पूर्वांचल के शूटरों की कहानी: कोई बहन को छेड़ने वाले का मर्डर करके माफिया बना तो किसी ने थप्पड़ का बदला कत्ल से लिया

18 घंटे पहलेलेखक: रक्षा सिंह

प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में उमेश पाल और उनके दोनों गनर पर हमला हुआ। महज 44 सेकंड में ताबड़तोड़ गोलियां और बम फेंककर तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मामले की जांच SIT को सौंपी गई। दो दिन के अंदर इस मामले में कई अहम खुलासे हुए। पहला खुलासा यह था कि सिर्फ 6 नहीं बल्कि 13 शूटर घटनास्थल पर थे। 6 सामने थे और 7 बैकअप में थे।

पुलिस ने इनका इतिहास खंगाला तो पता चला कि हमले को अंजाम देने वाले शूटर पूर्वांचल के हैं। घटना की प्लानिंग बरेली जेल और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के मुस्लिम हॉस्टल में हुई। ये पहला मौका नहीं था, जब पूर्वांचल के शूटरों ने ऐसा कहर बरपाया।

इसके पहले भी इनके हमलों ने सरकार की नींद उड़ाई थी। आज हम ऐसे ही तीन गैंगस्टरों की कहानी लेकर आए हैं। एक तो शूटर से गैंगस्टर बना और फिर इतना बड़ा बदमाश हो गया कि उसने सीएम के मर्डर की सुपारी ले ली। उसके एनकाउंटर के लिए पहली बार STF का गठन करना पड़ा।

चलिए पूर्वांचल के तीनों बदमाशों के बारे में जानते हैं। पहली कहानी श्रीप्रकाश शुक्ल की। जिसका एनकाउंटर 23 साल पहले हुआ लेकिन उसके गुर्गे आज भी कहर बरपा रहे।

बहन को छेड़ने वाले का मर्डर करके बना गैंगस्टर

तस्वीर में श्रीप्रकाश शुक्ल है। उसकी बस यही दो तस्वीरें लोगों के पास हैं। गैंगस्टर बनने के बाद उसने कोई तस्वीर नहीं खिंचवाई।

तस्वीर में श्रीप्रकाश शुक्ल है। उसकी बस यही दो तस्वीरें लोगों के पास हैं। गैंगस्टर बनने के बाद उसने कोई तस्वीर नहीं खिंचवाई।

साल 1973. गोरखपुर के मामखोर गांव में एक सरकारी टीचर के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा श्रीप्रकाश शुक्ल। 20 साल की उम्र तक तो वो लड़का स्कूल जाता, घर पर दोस्तों के साथ खेलता, परिवार के साथ रहकर नॉर्मल जिंदगी जी रहा था। पर अब धीरे-धीरे लड़के का मन पढ़ाई छोड़कर रंगबाजी में लगने लगा।

साल 1993. एक 16 साल की लड़की स्कूल से घर वापस जा रही थी। रास्ते में राकेश तिवारी नाम के एक आदमी ने उसके साथ छेड़छाड़ की। लड़की रोते हुए घर पहुंची और पूरी बात अपनी पिता को बताने लगी। ये लड़की श्रीप्रकाश की बहन थी। जब वो पूरी बात अपने पिता को बता रही थी, उसी वक्त श्रीप्रकाश को भी अपनी बहन के साथ हुई बदतमीजी का पता चल गया।

श्रीप्रकाश बिना कुछ सोचे समझे गया और राकेश तिवारी के सीने में गोली उतार दी। राकेश की मौत हो गई। इसी वाकए से शुरू हुई एक आम लड़के की गैंगस्टर बनने की कहानी। राकेश का मर्डर करके श्रीप्रकाश अंडरग्राउंड हो गया। अब उसकी तलाश दो लोग कर रहे थे। पहली थी पुलिस और दूसरा गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी। पुलिस श्रीप्रकाश को सजा देने के लिए खोज रही थी और हरिशंकर उसे इनाम देने के लिए।

गैंगस्टर बना तो रेलवे के ठेके उसके इशारे पर दिए जाते
राकेश तिवारी, हरिशंकर के कट्टर विरोधी वीरेंद्र प्रताप शाही का ख़ास आदमी था। इसलिए हरिशंकर उसको मारने वाले को इनाम देना चाहते थे और ऐसा हुआ भी। पुलिस से पहले हरिशंकर श्रीप्रकाश तक पहुंच गए। उसने श्रीप्रकाश को पुलिस से बचाकर चार महीने के लिए बैंकॉक भेज दिया।

चार महीने बीते। श्रीप्रकाश बैंकॉक से वापस लौटा। अब वो हरिशंकर के कहने पर अपराधों को अंजाम देने लगा। उसने सबसे पहले हमला किया गोरखपुर में विधायक वीरेंद्र शाही पर। लेकिन वीरेंद्र की जान बच गई। कुछ दिन बाद रेलवे ठेके को लेकर श्रीप्रकाश का हरिशंकर से विवाद हो गया। इसके बाद श्रीप्रकाश ने बिहार के बाहुबली सूरजभान सिंह की तरह दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

दरअसल हरिशंकर तिवारी, वीरेंद्र प्रताप शाही और सूरजभान सिंह एक ही तरह की रेस में शामिल थे। रेलवे से ठेके जारी होते उसके टेंडर हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही को तो मिल जाते पर सूरजभान इसमें पीछे रह जाते। श्रीप्रकाश ने अपनी दबंगई दिखाकर सूरजभान को ठेके दिलवाने शुरू किए। यहीं से इन दोनों का साथ गहरा होने लगा। सूरजभान ने श्रीप्रकाश को अपना गुर्गा बना लिया।

श्रीप्रकाश हरिशंकर को छोड़कर सूरजभान के साथ जरूर शामिल हो गया था। लेकिन वो हरिशंकर के दुश्मन वीरेंद्र शाही से अपनी दुश्मनी नहीं भूला। एक दिन वीरेंद्र अपनी प्रेमिका को किराए पर कमरा दिखाने के लिए ले जा रहे थे। प्रेमिका में बारे में किसी को पता ना चले इसलिए गनर और ड्राइवर को घर पर रहने को कहा। इस बात की भनक श्रीप्रकाश को लग गई। वो मौके पर पहुंचा और धड़ाधड़ वीरेंद्र शाही पर फायरिंग शुरू कर दी। वीरेंद्र की मौत हो गई।

सीएम को जान से मारने की सुपारी ली
3 जून 1998. बिहार में राबड़ी देवी की सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद की 7 नकाबपोश बदमाश ताबड़तोड़ फायरिंग कर हत्या कर देते हैं। हत्या की जांच हुई तो उसमें श्रीप्रकाश के गुरु सूरजभान का नाम सामने आया। सूरजभान को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि बाद में ये फैसला पलट गया। कहा जाता है कि उन 7 बदमाशों में श्रीप्रकाश भी शामिल था।

कुछ वक्त बीता। अब धीरे-धीरे श्रीप्रकाश एक स्थापित डॉन बन चुका था। पूर्वांचल से बिहार और दिल्ली से गाजियाबाद तक उसने वसूली शुरू कर दी। लखनऊ के हजरतगंज में श्रीप्रकाश ने अपने बहनोई से लॉटरी का काम शुरू करवाया। कम्पटीशन में अमीनाबाद के विवेक श्रीवास्तव ने भी लॉटरी के कई काउंटर खोल दिए। श्रीप्रकाश ने विवेक को ऐसा करने से मना किया। विवेक नहीं माना तो एक दिन श्रीप्रकाश आया और लाटूशरोड चौराहे के बीचों-बीच विवेक को 25 गोलियां मारकर उसकी हत्या कर दी।

इस घटना के बाद पुलिस UP-बिहार से लेकर दिल्ली पुलिस ने भी श्रीप्रकाश की तलाश शुरू कर दी, लेकिन उनके पास उसकी कोई तस्वीर नहीं थी। दरअसल अपराध की दुनिया में आने के बाद श्रीप्रकाश ने कोई तस्वीर खिंचाई ही नहीं थी। लेकिन बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद एक तस्वीर पुलिस के हाथ लगी। श्रीप्रकाश अपनी भांजी के बर्थडे में शामिल हुआ था, वहीं ये तस्वीर खींची गई। लेकिन फोटो पूरी नहीं थी। पुलिस ने हुलिया पूछा और उसका प्रिंट आउट निकलवाकर पूरे विभाग में भेज दिया।

इसी बीच एक बड़ा खुलासा हुआ। उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज ने कहा, “श्रीप्रकाश ने सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है।” यह सुनते ही पूरे प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। आदेश हुए कि किसी भी तरह श्रीप्रकाश को तुरंत पकड़ा जाए। जिंदा या मुर्दा।

प्रेमिका से मिली लोकेशन; श्रीप्रकाश एनकाउंटर में मारा गया

तस्वीर में श्रीप्रकाश शुक्ल का एनकाउंटर करने वाले IPS राजेश पांडेय हैं।

तस्वीर में श्रीप्रकाश शुक्ल का एनकाउंटर करने वाले IPS राजेश पांडेय हैं।

श्रीप्रकाश की प्रेमिका गाजियाबाद में रहती थी। वो ज्यादातर उसके साथ रहता और जब भी वहां नहीं होता दिन भर उससे फोन पर बात करता। श्रीप्रकाश और उसकी प्रेमिका का नंबर सर्विलांस पर लगाया गया। पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश अपनी प्रेमिका से मिलने गाजियाबाद आ रहा है। दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाईवे पर पुलिस हथियारों के साथ पहुंच गई।

दोपहर करीब 1.50 बजे। अपनी नीली सीएलो कार चलाते हुए श्रीप्रकाश हाईवे पर पहुंचा। साथ में उसके दो साथी और थे। जैसे ही उसकी कार आगे बढ़ी पुलिस की कार भी उसके पीछे लग गई। श्रीप्रकाश को खतरा महसूस हुआ तो उसने अपनी गाड़ी तेजी से भगानी शुरू कर दी। पुलिस भी उससे ज्यादा तेजी से उसके पीछे भागी और गाड़ी को हर तरफ से घेर लिया। ये देखते ही श्रीप्रकाश ने रिवॉल्वर निकालकर फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन इस बार हथियारों से लैस STF के जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी और तीनों को मार गिराया। इसके साथ ही श्रीप्रकाश शुक्ल नाम का चैप्टर समाप्त हो गया।

यह तो थी गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ल की कहानी। अब आगे बढ़ते हैं दूसरी कहानी पर। दूसरी कहानी है हरिशंकर तिवारी के खास गैंगस्टर विनोद उपाध्याय की।

नेता बनने का सपना था पर गैंगस्टर बन गया

तस्वीर में विनोद उपाध्याय है। विनोद नेता बनना चाहता था लेकिन एक वाकये ने उसको शातिर गैंगस्टर बना दिया।

तस्वीर में विनोद उपाध्याय है। विनोद नेता बनना चाहता था लेकिन एक वाकये ने उसको शातिर गैंगस्टर बना दिया।

1970 का दशक था। गोरखपुर यूनिवर्सिटी से निकले हरिशंकर तिवारी, बलवंत सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे छात्र नेता राजनीति की मुख्यधारा में आ गए। इसके बाद यह ट्रेंड ही बन गया। लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाते तो उनके मन में इनको देखकर नेता बनने का सपना पलने लगता। ऐसा ही एक स्टूडेंट था विनोद उपाध्याय।

विनोद ने छात्र राजनीति की शुरुआत चुनाव लड़ने से नहीं बल्कि चुनाव लड़वाने से हुई। साल 2002 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी में छात्र संघ अध्यक्ष के चुनाव थे। विनोद ने अपने एक साथी को चुनाव लड़वाया और चुनाव जीत गया। यहीं से धीरे-धीरे विनोद की पहचान राजनीति में बड़े-बड़े लोगों से हो गई।

साथ ही यूनिवर्सिटी से करीब 10 साल जुड़े रहने की वजह से विनोद ने छात्रों की एक बड़ी गैंग बना ली। यह वह वक्त था जब गोरखपुर में जातीय आधार पर गैंग हुआ करती थी। हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के रॉबिनहुड थे और विनोद उनके खास चेले। हरिशंकर तिवारी के चेलो में श्रीप्रकाश शुक्ला भी थे जिसकी कहानी आपने अभी ऊपर पढ़ी। 1997 में ठाकुरों के नेता और महाराजगंज जिले के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को श्रीप्रकाश ने लखनऊ में गोलियों से भून दिया था।

इस वक्त तक विनोद का नाम अपराध जगत में नहीं दर्ज था, लेकिन यह सब देखकर उसमें अपराध करने की हिम्मत आ गई। श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद विनोद उपाध्याय सत्यव्रत राय का खास हो गया। ये सत्यव्रत राय कभी श्रीप्रकाश को सलाह देने वाले बताए जाते थे। दोनों साथ हुए तो अपराध में नाम आने लगा, 1999 में एक के बाद एक दो मुकदमा गोरखनाथ थाने में दर्ज हो गया। पहला धमकी से और दूसरा दलित के साथ मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ। कुछ सालों बाद पैसे के लेनदेन को लेकर सत्यव्रत से झगड़ा हो गया। यहां से दोनों दुश्मन हो गए।

जिसने उसे थप्पड़ मारा, उसको भून दिया
साल 2004. विनोद अपने काले कारनामों की वजह से गोरखपुर जेल में बंद था। वहां बातचीत के वक्त शातिर अपराधी जीतनारायण मिश्र ने उसे थप्पड़ मार दिया। उस वक्त तो वो कुछ नहीं बोला। कुछ दिन बाद जमानत पर बाहर भी आ गया। आठ महीने बाद जीतनारायण को भी जमानत मिल गई। वो बहार निकलकर जीप से अपने घर जाने लगा। जैसे ही उतरा उसकी गाड़ी को बदमाशों ने घेर लिया और 70 सेकंड में अंधाधुंध फायरिंग कर उसको भून दिया। फायरिंग करने वाला कोई और नहीं, वही विनोद था जिसे जीतनारायण ने थप्पड़ मारा था।

साल 2007 तक विनोद पर 9 मुकदमे हो चुके थे। 2007 में सिविल लाइन्स इलाके में विनोद उपाध्याय गैंग पर लाल बहादुर गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। विनोद गैंग के लोगों को पिस्टल निकालने तक का वक्त न मिला। विनोद गैंग के दो लोग मारे गए। विनोद के खिलाफ 2007 में लखनऊ के हजरतगंज थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ।

2008 में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ। एक तरफ पुलिस जांच कर रही थी और दूसरी तरफ विनोद अपराध करते जा रहा था। इस दौरान विनोद की नजर विवादित जमीनों पर टिक गई। कई जमीनें अपने और अपने लोगों के नाम करवा ली। दूसरे गैंग में क्या चल रहा इसे पता करने के लिए हर गैंग में विनोद ने चालाकी के साथ अपने लोगों की एंट्री करवा दी।

विनोद ने अपने साथियों की मौत का बदला लिया
लाल बहादुर यादव राजनीति में आ गया। एक दिन वो गोरखपुर यूनिवर्सिटी के सामने आया तो गेट के सामने ही गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। गोरखपुर कैंट पुलिस ने विनोद उपाध्याय समेत कुल 14 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। तीन आदमी फरार हैं। बाकी इस वक्त जेल में हैं। विनोद जमानत पर बाहर है।

2020 आते-आते विनोद पर गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमों की संख्या 25 पहुंच गई। जमानत पर छूटे तो फरार हो गए। पुलिस ने 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया। 17 जुलाई 2020 को पुलिस ने विनोद को गोमतीनगर के विपुल खंड से गिरफ्तार कर लिया। यहां से विनोद और उनके लोगों की जमीनों से कब्जा छुड़वाने में लग गई।

गैंगस्टर विनोद उपाध्याय की कहानी यहां खत्म होती है। अब बात मुख्तार अंसारी के सबसे खास शूटर मुन्ना बजरंगी की।

17 साल की उम्र में मुन्ना पर दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा

तस्वीर में मुन्ना बजरंगी है। मुन्ना बाहुबली मुख्तार अंसारी का सबसे खास शूटर रहा है।

तस्वीर में मुन्ना बजरंगी है। मुन्ना बाहुबली मुख्तार अंसारी का सबसे खास शूटर रहा है।

साल 1967. जौनपुर के गांव पूरेदयाल कसेरू में पारसनाथ सिंह के घर लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा प्रेम प्रकाश सिंह। घर में प्यार से सभी ‘मुन्ना’ बुलाते। पिता किसान थे और घर के हालात भी बहुत अच्छे नहीं थे इसलिए पांचवी के बाद ही मुन्ना को स्कूल छोड़ना पड़ा। इसके बाद मुन्ना ने कालीन बुनना सीखा और वही काम करने लगा।

साल 1982. मुन्ना अक्सर गांव में लड़ाई-झगड़ा करता। एक दिन आपसी विवाद की वजह से मुन्ना ने गांव में मारपीट की। पुलिस कंप्लेंट हुई। तब से गांव के लोग भी मुन्ना से डरने लगे। हद तो तब हुआ जब इसके दो साल बाद ही मुन्ना ने अपने सेठ की हत्या कर दी। एक दिन मुन्ना कालीन बुन रहा था।

काम खत्म करने के बाद उसने और उसके दोस्तों ने अपने सेठ भुल्लन से काम के पैसे मांगे। उसने पैसे देने से मन कर दिया और मुन्ना के दोस्त को बुरा भला कहा। कुछ दिन बाद भुल्लन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसकी हत्या का आरोप मुन्ना पर लगा और पुलिस ने उसकी खोज शुरू कर दी।

मुन्ना पुलिस के हाथ तो नहीं आया। लेकिन वाराणसी के एक पूर्व मेयर थे अनिल सिंह, उन्होंने मुन्ना को खोज निकला। उसको पुलिस से पकड़वाने के लिए नहीं बल्कि उससे अपना काम करवाने के लिए। अब मुन्ना अनिल के सारे दुश्मनों का मर्डर करने लगा। पहले अनिल के दुश्मन सीताराम चौरसिया की हत्या हुआ फिर अविनाश राय पर गोली चली लेकिन वो बच गए। एक-एक दुश्मन मारे जाने लगे। इल्जाम लगा मुन्ना पर। मुन्ना का आतंक बढ़ने लगा और यहीं से उनसे नाम पड़ा ‘मुन्ना बजरंगी।’

जब मुन्ना बजरंगी की मुलाकात मुख्तार अंसारी से हुई
अनिल सिंह के साथ रहते हुए एक दिन मुन्ना की मुलाकात बाहुबली मुख्तार अंसारी से हुई। ये वो वक्त था जब मुख्तार अंसारी और बृजेश-त्रिभुवन गैंग के बीच गैंगवॉर शुरू हो चुकी थी। लेकिन अब तक मुन्ना इस गैंगवार में शामिल नहीं था। साल 1990 में साधु सिंह हत्याकांड के आरोपी राजदेव पांडेय की हत्या कर दी गई। उसके बाद मुन्ना का नाम इस गैंगवार से जुड़ा। एक दिन वार के दौरान मुन्ना के पैर में गोली लग जाती है।

खून निकलते हुए लड़खड़ा कर वो किसी तरह मुख्तार के पास पहुंचा। मुख्तार ने तुरंत अस्पताल ले जाकर उसका इलाज कराया। मुन्ना मुख्तार का ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूला और मरते दम तक मुख्तार से साथ ही रहा। कुछ दिन बीते। मुन्ना अब ठीक हो चुका था।

मुन्ना को गोली जौनपुर के बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह ने मारी थी। सही होते ही उसने सबसे पहले नेता की हत्या कर दी। साथ में नेता के गनर समेत एक और आदमी भी मारा गया। यहीं से मुन्ना बजरंगी अंडरवर्ल्ड की दुनिया में बड़ा नाम बन गया।

विधानसभा में मुन्ना के मरने का जश्न मनाया गया, लेकिन…
मुन्ना को पकड़ने के लिए साल 4 मई 1998 में यूपी सरकार ने STF के गठन को मंजूरी दे दी। कुछ दिन बाद 11 सितंबर 1998 को STF को मुन्ना के मूवमेंट की जानकारी मिली। वो दिल्ली के करनाल रोड से निकलने वाला था। उसे पकड़ने के लिए जाल बिछाया। मुन्ना काले रंग की स्टीम से वहां पंहुचा तो पुलिस ने उसे घेर लिया।

गाड़ी में मुन्ना के साथ एक साथी और मौजूद था। मुन्ना को खतरा लगा तो उसने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन मुठभेड़ में मुन्ना और उसके साथी को गोली लग गई। STF की टीम दोनों को लेकर लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंची। वहां डॉक्टर ने दोनों को मृत बता दिया।

जब मुन्ना को गोली मारी गई उस वक्त यूपी विधानसभा में बढ़ते अपराध को लेकर कल्याण सिंह की सरकार पर निशाना साधा जा रहा था। इसी गहमागहमी के बीच कल्याण सिंह को एक पर्ची मिली। पर्ची देखते ही सीएम कल्याण सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पर्ची में लिखा था, ‘STF ने नामी डॉन मुन्ना को मार गिराया।’

उस समय मुन्ना का खौफ इतना ज्यादा था कि जैसे ही कल्याण सिंह ने विधानसभा में ये जानकारी सबको दी सभी ने मेजें थपथपाकर अभिवादन किया। सभी ने कल्याण सिंह को बधाई दी। सदन खत्म हो गया।

…लेकिन मुन्ना बजरंगी अभी जिंदा था

9 गोली लगने के बाद भी मुन्ना जिंदा बच गया। हालांकि बाद में मुन्ना की जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। तस्वीर मुन्ना के गांव की है।

9 गोली लगने के बाद भी मुन्ना जिंदा बच गया। हालांकि बाद में मुन्ना की जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। तस्वीर मुन्ना के गांव की है।

कुछ घंटे बाद मुन्ना की बॉडी को पोस्टमॉर्टम हाउस भेज दिया गया। डॉक्टर्स वहां पहुंचे तो देखा कि मुन्ना की सांसें अभी भी चल रही हैं। डॉक्टर्स ने तुरंत ये बात STF की टीम को बताई। इसी बीच बीजेपी MLA कृष्णानंद राय की हत्या हुई, जिसका इल्जाम मुन्ना पर लगा। साथ ही साल 2012 में मुन्ना ने जौनपुर के मड़ियाहूं से विधानसभा चुनाव लड़ा। हार गया।

साल 2016 में मुन्ना के साले की हाय कर दी गई। उस वक्त मुन्ना की पत्नी ने आरोप लगाया कि STF उनके पति की भी हत्या कर देगा। 8 जुलाई 2018. मुन्ना को झांसी जेल से बागपत जेल भेजा जाता है। अगली सुबह ही जेल में मुन्ना की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। यहीं से मुन्ना चैप्टर हमेशा के लिए खत्म हो गया।

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