ब्रेस्ट टैक्स से लेकर मंदिर में मिनी-स्कर्ट पहनने तक: महिलाओं ने तन ढका तो बाजार में उनके कपड़े उतारे गए; छोटे कपड़ों वाली महिलाओं की मंदिर में एंट्री नहीं

लखनऊ34 मिनट पहलेलेखक: रक्षा सिंह

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मुजफ्फरनगर के बालाजी मंदिर के बाहर एक पोस्टर लगाया गया। उसमें लिखा था, “महिलाएं या युवतियां परिसर में जींस, मिनी स्कर्ट और कटे-फटे कपड़े पहनकर नहीं आ सकती हैं।” इसके ठीक 5 दिन पहले मेरठ में कुछ लड़कों ने “हिंदू लड़के के साथ घूम रही हो, शर्म नहीं आती” ऐसा चिल्लाते हुए 3 लड़कियों के साथ बदतमीजी की और उनका हिजाब खींचने की कोशिश की। ऐसे ही मामले सहारनपुर, बुलंदशहर और अलीगढ़ में भी सामने आए, जहां महिलाओं को अपने पहनावे की वजह से बेइज्जत होना पड़ा।

बीते 10 दिनों में महिलाओं के पहनावे को लेकर उनके साथ अभद्रता के 9 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। कभी छोटे कपड़े पहने महिलाओं की मंदिर में एंट्री बंद कर दी जाती है, तो कभी बीच बाजार उनके कपड़े खींचे जा रहे हैं।

…लेकिन भारत में ऐसा पहली बार नहीं है। बात चाहे हिजाब पहनने की हो, तन ढकने की हो या जींस पहनने की; महिलाओं को अपने पहनावे को लेकर भेदभाव का सामना करना पड़ा है। 19वीं सदी में तो दलित महिलाओं की छाती पर कपड़ा या ब्लाउज दिखते ही चाकू से खींचकर फाड़ दिया जाता था।

आज की स्टोरी में जानते हैं कि महिलाओं ने कैसे अपनी मर्जी के कपड़े पहनने के अधिकार के लिए समाज से लड़ाई लड़ी? महिलाओं के पहनावे से जुड़े उन 4 विवादों को जानेंगे, जिन्होंने या तो समाज में बदलाव लाया या फिर विवादों के घेरे में रहे।

  • शुरुआत करते हैं 1729 के उस दौर से जब महिलाओं को अपना स्तन ढकने के लिए भी टैक्स देना पड़ता था।

ब्रेस्ट के साइज के हिसाब से टैक्स भरना पड़ता था
1729, मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई। राजा थे मार्थंड वर्मा। साम्राज्य बना, तो नियम-कानून बने। टैक्स लेने का सिस्टम बनाया गया। जैसे आज हाउस टैक्स, सेल टैक्स और जीएसटी, लेकिन एक टैक्स और बनाया गया… ब्रेस्ट टैक्स मतलब ‘स्तन कर’। ये टैक्स दलित और कुछ ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया।

आजादी से पहले त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाओं को मर्जी से अपनी छाती ढकने का अधिकार नहीं था।

आजादी से पहले त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाओं को मर्जी से अपनी छाती ढकने का अधिकार नहीं था।

त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थीं। अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती, उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती। अगर महिलाएं छाती ढकना चाहें, तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होगा। इसमें भी दो नियम थे। जिसका ब्रेस्ट छोटा, उसे कम टैक्स और जिसका बड़ा उसे ज्यादा टैक्स। टैक्स का नाम रखा था मूलाकरम।

सरकार ने घोषणा की, “औरतें अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने के बचें”
नादर वर्ग की महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका, तो सूचना राजपुरोहित तक पहुंच जाती। पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था, जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी। वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। उस कपड़े को वह पेड़ों पर टांग देता था। यह संदेश देने का एक तरीका था कि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके। रियासत के महाराज जब कभी रास्तों से गुजरते, तो सारी कुंवारी लड़कियां आधे कपड़े उतार कर फूल बरसाती थीं।

धीरे-धीरे वक्त बीता। 1820 में ईसाई मिशनरियों का प्रभाव भारतीय महिलाओं पर पड़ने लगा। इसके बाद महिलाओं ने ब्लाउज से अपना तन ढंकना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही ये बाद लोगों के बीच पहुंची, मर्दों ने औरतों पर हमले करके उनके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए। मामला इतना बढ़ गया कि अदालत में भी पोशाक परिवर्तन की इस मुहिम के खिलाफ अर्जियां डाली गईं।

ये अर्जियां इसलिए भी डाली गईं, क्योंकि प्रभावशाली जातियों के लोग महिलाओं के फ्री में शरीर ढकने के खिलाफ थे। 1829 आया, उस वक्त तो त्रावणकोर की सरकार ने भी ये घोषणा करवाई कि शनार जाति की औरतें अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने से बचें। लेकिन इसके बावजूद महिलाओं ने इस बात का विरोध किया और अपने पूरे शरीर को ढंकना जारी रखा।

अफसरों को पत्ते पर सजाकर सौंप दिया अपना कटा स्तन

इस प्रथा का विरोध करने के लिए नांगेली नाम की एक महिला ने अपना स्तन काटकर टैक्स वसूलने वालों को दे दिया। नांगेली की मौत हो गई।

इस प्रथा का विरोध करने के लिए नांगेली नाम की एक महिला ने अपना स्तन काटकर टैक्स वसूलने वालों को दे दिया। नांगेली की मौत हो गई।

1859 में एक दिन बाजार में महिलाएं ब्लाउज पहने नजर आईं तो ऊंची जाति के लोगों ने उनपर हमले किए और वहीं उनके कपड़े उतार दिए गए। इस वाकए के बाद दंगे भड़कने लगे, घर लूटे गए, चर्चों को जलाया जाने लगा। इसी बीच नांगेली नाम की एक महिला से ब्रेस्ट टैक्स मांगा गया। उसने कहा कि कपड़े भी पहनूंगी और टैक्स भी नहीं दूंगी।

बात राजा तक पहुंच गई। राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। अफसर बोले, “ब्रेस्ट टैक्स दो, किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी।” नांगेली बोली, ”रुकिए मैं लाती हूं टैक्स।” नांगेली अपनी झोपड़ी में गई। बाहर आई, तो लोग दंग रह गए। अफसरों की आंखें फटी की फटी रह गईं। नांगेली केले के पत्ते पर अपना कटा स्तन लेकर खड़ी थी। अफसर भाग गए। लगातार ब्लीडिंग से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी, उसकी मौत हो गई।

सरकार ने एक और फैसला लिया, जिसमें महिलाओं को तन ढकने की आजादी मिली
नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के ‘सती’ होने की यह एकमात्र घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह हो गया। हिंसा शुरू हो गई। आखिर में सरकार ने एक और फैसला लिया। उसने घोषणा की कि अब महिलाओं को जैकेट या किसी भी कपड़े से अपनी मर्जी से स्तन ढकने की इजाजत है। लेकिन वो ठीक उसी तरह अपना शरीर नहीं ढक सकतीं, जैसे ऊंची जाति की महिलाएं ढकती हैं।

पर इसके बाद भी ये मामला पूरी तरह शांत नहीं हुआ था। अंग्रेजी दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब ‘महारानी’ में इस कुप्रथा का जिक्र करते हुए लिखा, “संघर्ष लंबा चला। 1965 में प्रजा जीत गई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा चलती रही। 1924 में यह कलंक पूरी तरफ से खत्म हो गया, क्योंकि उस वक्त पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”

ये तो थी आजादी से पहले कपड़ों के लिए महिलाओं के संघर्ष की बात। सन 1947 में हमारे देश को आजादी मिल गई। इसके बाद औरतें भी अपने पहनावे को लेकर आजाद हो गईं। लेकिन इसके बावजूद उनके लिए ड्रेस-कोड बनाए जाते हैं। जगह-जगह महिलाओं को उनके पहनावे के लिए निशाना बनाया जाता है। ऐसा ही एक विवाद हुआ था महिलाओं के रिप्पड जींस पहनने पर।

फटी जींस पहनने वाली महिलाएं बच्चों को क्या ही संस्कार देंगी?

रिप्पड जींस पहनने वाली महिलाओं के लिए कहा गया कि जिस महिला के घुटने फटे दिखते हैं, वो बच्चों को क्या ही संस्कार दे पाएगी।

रिप्पड जींस पहनने वाली महिलाओं के लिए कहा गया कि जिस महिला के घुटने फटे दिखते हैं, वो बच्चों को क्या ही संस्कार दे पाएगी।

उत्तराखंड के पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत एक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे। वहां उन्होंने अपनी विमान यात्रा का एक वाकया बताना शुरू किया। उन्होंने कहा, “मैं जयपुर में एक कार्यक्रम में गया था। जब मैं जहाज में बैठा, तो मेरे बगल एक महिला बैठी थीं। मैंने जब उनकी तरफ देखा, तो नीचे गमबूट थे। ऊपर की तरफ नजर गई तो घुटने फटे हुए थे। हाथ में कई कड़े थे। उनके साथ 2 बच्चे भी थे। बातचीत करने पर पता चला कि वो एक NGO चलाती हैं।”

पूर्व सीएम बोले, ”तब मुझे लगा कि समाज के बीच जिस महिला के घुटने फटे दिखते हैं, वो बच्चों को क्या संस्कार दे पाएगी?” उनका ये बयान आते ही उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर की सियासत गरमा गई। कई स्थानों पर लोगों ने सड़क पर उतर कर उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। कुछ ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने इसका सपोर्ट किया। लेकिन ज्यादातर जनता ने उनका विरोध जताना शुरू कर दिया।

बीतते दिनों के साथ मामला और तूल पकड़ने लगा। आखिरकार तीरथ सिंह रावत को अपने इस बयान के लिए सफाई देनी पड़ी। उन्होंने इसके लिए जनता से माफी भी मांगी और कहा कि वो बस संस्कारों की बात कर रहे थे। उत्तराखंड में रिप्पड जींस पहनने पर कोई मनाही नहीं है। महिलाएं अपनी इच्छा अनुसार कपड़े पहन सकती हैं।

ये मामला तो यहां शांत हो गया, पर कुछ दिन बाद तीरथ सिंह रावत को भाजपा ने सीएम पद से हटा दिया। लेकिन हमारे देश में आज भी कई ऐसी जगह हैं जहां महिलाओं के जींस पहनने पर रोक लगी है।

महिलाओं के साथ छेड़खानी होती है, इसलिए वो अपना पूरा तन ढकें

  • हरियाणा का आदर्श कन्या महाविद्यालय। यहां पर माना जाता है कि छोटे कपड़े पहनने से छेड़खानी के मामले सामने आने लगते हैं। इसलिए लड़कियों को पूरा तन ढंकना जरूरी है। किसी ने इस नियम को तोड़ा, तो उसे 100 रुपए का जुर्माना भी देना पड़ेगा।
  • चेन्नई के श्री साईंराम कॉलेज में लड़कियां जींस-टॉप और एयरटाइट पैंट नहीं पहन सकतीं। ना ही अपने बाल खुले रख सकती हैं। यहां लड़कियों को क्या पहनना है, इसके नियम बनाए गए हैं।
  • तिरुवल्लुवर के इंजीनियरिंग कॉलेज में भी छात्राओं को पहनावे से संबंधित नियमों का पालन करना पड़ता है। सिर्फ छात्राओं को नहीं, बल्कि फीमेल लेक्चरर को भी इन नियमों का पालन करना पड़ता है।
  • राजस्थान के बाड़मेर में भी सिर्फ जींस ही नहीं, बल्कि लड़कियों को फोन पर बात करने पर भी पाबंदी है। पंचायत कहती है, यह फरमान लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज से बनाया था।
  • कश्मीर और श्रीनगर में स्थानीय महिलाओं के साथ-साथ महिला पर्यटकों को भी साधारण कपड़े पहनने के लिए नियम हैं।
  • हरियाणा के महिला और बाल विभाग में फील्ड में काम करते समय महिलाओं को सादगीपूर्ण कपड़े पहनने का आदेश दिया गया। जींस को कथित तौर पर सभ्य नहीं माना जाता इसलिए इसे पहनने पर पाबंदी है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के मंदिरों में जींस और छोटे कपड़े पहनने पर पाबंदी लगाई थी।
  • अब बात करते हैं महिलाओं के हिजाब पहनने के अधिकार से जुड़े विवाद की।

छात्राओं ने हिजाब पहनने की अनुमति मांगी, कॉलेज ने मना कर दिया

हिजाब पहनकर क्लास अटैंड करने की मांग को लेकर छात्राएं कॉलेज गेट पर धरना दे रही थीं। उन्होंने कहा कि जो हिंदू दोस्त हमेशा से हमारे साथ थीं, वो भी अचानक हिजाब के खिलाफ हो गईं।

हिजाब पहनकर क्लास अटैंड करने की मांग को लेकर छात्राएं कॉलेज गेट पर धरना दे रही थीं। उन्होंने कहा कि जो हिंदू दोस्त हमेशा से हमारे साथ थीं, वो भी अचानक हिजाब के खिलाफ हो गईं।

हिजाब-ए-इख्तियारी यानी एक महिला की हिजाब को चुनने की पसंद। साल 2022 में कर्नाटक समेत भारत के कई राज्यों में ये नारा सुनाई दे रहा था। कर्नाटक में कॉलेज स्टूडेंट्स हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर रही थीं। दरअसल 1 जुलाई, 2021 को कर्नाटक के उडुपी के PU कॉलेज फॉर गर्ल्स ने तय किया कि किस तरह की ड्रेस कॉलेज में पहनकर आना है। कॉलेज की तरफ से कहा गया कि सभी लड़कियों को इसका पालन करना होगा।

उस वक्त कोविड की वजह से कॉलेज बंद था। जब कॉलेज खुला, छात्राओं ने आना शुरू किया। तब उनको पता चला कि उनकी सीनियर छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज आया करती थीं। उसी आधार पर इन छात्राओं ने भी कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी। उडुपी जिले में सरकारी जूनियर कॉलेज की ड्रेस कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है। स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं। ये पूरी बात भाजपा विधायक रघुवीर भट्ट तक पहुंचाई गई। उन्होंने छात्राओं की ये मांग नहीं मानी और उन्हें क्लास में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दी।

रघुवीर ने कहा कि ये धर्म का नहीं, अनुशासन का विषय है। कुछ वक्त बाद दिसंबर 2021 में छात्राओं ने हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की, लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया। इसके बाद छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनकी सुनवाई ना होने पर जनवरी, 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका दायर कर दी।

स्टूडेंट्स ने भगवा गमछा पहनकर हिजाब के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी

हिजाब के लिए प्रदर्शन हुआ, तो हिंदू छात्रों ने भगवा शॉल पहनकर हिजाब के खिलाफ नारेबाजी की। उनका कहना था कि स्कूल में सभी की ड्रेस एक जैसी होनी चाहिए, स्कूल की यूनिफॉर्म में धार्मिक प्रतीक ना हों।

हिजाब के लिए प्रदर्शन हुआ, तो हिंदू छात्रों ने भगवा शॉल पहनकर हिजाब के खिलाफ नारेबाजी की। उनका कहना था कि स्कूल में सभी की ड्रेस एक जैसी होनी चाहिए, स्कूल की यूनिफॉर्म में धार्मिक प्रतीक ना हों।

यह मामला शुरू तो उडुपी से हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे इसकी आग बाकी जिलों तक भी पहुंचने लगी। कई और जिलों में लड़कियों के हिजाब पहनकर कॉलेज आने पर रोक लगना शुरू हो गया। कई स्टूडेंट्स ने भगवा गमछा पहनकर हिजाब पहने छात्रों के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।

8 फरवरी, 2022 को उडुपी के एमजीएम कॉलेज में सैकड़ों छात्रों की भीड़ ने हिजाब पहने लड़कियों के खिलाफ नारे लगाए। कर्नाटक के कई इलाकों में हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस छोड़नी पड़ी। एहतियात के तौर पर कई दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद मामला कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच में पहुंचा।

कोर्ट ने कहा- कॉलेज में यूनिफॉर्म पहनकर ही जाना चाहिए
इस मामले पर कोर्ट में 6 दिन जबरदस्त बहस हुई, 26 अपीलों पर सुनवाई हुई। पूरी बातचीत के बाद हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि हिजाब पहनना इस्लाम में एक धार्मिक प्रथा है। साथ ही स्कूल यूनिफॉर्म सद्भाव को बढ़ावा देते हैं। इसके बाद हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ फिर अपील की गई। फिलहाल ये मामला अभी कोर्ट में है।

  • आखिरी और सबसे ताजा विवाद है मुजफ्फरनगर का, जहां मंदिर पर पोस्टर चिपका कर ये बताया गया कि महिलाओं को क्या पहन कर दर्शन करना चाहिए?

मंदिर में महिलाएं जींस, स्कर्ट-टॉप और कटे-फटे कपड़े पहन कर ना आएं

16 मई, मंगलवार की सुबह मुजफ्फरनगर के बालाजी मंदिर कमेटी का एक पोस्टर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। इसमें दिखा कि मंदिर के बाहर एक पोस्टर लगा है, जिसमें महिलाओं और लड़कियों के जींस, स्कर्ट-टॉप और कटे-फटे कपड़े पहन कर आने पर रोक लगा दी गई है।

नोटिस बोर्ड में साफ किया गया है कि अगर कोई इस तरह के कपड़े पहनकर मंदिर आएगा, तो उसे एंट्री नहीं दी जाएगी। मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले पंडित आलोक शर्मा ने एक ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि मंदिर परिसर में महिलाएं और लड़कियां साड़ी या सूट सलवार पहन कर ही आएं। साथ ही जब महिलाएं और लड़कियां मंदिर में आए तो चेहरे पर पल्लू या पर्दा लगाकर मर्यादित रूप से मंदिर में आएं।

“अगर कोई महिला या लड़की नियमों का उल्लंघन करती है, तो उसे पहले समझाया जाएगा। उसके बाद भी अगर कोई मंदिर के नियमों को तोड़ेगा तो उसके लिए बालाजी मंदिर कमेटी जुर्माना भी लगा सकती है।”

ये तो थी चारों विवादों से जुड़ी कहानियां। आखिर में आपको बता दें कि अगर कोई भी किसी महिला के अधिकारों को जबरदस्ती छीनने की कोशिश करता है या गलत तरह से रोकता है, तो उसके लिए सजा का क्या प्रावधान है। उसके लिए नीचे लगा ग्राफिक देखिए।