मौत की आगोश में कटती 15 हजार परिवार की जिंदगी: भू धसान, गोफ और जहरीली गैस के बीच सांस लेने को क्यों मजबूर हैं लोग, 70 से ज्यादा बस्तियों में खतरा

धनबादएक घंटा पहलेलेखक: पंकज कुमार पाठक

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हादसों की जद में सांस लेती जिंदगी - Dainik Bhaskar

हादसों की जद में सांस लेती जिंदगी

झारखंड के धनबाद कोल इलाके में अचानक जमीन फटने ( भू धसान) गोफ ( एक जगह पर गड्ढा बन जाने), जमीन से निकलने वाली जहरीली हवा में सांस लेने और अवैध माइंस के ढह जाने से मौत का खतरा है। धनबाद, झरिया और बाघमारा इलाकों को जोड़ दिया जाए तो हजारों परिवार पर मौत का खतरा है। शायद ही ऐसा कोई दिन होता है, जब इन इलाकों से हादसे की खबर नहीं आती। इन इलाकों में खनन करने वाली कंपनियों में एक बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) मानती है कि 15 हजार परिवार इन खतरों के बीच अब भी रह रहा है।

धधकता धनबाद

धधकता धनबाद

8 अक्टूबर 2023 को धनबाद जिले के जोगता 11 नंबर में तीन घर जमींदोज हो गए। कई घरों में दरार है, जो यह संकेत दे रही है कि अगला नंबर उनका है। इन तीन घरों के साथ जमीन के अंदर समा गया घर का सारा सामान जिसे हादसे के बाद भी परिवार जमीन के अंदर से निकालने की कोशिश करता रहा। बात सिर्फ इन तीन घरों की नहीं है। इस इलाके में कई घर, एक मंदिर और बहुत कुछ जमीन के अंदर समा गये।

समझें खतरा कितना बड़ा है
धनबाद के झरिया में 70 से ज्यादा बस्तियों में खतरा है। इन्हें प्राकृतिक आगजनी की वजह से सेंसेटिव घोषित किया गया है। केंद्रीय कोयला मंत्रालय के निर्देश पर इन बस्तियों में रहने वाले तकरीबन 60 हजार लोगों को दूसरी जगह बसाना है। यहां अक्सर खेतों, घरों के आंगन और तालाबों में आग की लपटें उठने लगती है। धुआं निकलता है, जमीन फट जाती है और बड़ी-बड़ी दरारें बन जाती है। इस खतरे के बावजूद भी लोग यहां से हटाए नहीं गये हैं। धनबाद के जिन इलाकों में सबसे ज्यादा खतरा है उनमें मुख्य रूप से कुहका, सांगामहल, माड़मा गांव तथा फटका-कालूबथान मार्ग पर है. इन तीनों जगहों पर पहले भी कई बार भू-धसान हो चुके है. सुभाष कॉलोनी भी डेंजर जोन में है. श्यामपुर पहाड़ी भी धसान क्षेत्र में शामिल हो गयी है. कुहका और हाथबाड़ी में सड़क किनारे कई मुहाने खोल दिये गये हैं।

देश के भविष्य पर वर्तमान का संकट

देश के भविष्य पर वर्तमान का संकट

एक बस्ती में रह रहे हैं 12 सौ लोग, हादसे से दस कदम दूर है स्कूल

इस पूरे इलाके के हालात को समझना है, तो ताजा घटना जहां घटी है उस जगह को समझिए जोगता 11 नंबर बस्ती में गोफ, भू-धसान, दरार की घटना होती रहती है, कई बार खबरें अखबार के सिंगल कॉलम में जगह बनाती है, तो कभी यहां भी जगह नहीं मिलती क्योंकि अब इन इलाकों में इस तरह की घटनाएं आम हैं। घटनास्थल से महज 10 कदम दूर उत्क्रमित हरिजन मध्य विद्यालय जोगता है। स्कूल में 197 बच्चे नामांकित है, जिसमे औसतन 150 बच्चे हर दिन पढ़ने आते हैं।

इस स्कूल में 5 शिक्षक कार्यरत है।‌ यह स्कूल पूरी तरह गोफ या भू-धसान की जद में है। 15 अगस्त‌ को गांव में ही हुई गोफ व भू-धसान के बाद‌ जिला शिक्षा पदाधिकारी ने इस विद्यालय को कहीं और शिफ्ट करने के विकल्प तलाशने के लिए घटनास्थल‌ का जायजा लेने पहुंचे थे. लेकिन बच्चे अब भी इसी स्कूल में आ रहे हैं।

कनकनी कोलियरी के जोगता 11 नंबर बस्ती में 12 सौ से अधिक की आबादी है। यहां अधिकांश लोग रोज कमाने खाने वाले हैं। देश में जब जातीय गणना की चर्चा तेज है. तो यह समझ लेना जरूरी है कि यहां 80 फीसदी लोग महादलित, हरिजन वर्ग से आते हैं। गांव के लोग आग और जहरीली गैस के बीच जिंदा रहने की जंग लड़ रहे हैं। यहां आए दिन जमीन फटने की घटना घटती रहती है। यदि हल्की बारिश भी हो गई तो फिर क्या कहना, पूरा गांव जहरीला गैस से भर जाता है। लोगो का दम घुटने लगता है। फिलहाल इस‌ घटना के बाद पूरे गांव में भय का माहौल बना हुआ है।

क्यों इस इलाके में रह रहे हैं लोग
अब सवाल है कि इतने खतरे के बीच गांव के लोग क्यों रह रहे हैं ? इस हादसे में अपना घर गवां चुके शंकर कुमार भुईंया बताते हैं, हम तो छत की तलाश में है। हमें जहां घर मिलेगा वही शिफ्ट कर जायेंगे। हमें जगह मिलेगी तो हम यहां क्यों रहेंगे । इसी इलाके में रहने वाले एक और युवा रवि कुमार कहते हैं, हमारी तीन पीढ़ियां इस इलाके में रह चुकी है। हम खतरे के बीच रहना नहीं चाहते लेकिन हमें कोई दूसरी जगह मिल नहीं रही है। हम गरीब हैं, हम अपने सिर के ऊपर ढंकने के लिए सीमेंट की शीट तक नहीं खरीद सकते। हमें दूसरी जगह रहने के लिए कोई जगह नहीं दे रहा, क्या करें ?

धनबाद के उपायुक्त वरुण रंजन

धनबाद के उपायुक्त वरुण रंजन

प्रशासन मौत और हादसों पर मौन क्यों ?
दूसरा सबसे अहम सवाल कि इन्हें यहां से हटने के लिए जगह क्यों नहीं मिल रही हमने यही सवाल किया धनबाद के उपायुक्त वरुण रंजन से उन्होंने फोन पर हुई बातचीत में बताया हम इन इलाकों से लोगों को शिफ्ट कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ संपर्क में हैं, जो इन इलाकों में है बीसीसीएल और जिला प्रशासन मिलकर उनके लिए व्यवस्था करती है। इन इलाकों में कई स्थानीय मुद्दे भी हैं। इन समस्याओं पर भी हम काम कर रहे हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है ।

परिवार पर हर दिन मौत का खतरा

परिवार पर हर दिन मौत का खतरा

मौत के आधिकारिक आंकड़े मौजूद ही नहीं
इस खतरे की गंभीरता को समझना हो तो आंकड़े जरूरी है, लेकिन दुखद है इन जगहों पर मारे जा रहे लोगों का आधिकारिक आंकड़ा कहीं नहीं है। भू धसान या गोफ में हुई मौत ही नहीं झारखंड में अवैध खनन से होने वाली मौत का आंकड़ा भी नहीं है। दर्ज मामलों की संख्या और असल में हुई मौत के आंकड़े का फर्क आसमान और जमीन का है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि अवैध खनन में मारे गये लोगों के परिजन थाने में इसकी शिकायत नहीं करते क्योंकि उन्हें डर है कि अगर वह शिकायत करने जायेंगे. तो उन पर भी कार्रवाई होगी। इन इलाकों में कई परिवार के लोग अवैध खनन या हादसे में मारे गये जिसकी किसी को जानकारी नहीं है। कोयला मंत्रालय मानता है कि मात्र 12 लाख रुपये की कोयला चोरी होती है, जबकि आंकड़ा उंगलियों पर भी किसी एक अवैध खदान की जोड़ेंगे तो एक दिन में 12 लाख का आंकड़ा आसानी से पार हो जायेगा।

भारत में खनन के दौरान हादसे के आधिकारिक आंकड़े

भारत में खनन के दौरान हादसे के आधिकारिक आंकड़े

अवैध खनन और आंकड़ों का खेल
झारखंड के धनबाद जिले में अवैध खनन से फरवरी महीने में लगभग 19 लोगों की मौत हो गयी हालांकि सरकारी आंकड़ा 7 लोगों के मारे जाने की पुष्टि करता है। साल 2019 से 2022 तक देश भर के कोयला खदानों में हुई दुर्घटना में 185 मौत हुई। इसमें सबसे ज्यादा मौत 34 लोगों की है जो झारखंड में हुई है। यह आंकड़े सरकारी हैं और अन्य रिपोर्ट जो श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की तरफ से आयी उसमें बताया गया कि 2015-2017 तक खनन में हुई। दुर्घटना से 377 मजदूरों की मौत हुई है, जिनमें 210 मौत कोयला खदानों में दबकर हुई है। इसमें झारखंड में 69 मौत हुई है। आंकड़े जो कहीं कागजों में नहीं है है लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि धनबाद में 23 बंद खदाने हैं, जिनमें अवैध खनन चल रहा है। धनबाद में अब मजदूर, बिहार, बंगाल से लाये जा रहे हैं, ज्यादा मजदूरी का लालच देकर इन्हें खदान में भेज दिया जाता है। अगर मारे गये तो स्थानीय ना होने की वजह से इनकी कोई जानकारी सामने नहीं आती।

मौत से हर रोज जिंदगी छिन रहा है परिवार

मौत से हर रोज जिंदगी छिन रहा है परिवार

भारत में जून 2016 से जून 2019 तक, घातक खदान दुर्घटनाओं में कुल 417 लोग मारे गये। 238 पीड़ित कोयला खनिक थे। श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जनवरी 2019 में लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चला कि 2015 और 2017 के बीच कोयला, खनिज और तेल के खनन में शामिल 377 श्रमिक खनन संबंधी दुर्घटनाओं में मारे गए। 377 में से आधे से अधिक, 210, कोयला खदानों में मारे गए। केंद्रीय कोयला और खान मंत्री प्रल्हाद जोशी ने फरवरी 2021 में राज्यसभा को सूचित किया कि जनवरी 2019 और नवंबर 2020 के बीच कोयला खदानों में 254 गंभीर दुर्घटनाओं के कारण 84 लोगों की मौत हो गई।

इन आंकड़ों पर भी एक नजर

इन आंकड़ों पर भी एक नजर

2018 में खनन दुर्घटनाओं से संबंधित सबसे अधिक मौतें हुईं। 2018 में खनन से संबंधित दुर्घटनाओं के कारण लगभग 62 श्रमिक मारे गए। इस वर्ष खनन दुर्घटनाओं के 42 मामले भी दर्ज किए गए। खदानों के अंदर मौतें और घातक दुर्घटनाएं विभिन्न कारकों के कारण हो सकती हैं, जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड या विस्फोटक प्राकृतिक गैस का रिसाव।

हादसों पर एक नजर

धनबाद में हुए हादसे
जून धनबाद में बंद पड़े कोयला खदान के धंसने से 3 लोगों की मौत हो गई। मृतकों में 10 साल का लड़का भी शामिल था
जुलाई धनबाद के निरसा में अवैध खनन के दौरान हादसा दो लोगों की मौत। चार घायल हुए थे
अगस्त धनबाद के केंदुआडीह थाना क्षेत्र के गोधार 6 नंबर रेलवे साइडिंग विनोद विश्वकर्मा के घर में गोफ बन गया।
सितंबर

धनबाद जिले के गोविंदपुर एरिया की आकाशकिनारी बस्ती में भू-धसान में सात मकान जमींदोज हो गए, एक दर्जन से ज्यादा मकानों में दरारें पड़ गई हैं.

19 सितंबर को गोफ में समायीं 3 महिलाओं का शव 36 घंटे बाद निकाला गया।

अक्टूबर धनबाद के जोगता इलाके में एक साथ तीन घर गोफ में समा गये।

एक के बाद एक हादसे दे रहे हैं बड़ा संकेत
बीसीसीएल के गोविंदपुर एरिया से 500 मीटर दूरी में धर्माबांध बस्ती और सोनारडीह के मुख्य सड़क के किनारे अचानक 25 से 30 फीट की एक गोफ हो गया था, उसमें से कार्बन डाइऑक्साइड गैस का रिसाव होने लगा। इस रास्ते पर करीब 20000 की आबादी निर्भर करती है, हर रोज इसी रास्ते से आना जाना है। बीसीसीएल को जब इसकी सूचना मिली तो गोफ भर दिया गया। इस आग प्रभावित क्षेत्र के बिल्कुल करीब उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय भी है। लोयाबाद-बांसजोड़ा मुख्य सड़क के किनारे आग की लपटें दिखती हैं। आग का दायरा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। इसी आग के आसपास के इलाके में 25 सौ की आबादी रहती है जो आग, धुएं की लपटों के बीच जी रही है।

अवैध खनन में हादसे की बड़ी वजह क्या है ?
खनन वाले क्षेत्र पर खनन के बाद भी उन सारी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करना जिसका कोल कंपनियां दावा करती हैं। कोयला निकालने का काम बंद होने के बाद उसे बालू या फ्लाई ऐश से भरा जाना चाहिए। खदान को उसी तरह खुला छोड़कर खनन कंपनियां वहां से निकल जाती हैं। इन जगहों पर फिर कब्जा होता है, अवैध खनन करने वाले गिरोह का। 18 नवंबर को धनबाद के निरसा में ईसीएल मुगमा क्षेत्र अंतर्गत कापासारा आउटसोर्सिंग कोलियरी में भी इसी तरह का हादसा हुआ। पहले खबर आयी कि वहां 25 से 30 मजदूर फंसे हैं। पुलिस ने जांच के बाद कहा, यहां कोई नहीं है और खदान को ऊपर से भर दिया गया। इस तरह के हादसों के बाद भी अवैध खनन की विस्तार से जांच नहीं होती, हादसे के बाद सीधे खदान के मुहाने को बंद कर पूरी जांच बंद कर दी जाती है। मजदूर अंदर कैसे प्रवेश कर गये ? खदान बंद थी, तो अवैध खनन कैसे जारी था ?

जमींनदोज हो रहा है आशियाना

जमींनदोज हो रहा है आशियाना

धनबाद में ही 10 हजार से अधिक परिवार अवैध खनन से जुड़े हैं. दरअसल यहां पूरे साल खेती नहीं होती है, ऐसे में गरीबों के पास अवैध खनन कमाई का, परिवार चलाने का ज़रिया है। अवैध खनन से जुड़े यह परिवार सुरक्षा के क्या उपकरण रखेंगे? कहां खतरा ज्यादा है इसका आकलन ही नहीं कर पाते परिणाम मौत …

कोल कंपनियां ऐसी खदानों पर खनन बंद कर देती हैं, जहां से कोयला निकालने का खर्च ज्यादा होने लगता है। इन जगहों पर कब्जा करते हैं कोल माफिया, मजदूरों को हर दिन 400 से 800 रुपये का लालच देकर कमाई होती है। मजदूर 350 मीटर तक जान जोखिम में डालकर खनन करते हैं। कई बार ऐसी जगहों पर खतरा बढ़ जाता है, जहरीली गैस के साथ- साथ कई खदानों में पानी भरा होता है। मोटर पंप से निकालने की भी व्यवस्था होती है। यहां तक कि गैस वगैरह की परेशानी होने पर बड़े-बड़े पंखे लगाकर अंदर से उसे बाहर किया जाता है।

एनजीटी ने कई बार दी चेतावनी
इस साल के जुलाई में एनजीटी की एक रिपोर्ट आयी थी। इस रिपोर्ट में चौकाने वाले खुलासे किये गये थे। 41 साल पुरानी बंद कोयला खदान में अब भी अवैध खनन चल रहा है। खदान का मुहाना अब तक बंद नहीं किया गया था, माइंस क्लोजर प्लान का बिल्कुल पालन नहीं किया जाता। कागज पर छह साल पहले ही कई इलाके को एबेंडन घोषित भी कर दिया गया. पर वहां न तो फेंसिंग है ना सीसीटीवी कैमरे ना ही किसी का ध्यान। केंद्र सरकार भी मानती है कि कोयला की चोरी है।

अवैध खनन एक बड़ी समस्या है लेकिन केंद्र सरकार के पास जो आंकड़े जाते हैं, वो इस मामले की गंभीरता और इसके खतरे को कम कर देते हैं। सरकारी आंकड़े में 2021-22 में कोल इंडिया की कंपनियों में अवैध खनन से संबंधित मात्र 11 मामले दर्ज हैं, जिसमें पांच मामले सीसीएल के, वहीं तीन मामले झारखंड में खनन करने वाली कंपनियों के हैं।

डॉ. नीतीश प्रियदर्शी भूगर्भ शास्त्री

डॉ. नीतीश प्रियदर्शी भूगर्भ शास्त्री

बढ़ रहा है खतरा
खनन के बाद माइंस के ओपेन होने से खतरा ना सिर्फ अवैध खनन का बल्कि जहरीली गैस के बाहर निकलने का भी है। डॉ. नीतीश प्रियदर्शी भूगर्भ शास्त्री हैं। फोन पर हुई बातचीत में इन्होंने बताया कि सभी जानते हैं कि यहां सालों से जमीन के अंदर आग धधक रही है। इसका खतरा केवल झरिया या उसके आस-पास के क्षेत्र में ही नहीं दूसरे खदानों मे भी बढ़ रहा है। जमीन धंसने या कोयले में आग लगने के बाद प्रदूषण हवा, पानी और जमीन को प्रभावित करती है। इससे निकलने वाले धुएँ में कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड और डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें होती हैं, जो पार्टिकुलेट मैटर के साथ कई फेफड़ों और त्वचा रोगों का कारण बनती हैं।

कोल भवन धनबाद

कोल भवन धनबाद

क्या कर रही है बीसीसीएल

अब सवाल है इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) क्या कर रही है। हमने इस संबंध में बीसीसीएल से सवाल किया हमें ईमेल पर इन सवालों के जवाब मिले हैं।

सवाल- धनबाद में भू धसान के खतरे के बीच कितने लोग रह रहे हैं।

जवाब- आग और भू-धसान क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों की अनुमानित संख्या लगभग 15000 है।
सवाल- कंपनी इन लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए क्या कर रही है, अब तक क्या किया है ?
जवाब- झरिया मास्टर प्लान के अनुसार प्रभावित परिवारों के सुरक्षित स्थानांतरण के लिए बीसीसीएल परिवारों के स्थानांतरण की जिम्मेदारी बीसीसीएल तथा गैर0-बीसीसीएल परिवारों के स्थानांतरण की जिम्मेदारी JRDA (Jharia Rehabilitation and Development Authority) को सौंपी गयी थी और इन क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के स्थानांतरण और पुनर्वास प्रक्रिया पहले से ही चल रही है।बीसीसीएल ने अपने कर्मचारियों को उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया है, और गैर-बीसीसीएल परिवारों को स्थानांतरित करने के लिए JRDA द्वारा द्वारा धनबाद के बेलगड़िया में सभी मूलभूत सुविधाओं युक्त 18000 आवासों की एक कॉलोनी विकसित की जा रही है।

सवाल- खनन क्षेत्र का ऐसा कौन- कौन सा इलाका है, जो बेहद खतरनाक है, असुरक्षित है
जवाब-
अत्यधिक आग प्रभावित और जोखिम भरे कुछ क्षेत्रों की पहचान की गयी है और बीसीसीएल इन क्षेत्रों में भूस्खलन आदि से जुड़े जोखिमों को दूर करने में सक्रिय रूप से लगा हुआ है। हम स्थानीय निवासियों को समाचार पत्रों , मीडिया और अन्य विभिन्न माध्यमों से नियमित रूप से चेतावनी और सूचनाएं जारी करते रहते हैं, ताकि उन्हें चिह्नित असुरक्षित क्षेत्रों में जाने के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सके।

सवाल- स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि कंपनी सहयोग नहीं करती, उन्हें अधिकार नहीं मिलते हैं।

जवाब- हमारी प्राथमिकता समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। बीसीसीएल स्थानीय लोगों की हर संभव मदद करने के लिए तैयार है।

सवाल- अवैध खनन, अंडरग्राउंड माइनिंग को ठीक से ना भरने के आरोपों पर आपका पक्ष

जवाब- खनन के बाद के भूमि को ठीक भरने की बात है तो आज की तारीख में बीसीसीएल में सभी मुहानों को समुचित डोजरिंग करके उचित प्रक्रिया के तहत बंद कर दिया गया है।

सवालों के लाल घेरे में विधायक राज सिन्हा

सवालों के लाल घेरे में विधायक राज सिन्हा

क्या कर रहे हैं नेता ?

इस इलाके में रहने वाले लोगों ने जिन्हें अपना वोट देकर अपना प्रतिनिधि बनाया, वो क्या कर रहे हैं। क्यों उनके चुने गये नेता उन्हें जीने के लिए मौत के घेरे में छोड़ रहे हैं। इस सवाल को समझने के लिए हमने इस इलाके के विधायकों से संपर्क करने की कोशिश की। धनबाद में जिन इलाकों में भू धसान समेत दूसरे खतरे हैं वह मुख्यत : तीन विधायकों के क्षेत्र में आता है। बाघमारा विधायक ढुल्लु महतो, झरिया विधायक पुर्णिमा नीरज सिंह और धनबाद विधायक राज सिन्हा। इस समस्या पर जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं यह समझने के लिए हमने राज सिन्हा से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि इलाके में लोग इसलिए रहने को मजबूत हैं क्योंकि JRDA के तहत जो मकान बनाकर दिए जा रहे हैं वहां जानवर भी नहीं रह सकते, मकान जिस तरह बने हैं वहां ना खिड़की है ना दरवाजे हैं। हम लगातार इसे लेकर विधानसभा में भी सवाल उठाते रहे। यह पूरी तरह से बीसीसीएल और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है।

बड़ा सवाल
इन कई सवालों से मिलकर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। रास्ता क्या है ? कैसे इन इलाके में रहने वाले 15 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित पनाह दिया जाए ? बीसीसीएल और स्थानीय प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद सच क्या है ? झारखंड के जिस कोयले से देश को रोशनी मिल रही है वहां के लोग मौत के अंधेरे में अपने जिंदगी जीने को मजबूर हैं। यहां हो रहे हादसे में मौत का जिम्मेदार कौन है। बीसीसीएल, स्थानीय प्रशासन, जन प्रतिनिधि, राज्य सरकार, केंद्र सरकार या वो खुद जो इन तमाम घटनाओं के बावजूद भी अपनी जमीन से हटने को तैयार नहीं।

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