मणिपुर में 12 हजार बच्चे कैंपों में: 8 घंटे का स्कूल सिर्फ 3-5 घंटे चल रहा: कुकी क्षेत्रों के अस्पतालों में मरहम-पट्‌टी तक नहीं

इंफाल41 मिनट पहले

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मणिपुर में भले ही हिंसा थोड़ी कम हुई हो, लेकिन जिंदगी पटरी पर नहीं लौट सकी है। चाहे वो मैतेई बहुल इंफाल वैली और इससे जुड़े 5 अन्य जिले हों या फिर कुकी बहुल चूराचांदपुर, टेंगनाउपोल, कांगपोक्पी, थाइजॉल हो। सभी जगह स्कूल, बाजार, दफ्तर खुल गए हैं। इंफाल वैली वाला एशिया का सबसे बड़ा महिला मार्केट इमा कैथल भी खुला हुआ है। कुकी जिलों के बाजार, स्कूल, दफ्तर में कोई मैतेई नहीं दिखेगा। यही हाल मैतेई इलाकों का है। सबसे ज्यादा प्रभावित स्कूल ही हुए हैं, क्योंकि इनसे 12 हजार 104 स्कूली बच्चों का भविष्य अटक गया है। ये बच्चे राज्य के 349 राहत कैंपों में रह रहे हैं।

3 मई को जब हिंसा भड़की तो स्कूल जला दिए गए। 10 अगस्त से जैसे-तैसे स्कूल खुले, लेकिन मां-बाप ने बच्चों को नहीं भेजा। आखिर सुरक्षाबलों के समझाने पर बच्चे स्कूल तो जाने लगे हैं, लेकिन खानापूर्ति के लिए, क्योंकि पढ़ाई नहीं हो रही। स्कूल 8 घंटे नहीं, 3 से 5 घंटे ही लग रहे हैं। वो भी सुरक्षा बलों के साये में।

स्कूलों में डर को लेकर जब भास्कर ने क्राइस्ट ज्योति स्कूल की टीचर हैक्रुजाम चारुवाला सवाल किया तो वो बोलीं- हम बुरी तरह डरे हुए हैं। हालात कब बिगड़ जाएं, नहीं पता। बता दें कि राज्य में 40 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं।

मणिपुर में शुक्रवार को मैतेई नेता की कार पर गोली से हमला किया गया।

मणिपुर में शुक्रवार को मैतेई नेता की कार पर गोली से हमला किया गया।

रिलीफ कैंपों के पास के स्कूलों में शरणार्थियों के एडमिशन, फ्री पढ़ाई
मणिपुर स्कूल शिक्षा के डायरेक्टर एल. नंदकुमार बताते हैं कि पहले स्कूल कैंपस में ही राहत कैंप बनाने की योजना थी, ताकि पढ़ाई न रुके, लेकिन ये प्लान आगे नहीं बढ़ा। अब रिलीफ कैंप के पास के स्कूलों में 8,722 शरणार्थी बच्चों को एडमिशन दिया है। इनकी पढ़ाई फ्री है। 3382 बच्चे अभी भी पढ़ाई से दूर हैं। सेनापति, टेमेंगलॉन्ग, उर्खुल, केमजोंग के स्कूल बीत 6 महीने में एक बार भी बंद नहीं हुए, क्योंकि यहां हिंसा नहीं हुई। आज लगभग सभी स्कूलों में 90% उपस्थिति है।

कुकी इलाकों के अस्पतालों मैतई डॉक्टर थे, जो छोड़कर चले गए हैं
मई में हिंसा भड़कने के बाद कुकी बहुल चूराचांदपुर, टेंगनाउपोल जैसे जिलों में मेतैई डॉक्टरों ने अस्पताल छोड़ दिया था। इससे यहां इलाज बंद हो गया। अब कुकी डॉक्टर कमान संभाल रहे हैं। इनमें ज्यादातर आयुष डॉक्टर हैं, लेकिन सप्लाई नहीं होने से यहां मरहम-पट्‌टी, दवाओं की भारी कमी है। रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (रिम्स) के डॉ. वीर शर्मा के मुताबिक मैतेई और कुकी मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई बर्बाद न हो, इसलिए उन्हें उन्हीं इलाकों के अस्पतालों में अटैच किया है।

तस्वीर इंफाल वेस्ट की कुकी बस्ती की है, जो हिंसा के चलते तबाह हो चुकी है।

तस्वीर इंफाल वेस्ट की कुकी बस्ती की है, जो हिंसा के चलते तबाह हो चुकी है।

दफ्तर तो खुले, लेकिन 327 कर्मचारी ही काम पर लौटे….
सरकार के आदेश पर जून से दफ्तर तो खुल गए, लेकिन कुकी इलाकों में सरकारी कर्मचारी अभी भी गायब हैं। चूराचांदपुर में 327 कर्मचारी ही काम पर लौटे हैं। टेंगनाउपोल, मोरेह, कांगपोक्पी, थाउबोल में भी यही स्थिति है। हालांकि मैतेई बहुल जिलों में सभी सरकारी कर्मचारी आ रहे हैं।

दो दिन पहले हुई एसडीपीओ की हत्या के बाद म्यांमार से सटे शहर मोरेह में तनाव बना हुआ है। यहां असम राइफल्स और पुलिस के कमांडो कॉम्बेट ऑपरेशन चला रहे हैं। इससे सहमे कुकी लोग परिवार के साथ घर छोड़कर असम राइफल्स के कैंप के बाहर शरण लिए हुए हैं। उन्होंने पिछली रात यहीं बिताई। सत्तारूढ़ भाजपा के 8 विधायकों ने पुलिस पर महिलाओं से छेड़छाड़ का आरोप लगाया। उन्होंने शुक्रवार को इसके खिलाफ एक रैली भी निकाली।

मणिपुर के बॉर्डर एरिया में फोर्स बढ़ाई गई
मणिपुर के बॉर्डर एरिया में पुलिस कमांडो की संख्या बढ़ाई गई है। हालांकि इसके खिलाफ म्यांमार की सीमा से लगे मोरे शहर में आदिवासी महिलाओं के एक वर्ग ने प्रदर्शन भी किया। आदिवासी संगठनों​​ कुकी इंपी और कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (COTU) ने 22 अक्टूबर को यह दावा किया था कि शहर में इंफाल घाटी से ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।

इससे शांति भंग हो सकती है। उन्होंने यह भी दावा किया था कि शहर के बफर जोन में पैरामिलिट्री फोर्स और इंडियन आर्मी के जवान काफी संख्या में तैनात हैं। इसके बावजूद कुकी बहुल शहर टेंग्नौपाल जिले के मोरेह में रात को हेलिकॉप्टर से अतिरिक्त मैतेई पुलिस की तैनाती की जा रही है। पूरी खबर पढ़ें…

4 पॉइंट्स में जानिए- क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…

मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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मणिपुर में रविवार को कुकी समुदाय के युवक को जिंदा जलाने का वीडियो सामने आया है। इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ्रंट (ITLF) के प्रवक्ता घिन्जा ने ये वीडियो शेयर किया है। उन्होंने कहा कि वीडियो मई का है, लेकिन ये अभी सामने आया है। पढ़ें पूरी खबर…

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3 मई, 2023 से मणिपुर में हो रही हिंसा 5 महीने बाद नए मोड़ पर है। शुरुआत में मैतेई समुदाय CM बीरेन सिंह और सरकार का खुलकर सपोर्ट कर रहा था, अब खिलाफ है। वजह 17 साल की लड़की और 20 साल के फिजाम हेमनजीत की हत्या है। पूरी खबर यहां पढ़ें…

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