भास्कर ओपिनियन-चंदे का चक्रव्यूह: राजनीतिक चंदे पर तीखे सवालों के वही घिसे-पिटे जवाब

42 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजनीतिक चंदे पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार बहस चल रही है। चंदे की प्रक्रिया पर आपत्ति करने वालों ने कई सवाल किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग के सामने कई सवाल रखे हैं। जवाब दिए तो जा रहे हैं, लेकिन अग़ल- बग़ल के। सीधा जवाब न तो सरकार के पास है और न ही चुनाव आयोग के पास।

चुनावी बॉन्ड की गोपनीयता को लेकर कई प्रश्न सामने आए जो लगभग अब तक तो अनुत्तरित ही हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनावी बॉन्ड में चयनात्मक (सिलेक्टिव) गोपनीयता क्यों है? स्टेट बैंक जो ये बॉन्ड जारी करता है, उसे और इनकम टैक्स रिटर्न के ज़रिए सरकार को तो सबकुछ पता चल जाता है, लेकिन विपक्ष तथा आम लोगों को इस बारे में कुछ अता- पता नहीं रहता।

फिर इस सवाल का भी सटीक जवाब नहीं मिल पाया है कि अगर चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों को घूस देने के लिए किया जाए तो इस पर रोक का क्या तरीक़ा है? जवाब वही रटा रटाया है कि दुनियाभर जहां काला धन घूस के रूप में राजनीतिक चंदे के तौर पर दिए जाने की समस्या से जूझ रही है, वहाँ भारत में वॉइट मनी का चंदे के रूप में इस्तेमाल के लिए यह चुनावी बॉन्ड लाया गया है।

सच तो यह है कि चुनावी बॉन्ड भी घूस नहीं है, इसकी कहीं कोई गारंटी नहीं है। केवल सत्ता पक्ष जानता है कि किसने किसे कितना चंदा दिया? समस्या यह है कि जब तक राजनीतिक चंदे में पूरी तरह पारदर्शिता नहीं आती, राजनीति में अपराधियों और ग़ैर ईमानदार लोगों के प्रवेश को रोकना मुश्किल है।

जहां तक राजनीति में अपराधियों के प्रवेश का मामला है, मध्यप्रदेश को ही देखें तो यहाँ 29 विधायकों के खिलाफ विभिन्न अदालतों में आरोप तय हो चुके हैं और इनमें से चौबीस फिर से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। जिनके ख़िलाफ़ आरोप तय किए जा चुके हैं, उन्हें सजा दे दी गई तो जीतने के बावजूद इनका चुनाव निरस्त हो सकता है। ऐसा हुआ तो इनकी सीटों पर फिर से चुनाव कराना पड़ेगा।

फिर वही प्रक्रिया, फिर वही खर्च जिसे रोका जा सकता था। आख़िर लंबित गंभीर केस होने पर भी इन नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका क्यों नहीं जाता? क्यों राजनीति करने वालों को आम लोगों से ज़्यादा सहूलियतें दी जाती रही हैं? आम आदमी तो न अपनी कमाई का कोई हिस्सा छिपा सकता और न ही किसी नियम और क़ानून की जद से बच सकता।

आख़िर सारे नियम- क़ानून, निरीह आम आदमी और गरीब- गुरबे के लिए ही क्यों हैं?