भ्रष्टाचार के रावण: ट्विन टॉवर को गिराना इलाज नहीं है, सोचना यह है कि ये खड़े हो रहे थे तब प्रशासन क्या कर रहा था?

12 घंटे पहले

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राजनीति हो, प्रशासन हो या रोजमर्रा की जिंदगी, भ्रष्टाचार इस तरह घुल गया है कि पता ही नहीं चलता कि कब कौन भ्रष्ट हो गया। मजाल ये है कि आजादी के 75 साल बाद भी भ्रष्टाचार के नित नए आयाम गढ़ने वाले इन नेताओं से हम ऊबे नहीं हैं।

इतने वर्षों में भी इन कपटी, हिसाबी-किताबी अफसरों और पूरी अफसरशाही से हम घृणा नहीं कर पा रहे हैं। नोएडा में रविवार को जो ट्विन टॉवर गिराए गए वे भ्रष्टाचार के रावण ही थे। जैसे हम वर्षों से दशहरे पर बांस बल्लियों का रावण बनाकर जलाते आ रहे हैं और वो तब भी खत्म नहीं हो पा रहा है।

हर जगह कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में कोई रावण बैठा है। उससे निजात नहीं मिल पा रही है। इसी तरह नोएडा में गिराए गए रावण भी खत्म होने वाले नहीं हैं। वे बार-बार खड़े होते रहेंगे। हर महानगर में, हर शहर, कस्बे, हर गांव में।

नोएडा सेक्टर 93 में बने ट्विन टावर 28 अगस्त रविवार दोपहर ढाई बजे ढहा दिए गए। 100 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले दोनों टावर गिरने में सिर्फ 12 सेकेंड का वक्त लगा। इन्हें गिराने के लिए 3700 किलो बारूद का इस्तेमाल किया गया। करीब 80 हजार टन मलबा निकला, जिसकी कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है। इसे साफ करने में करीब 3 महीने लगेंगे।

नोएडा सेक्टर 93 में बने ट्विन टावर 28 अगस्त रविवार दोपहर ढाई बजे ढहा दिए गए। 100 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले दोनों टावर गिरने में सिर्फ 12 सेकेंड का वक्त लगा। इन्हें गिराने के लिए 3700 किलो बारूद का इस्तेमाल किया गया। करीब 80 हजार टन मलबा निकला, जिसकी कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है। इसे साफ करने में करीब 3 महीने लगेंगे।

कारण साफ है- हम रावण को जलाने, मारने या गिराने का सिर्फ दिखावा करते फिरते हैं। उसे जड़ से जलाने-फूंकने का न तो कोई प्रयास करता और न ही भ्रष्टाचार के हामी नेता अफसर ऐसा होने देते! आखिर लगभग छह सौ करोड़ की लागत से बने इन टावरों को गिराने की जरूरत ही क्यों पड़ी? यही नहीं करोड़ों रुपए इन्हें गिराने में भी खर्चने पड़े।

क्यों? अगर ये ग्रीन कॉरिडोर में बने थे, अगर ये अवैध थे, तो तीस चालीस-मंजिल तक खड़े हो गए तब तक किसी ने देखा क्यों नहीं! रोका या टोका क्यों नहीं? क्या कर रहे थे मॉनिटरिंग करने वाले अफसर? हमारी नौकरशाही ऐसी भी कौन सी कुंभकर्णी नींद में सोई रहती है कि उसे सालों तक यह पता ही नहीं चलता कि कौन सी बिल्डिंग वैध है और कौन सी अवैध?

नोएडा के ये ट्विन टॉवर तो एक उदाहरण मात्र हैं। अगर किसी सोसाइटी का कोई सज्जन कोर्ट न जाता तो इनका भी पता नहीं चल पाता। बाकी देश के हर शहर और कस्बे में कितनी अवैध बिल्डिंगें खड़ी हैं, कितने अवैध कब्जे किए हुए हैं, क्या कोई नगर निगम, कोई सरकार या कोई दूसरी अथॉरिटी नहीं जानती?

तमाम अवैध काम इसी नौकरशाही की निगरानी में बेखौफ किए जाते हैं और तमाम अफसर हमेशा इस सब से खुद को इस तरह अनभिज्ञ बताते रहते हैं जैसे इनसे ज्यादा दूध का धुला तो कोई है ही नहीं! बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं चीख चीखकर कहती रहती हैं कि हां वे ही हैं भ्रष्टाचार के रावण फिर भी इन अफसरों, इन जिम्मेदारों के कानों में जूं नहीं रेंगती।

इन ट्विन टावरों में भी छह-सात सौ लोगों ने 2010 से अपना निवेश कर रखा था। फ्लैट बुक कर रखे थे। हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि उनका पैसा ब्याज सहित लौटाया जाएगा, लेकिन कब तक? आखिर क्यों और कब तक कोई आम आदमी इस भ्रष्ट अफसरशाही की लापरवाही का दुष्परिणाम भुगतता रहेगा?

सचेत होना पड़ेगा, आम आदमी या निवेशक को भी और उस सरकार और अफसरशाही को भी जिसकी नाक के नीचे यह सब होता रहता है और व्यवस्था अपनी आंखें बंद करके वर्षों तक यह सब होने देती है! बहरहाल, ट्विन टॉवर्स गिरा दिए गए हैं। सफलतापूर्वक। … और गनीमत यह है कि आस पास की इमारतों को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।

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