मार्गरेट अल्वा की सास बनना चाहती थीं उपराष्ट्रपति: नेहरू की करीबी रहीं-इंदिरा से लड़ाई; बहू की सोनिया से नहीं बनी

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नई दिल्ली12 घंटे पहलेलेखक: मृत्युंजय

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जल्द ही देश को उसका नया उप राष्ट्रपति मिलने वाला है। दूसरी महिला राष्ट्रपति मिलने के बाद उप राष्ट्रपति की दौड़ में भी एक महिला शामिल है। विपक्षी पार्टियों ने संयुक्त रूप से मार्गरेट अल्वा को अपना उम्मीदवार बनाया है। उनके सामने भाजपा गठबंधन ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उतारा है। खास बात यह है कि UPA के दौर में मार्गरेट अल्वा भी 4 राज्यों की राज्यपाल रह चुकी हैं। साथ ही धनखड़ और अल्वा दोनों पेशे से वकील रहे हैं।

मार्गरेट अल्वा का परिवार भारतीय राजनीति के लिए नया नहीं है। उनकी सास और ससुर फ्रीडम फाइटर और राजनेता रह चुके हैं। मार्गरेट अल्वा मैंगलोर क्रिश्चियन फैमिली से ताल्लुक रखती हैं। इस परिवार के एक शख्स को चर्च ऑफ इंग्लैंड के पहले भारतीय पास्टर बनने की गौरव हासिल है। हाई कोर्ट में वकालत करने वाली देश की पहली महिला वकील भी अल्वा फैमिली की रही हैं।

सास-ससुर ने मिलकर लड़ी थी आजादी की लड़ाई, 5 महीने के जेठ के साथ जेल गईं

मार्गरेट अल्वा की सास वायलेट अल्वा हाई कोर्ट में पेश होने वाली देश की पहली महिला वकील थीं। अंग्रेजी शासन के दौरान 1944 में मुंबई हाई कोर्ट में जिरह कर उन्होंने इतिहास रचा था। उनके पति जोकिम अल्वा स्वतंत्रता सेनानी थे। जोकिम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे मुखर क्रिश्चियन आवाज माने जाते थे। पति को देख कर वायलेट अल्वा भी अपनी चलती वकालत छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगीं। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया। उस वक्त उनका बेटा मात्र 5 महीने का था। 5 महीने का यह बच्चा चित्तरंजन अल्वा, मारग्रेट के पति निरंजन अल्वा के बड़े भाई थे।

मार्गरेट अल्वा के सास-ससुर ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। आजादी के बाद दोनों एक साथ संसद पहुंचने वाले पहले पति-पत्नी थे। 2008 में दोनों के ऊपर एक डाक टिकट जारी किया गया।

मार्गरेट अल्वा के सास-ससुर ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। आजादी के बाद दोनों एक साथ संसद पहुंचने वाले पहले पति-पत्नी थे। 2008 में दोनों के ऊपर एक डाक टिकट जारी किया गया।

सास की इंदिरा से नहीं बनी, बहू ने सोनिया पर लगाया आरोप

मार्गरेट अल्वा की सास-ससुर की जोड़ी भारतीय संसद की पहली जोड़ी मानी जाती है। वायलेट अल्वा और उनके पति जोकिम अल्वा दोनों एक समय में भारतीय संसद के सदस्य थे। वायलेट अल्वा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दूसरे कार्यकाल में मंत्री भी रहीं। वो नेहरू जी का करीबी मानी जाती थीं। बाद में वो राज्यसभा की उप सभापति बनीं।

1969 के उप राष्ट्रपति चुनाव में वायलेट अल्वा कांग्रेस की उम्मीदवार बनना चाहती थीं, लेकिन नेहरू की मृत्यु के बाद उनकी तत्कालीन PM इंदिरा गांधी से नहीं बनती थी। जिसके चलते इंदिरा ने उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया। जिससे नाराज होकर वायलेट ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके पांच दिन बाद ही उनकी मौत हो गई।

80 साल की उम्र में उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनने वाली मार्गरेट अल्वा ने काफी कम उम्र में राजनीति शुरू कर दी थी। एक सभा में वो इंदिरा गांधी के साथ भाषण देती नजर आ रही हैं।

80 साल की उम्र में उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनने वाली मार्गरेट अल्वा ने काफी कम उम्र में राजनीति शुरू कर दी थी। एक सभा में वो इंदिरा गांधी के साथ भाषण देती नजर आ रही हैं।

मार्गरेट अल्वा ने तय किया है लंबा राजनीतिक सफर

अपनी सास से प्रेरित होकर मार्गरेट अल्वा राजनीति में आईं। स्वाभाविक रूप से उन्होंने कांग्रेस के साथ राजनीति शुरू की। कांग्रेस के विभाजन के बाद मार्गरेट ने इंदिरा गुट का साथ दिया। जिसके चलते उन्हें इंदिरा गांधी का साथ मिलने लगा और पार्टी में उनका कद तेजी से बढ़ा।

1974 से 1998 तक मार्गरेट राज्यसभा की सदस्य रहीं। बाद में वो लोकसभा की सदस्य और राजीव गांधी सरकार में मंत्री भी रहीं। 2004 में चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें 2014 तक 4 अलग-अलग राज्यों का राज्यपाल बनाया।

2008 में मार्गरेट अल्वा और सोनिया गांधी के रिश्ते में तनाव आया। बताया जाता है कि मार्गरेट अल्वा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहती थीं। पार्टी नेतृत्व के इनकार के बाद उन्होंने नेतृत्व पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था। हालांकि बाद में कांग्रेस ने उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया। जिसके बाद पार्टी नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते सामान्य हो गए।

कांग्रेस के साथ लंबे राजनीति अनुभव को देखते हुए उन्हें विपक्ष का चेहरा बनाया गया है। ममता बनर्जी को छोड़ कर विपक्षी पार्टियों में उनके नाम पर आम सहमति है।

कांग्रेस के साथ लंबे राजनीति अनुभव को देखते हुए उन्हें विपक्ष का चेहरा बनाया गया है। ममता बनर्जी को छोड़ कर विपक्षी पार्टियों में उनके नाम पर आम सहमति है।

विपक्षी एकता का चेहरा हैं मार्गरेट अल्वा

मार्गरेट अल्वा के राजनीतिक जीवन को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और संपादक आलोक मेहता बताते हैं कि श्रीमती अल्वा राजनीति की माहिर खिलाड़ी रही हैं। उन्होंने इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी का दौर देखा है। उन्होंने समय-समय पर कांग्रेस के भीतर कई गुट का समर्थन हासिल किया। एक समय उन्होंने इंदिरा का विरोध किया था, बाद में समर्थन किया। सोनिया गांधी के मामले में भी ऐसा ही हुआ।

आलोक मेहता आगे बताते हैं कि वर्तमान समय में विपक्ष ने उनके लंबे राजनीति अनुभव को देखते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के खिलाफ उन्हें एकीकृत विपक्ष का चेहरा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही उन्हें दक्षिण भारत से होने और परिवार की राजनीतिक विरासत का भी लाभ मिला है।

दक्षिण अफ्रीका में भी किया आंदोलन, सम्मानित कर चुके हैं वहां के राष्ट्रपति

पांच बार सांसद और चार बार केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान मार्गरेट अल्वा ने कई ऐसे कानून पास कराए जो महिलाओं के हक में थे। मार्गरेट अल्वा ने अपनी बायोग्राफी ‘करेज एंड कमिटमेंट’ में लिखा है कि उन्होंने 1986 में शाह बानो केस में राजीव गांधी को न झुकने और मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़े होने की सलाह दी थी, लेकिन राजीव गांधी ने उस सुझाव पर ध्यान नहीं दिया।

मार्गरेट अल्वा रंगभेद की मुखर विरोधी मानी जाती हैं। मार्गरेट अल्वा ने महात्मा गांधी की तरह ही अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन चलाया था। बाद में सरकार बदलने पर अफ्रीका के राष्ट्रपति ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया। इसके अलावा मार्गरेट अल्वा महिला और बाल अधिकार के विषय पर कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कमेटियों में शामिल रह चुकी हैं। इस मामले पर वो काफी मुखर भी रहती हैं।

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