भास्कर ओपिनियन-चुनाव मैदान: ईडी-आईटी के छापों से लेकर कुत्ते- बिल्ली जैसे बयानों तक

9 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजस्थान में धड़ाधड छापे पड़ रहे हैं। ईडी के भी। आईटी के भी। कांग्रेस गारंटी पर गारंटी उछाले जा रही है। कुछ राजस्थानी गारंटी तो कुछ पर कर्नाटक और छत्तीसगढ़ की छाप। हालाँकि ईडी के छापों के खिलाफ कांग्रेस जगह- जगह प्रदर्शन कर रही है लेकिन सवाल अभी भी खड़ा है कि चुनाव आचार संहिता के लागू होने के बाद इस तरह की कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं?

कुछ रिटायर्ड अफ़सर इसे सही नहीं मानते। उनका कहना है कि ज़्यादातर मौक़ों पर सरकारें जितना नहीं कहतीं, उससे ज़्यादा अफ़सर अपने नंबर बढ़वाने के लिए कर गुजरते हैं। उधर छत्तीसगढ में लड़ाई अब चरम पर है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने ईडी और आईटी को कुत्ते-बिल्ली कह दिया। इस पर विवाद चल रहा है।

राजस्थान के CM अशोक गहलोत ने कहा मैंने जांच एजेंसियों से टाइम मांगा, लेकिन एक बार टाइम दिया, बाद में मुकर गए।

राजस्थान के CM अशोक गहलोत ने कहा मैंने जांच एजेंसियों से टाइम मांगा, लेकिन एक बार टाइम दिया, बाद में मुकर गए।

भाजपा का कहना है कि कांग्रेस नेताओं की भाषा संयम वाली नहीं है, जबकि कांग्रेस का कहना है कि सोनिया गांधी के बारे में जब- तब, कुछ तो भी बोलने वाली भाजपा हमें संयम का पाठ न ही पढ़ाए तो अच्छा है।

मध्यप्रदेश में ज़रूर कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच मनमुटाव की खबरें आ रही हैं। ये खबरें अगर सच हैं तो पार्टी के लिए दुखदायी साबित हो सकती हैं। दरअसल, टिकट बँटवारे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ में तनातनी चल रही है। कपड़े फाड़ने वाले कमलनाथ के पिछले बयान ने इस तनातनी के बीच आग में घी का काम किया। दोनों नेताओं के अपने चहेते हैं। वे भी इस दरार में अपनी- अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी के स्तर पर इस मनमुटाव का निराकरण तुरंत नहीं हुआ तो यह मामला गंभीर रूप ले सकता है। बहरहाल, तीनों राज्यों में चुनाव प्रचार धीरे- धीरे परवान चढ़ रहा है।

मध्य प्रदेश में टिकट बँटवारे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ में तनातनी चल रही है।

मध्य प्रदेश में टिकट बँटवारे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ में तनातनी चल रही है।

राजस्थान में सक्रियता फ़िलहाल कम है क्योंकि वहाँ मतदान में अभी वक्त है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़े नेताओं की सभा- रैली भी शुरू हो चुकी हैं और रूठे हुए लोगों को मनाने या उनपर कार्रवाई करने का काम भी ज़ोर- शोर से चल रहा है।

चुनाव आयोग अपने दायरे में अपनी भूमिका अब तक तो बखूबी निभा रहा है। प्रत्याशियों के ख़र्चों और उनके बयानों, हेड स्पीच जैसे कारनामों पर पैनी नज़र रखी जा रही है। चाहे सत्तारूढ़ पार्टी हो या विपक्षी दल, दोनों ओर चुनाव आयोग का डर तो क़ायम है।

तमाम नियम-क़ायदों के बीच गलियाँ निकालने में हालाँकि राजनीतिक पार्टियाँ और उनके नेता माहिर होते हैं लेकिन फिर भी आयोग इन सारी गलियों को भी बंद करने में लगा हुआ है।