भास्कर ओपिनियन- कोटे की राजनीति: आरक्षण के तूफ़ान का अलर्ट, कर्नाटक स्थानीय चुनाव में ओबीसी का 33% कोटा

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26 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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जातीय जनगणना का असर दिखना शुरू हो चुका है। जिस बिहार ने सबसे पहले यह जनगणना करवाई, वहाँ तो फ़िलहाल कुछ नहीं हो सका, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक पहले जाग गया है। यहाँ स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका और पंचायतों के चुनाव में ओबीसी को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव आगे बढ़ा दिया गया है।

लगता ऐसा है कि धीरे- धीरे अब वे तमाम राज्य इस तरह का आरक्षण लागू करेंगे जहां ग़ैर भाजपा सरकारें हैं। भाजपा इस बारे में क्या रणनीति अपनाएगी, अभी पूरी तरह साफ़ नहीं हो सका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़रूर जातीयता को उछालने की विपक्ष की रणनीति को कोसा था और हिंदुत्व को ही सर्वोपरि बताया था लेकिन लगता नहीं कि ओबीसी के पक्ष में फ़ैसले लेने से भी भाजपा पीछे हटेगी!

वीपी सिंह ने मण्डल आयोग का वह भूत इस तरह छोड़ा था कि देश की राजनीति आज तक उससे जूझ रही है।

वीपी सिंह ने मण्डल आयोग का वह भूत इस तरह छोड़ा था कि देश की राजनीति आज तक उससे जूझ रही है।

आरक्षण का यह दरिया देश की राजनीति को किस तरह और किस तरफ़ मोड़ेगा यह देखना अभी बाक़ी है। विपक्ष एक बार फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार वाला माहौल देश में खड़ा करने पर आमादा है जो काफ़ी चुनौती भरा हो सकता है।

मंडल- कमण्डल वाला दौर जिन लोगों ने देखा है, वे जानते हैं कि उस दौर में युवाओं में किस तरह का उबाल आया था और किस तरह के फ़साद उस समय हुए थे। हालाँकि वीपी सिंह ने मण्डल आयोग का वह भूत इस तरह छोड़ा था कि देश की राजनीति आज तक उससे जूझ रही है। दरअसल, आरक्षण किसी भी वर्ग के लिए हो, राजनीतिक दल उससे पीछे नहीं हट सकते। चाहे उसे लागू कोई भी करे।

क्योंकि आरक्षण से पीछे न हटना तमाम दलों की राजनीतिक मजबूरी रही है। जैसे ही आरक्षण हटाया या कम किया कि संबंधित वर्ग उस दल या सरकार से नाराज़ हो जाएगा। चुनावी राजनीति में यह बैर कोई मोल नहीं लेना चाहता।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है।

वीपी सिंह के शासनकाल से पहले केवल अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए ही आरक्षण का प्रावधान था। यह भी आज़ादी के बाद केवल दस साल के लिए लागू किया गया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि जो वर्ग वर्षों से पिसता आया है, सहता आया है और बेहद ग़रीबी में जीवन यापन करता आया है, उसे ऊपर उठाने के लिए यह आरक्षण जरूरी है।

बाद में सत्ता में आई सरकारें हर बार इस आरक्षण को दस- दस साल तक बढ़ाती गईं और आज स्थिति यह है कि इस आरक्षण को हटाने के बारे में कोई सरकार या कोई राजनीतिक दल सोच भी नहीं सकता। अब अलग से यह जातीय जनगणना आरक्षण का तूफ़ान लाने वाली है। … और लगता है इस तूफ़ान को कोई भी रोक नहीं पाएगा।