मणिपुर में असम राइफल्स के खिलाफ असहयोग आंदोलन: जवानों को हटाने की मांग; मैतेई महिलाओं ने केंद्रीय संस्थानों पर ताले जड़े

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गुवाहाटी9 मिनट पहले

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असम राइफल्स के जवानों की गाड़ी के आगे खड़ी मीरा पैबिस संगठन की महिलाएं। - Dainik Bhaskar

असम राइफल्स के जवानों की गाड़ी के आगे खड़ी मीरा पैबिस संगठन की महिलाएं।

पिछले 4 महीनों से हिंसा से जूझ रहे मणिपुर से असम राइफल्स को हटाने की मांग तेज हो गई है। इस मांग के समर्थन में कई इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने असहयोग आंदोलन शुरू किया है। खुद को मैतेई बताने वाली महिलाओं के एक संगठन ने पहाड़ी जिलों के उलट घाटी जिलों में सेंट्रल फोर्सेस, खासतौर से असम राइफल्स को वापस बुलाने की मांग को लेकर घाटी में केंद्र सरकार के संस्थानों पर ताले लगाना शुरू कर दिया है।

कुछ महिलाओं ने इंफाल पूर्व के अकम्पत में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (NIELIT) को बंद कर दिया। इसके पहले इंफाल पश्चिम जिले के इरोइसेम्बा में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (CAU) परिसर पर ताला जड़ दिया।

विरोध प्रदर्शन की यह तस्वीर इंफाल की है, 2 सितंबर को बच्चों ने मणिपुर में शांति बहाली की मांग और मैतेई लोगों की हत्या रोकने की मांग की।

विरोध प्रदर्शन की यह तस्वीर इंफाल की है, 2 सितंबर को बच्चों ने मणिपुर में शांति बहाली की मांग और मैतेई लोगों की हत्या रोकने की मांग की।

कोकोमी ने कहा- हम इसके सपोर्ट में नहीं
दूसरी ओर, खुद को मैतेई समुदाय का असली नेतृत्वकर्ता कहने वाली कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी (कोकोमी) ने कहा कि वह इस तरह के किसी भी आंदोलन का समर्थन नहीं करती है। कोकोमी के नेता किरण कुमार ने बताया, ‘असम राइफल्स को हटाने की हमारी मांग जस की तस है। असल में शुक्रवार को पल्लेल इलाके में दो मैतेई लोगों की हत्या से लोगों में आक्रोश है।

उस घटना का हमारे पास वीडियो फुटेज है। हमले के दौरान लोगों ने असम राइफल्स जवानों से मदद मांगी थी, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। इसलिए कुछ स्थानीय लोगों ने केंद्रीय संस्थानों को बंद कर दिया है। इसमें मीरा पैबिस या फिर हमारे कोकोमी से जुड़ा कोई भी संगठन शामिल नहीं है। हम केंद्रीय संस्थानों पर ताला लगाने के इस आंदोलन का समर्थन नहीं करते।’

असम राइफल्स ने कहा-हम मदद में समुदाय नहीं देखते
असम राइफल्स के शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘प्रदर्शनकारियों के ऐेसे रवैये से राज्य में शांति स्थापित करने के प्रयास में बाधा आएगी। पक्षपात करने के आरोप बेबुनियाद हैं। हमारे लिए प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा अहम है। लोगों का समुदाय देखे बगैर मदद करना ड्यूटी है।’

जवान अत्याचार की सीमा पार कर गए: टी निवेदिता
स्थानीय मीरा पैबिस नेता टी. निवेदिता देवी ने कहा कि असम रायफल्स की वापसी जरूरी है। इसलिए संस्थानों में तालाबंदी कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जवान अत्याचार की सीमा पार कर गए हैं। जवान हिंसा की आग को शांत करने के बजाय भड़का रहे हैं।

4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…

मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इम्फाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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