है। 20 प्रतिशत बिजली रास्ते में नुकसान हो जाती है। कंपनी से 10 पैसे प्रति यूनिट की रायल्टी ली जाती है। ये बिजली तभी बनती है, जब नहर में पानी छोड़ा जाता है।

डैम हो चुका है कमजोर, टूटने का खतरा
गांधी सागर बांध मंदसौर जिला मुख्यालय से 168 किमी की दूरी पर है। डैम का निर्माण चंबल नदी पर किया गया है। चंबल रिवर वैली डेवलपमेंट को आजादी के बाद 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया था। तब चंबल नदी विकसित नहीं हुई थी। मध्यप्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों की संयुक्त पहल के तहत इसे विकसित करने का प्लान 1953 में तैयार हुआ।

दो-चरणों के प्रस्ताव में बिजली बनाने के लिए तीन बांधों के निर्माण की योजना बनी। पहले चरण में बांध गांधी सागर और राजस्थान में कोटा बैराज की नींव पड़ी। गांधी सागर बांध से बिजली तो कोटा बैराज से मिलने वाले पानी को दोनों राज्य समान रूप से साझा करते हैं। 1970 में दूसरे चरण में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा में राणा प्रताप सागर बांध का निर्माण किया गया। इस बांध का जलाशय क्षेत्र हीराकुंड जलाशय के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा है।

इस पावर स्टेशन के निर्माण का आधारशिला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 7 मार्च, 1954 को रखी गई थी। बिजली स्टेशन 1957 में शुरू हुआ। बिजली उत्पादन 1960 में हुआ। इसके निर्माण पर तब 18 करोड़ 40 लाख खर्च हुआ था। 62 साल पुराने इस बांध को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) अपनी रिपोर्ट में कमजोर बताते हुए मरम्मत कराने की अनुशंसा कर चुकी है। दरअसल बांध की डाउन स्ट्रीम में स्पिलवे के ठीक नीचे गहरे गड्ढे हो गए हैं और इसके चलते स्पिलवे भी डैमेज हो गया है। इससे बांध के टूटने का खतरा है।

डैम पूरा भरने के तीन फायदे

  1. पीने के पानी का संकट खत्म : मंदसौर जिले को चंबल योजना से रोजाना 2.13 करोड़ लीटर पानी मिल सकेगा।
  2. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : सिंचाई का क्षेत्र 5.67 लाख हेक्टेयर में हो सकेगी। डैम भरने से रबी सीजन में मंदसौर सहित आसपास के जिलों में सिंचाई हो सकेगी।
  3. रबी में भी बिजली उत्पादन : रबी सीजन में बिजली की डिमांड बढ़ने पर बिजली उत्पादन 3 मिलियन यूनिट तक हो सकेगा। 115 मेगावाट की क्षमता वाले पांच यूनिटों से अभी रोज 1.21 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है। कुछ हिस्सा राजस्थान को भी मिलती है। ये भी होगा: डैम से हर साल 10 करोड़ आमदनी होती है, जिसमें से पांच करोड़ रुपए 2000 मछुआरों को मजदूरी और बोनस बांटा जाएगा।

एशिया की सबसे बड़ी नहर परियोजना, 39 साल में हुई पूरी

शहडोल में मानसून के सीजन में अधिक बारिश होती थी। लेकिन जल संग्रहण की व्यवस्था नहीं होने के कारण गर्मी में जलसंकट होता था। जब साल दर साल जलसंकट बढ़ने लगा तो सोन नदी पर डैम बनाने की योजना तैयार हुई। बाणसागर परियोजना की आधारशिला सोन नदी पर शहडोल जिले के देवलोंद में 14 मई 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रखी थी। 25 सितंबर 2006 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा देश को समर्पित किया गया।

बांध में लगने वाली लागत मध्यप्रदेश (50%), उत्तर प्रदेश (25%), बिहार (25%) राज्यों ने मिलकर लगाई थी। भू-अधिग्रहण में शहडोल और सतना, उमरिया, कटनी जिला मुख्य रूप से प्रभावित हुए थे। 336 गांव डूबे गए थे। यूपी के हिस्से की नहर योजना 2018 में पूरा हुआ।

डैम न भरने के तीन नुकसान

  1. सिंचाई का एरिया बढ़ेगा : डैम से कुल 7 नहरों से एमपी में 2,490 वर्ग किमी क्षेत्र की, उत्तर प्रदेश के 1,500 वर्ग किमी क्षेत्र की और बिहार के 940 वर्ग किमी क्षेत्र की सिंचाई होती है। यूपी के मिर्जापुर व प्रयागराज के क्षेत्रों तक पानी पहुंचाने के लिए 170 किमी लंबी नहर का निर्माण किया गया है। यह एशिया की सबसे बड़ी नहर परियोजनाओं में से एक है। इस बार डैम खाली है। सितंबर तक डैम नहीं भरा, तो रबी सीजन में तीनों ही प्रदेशों की सिंचाई प्रभावित होगी।
  2. रबी में भी बिजली उत्पादन : 60 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। अभी उत्पादन ठप है। बांध नहीं भरा तो रबी सीजन में भी बिजली नहीं मिल पाएगी।
  3. ये भी होगा: डैम से वर्तमान में 17 हजार टन के लगभग मछली बेची जा रही है। मछुआरा समिति को पारिश्रमिक के तौर पर 18 से 30 रुपए प्रति किलो की दर से भुगतान होता है।

ग्राफिक्स- जितेंद्र ठाकुर

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