द्रौपदी मुर्मू संथाली, महिलाएं पहनती थीं मिट़टी के जेवर: बाहा पर्व में रंग डाला तो करनी पड़ती है शादी, दउरा में बिठाकर भरते हैं मांग

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  • The Bangle Is A Signal Of Honeymoon, If You Put Colour Throughout The Baaha, Then You Have To Do It By Sitting In The Marriage dura And Fill The Demand.

नई दिल्ली18 मिनट पहलेलेखक: दीक्षा प्रियादर्शी

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द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। मुर्मू देश की दूसरी महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी।

द्रौपदी मुर्मू भारत की प्राचीन जनजाति संथाल से आती हैं। संथाल समाज मूल रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में बसा है। आबादी के तौर पर देखे तो ये झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति है। आइए आपको बताते हैं कि अगर द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन के तौर-तरीकों में क्या बदलाव आ सकता है। इसको लेकर वुमन भास्कर ने स्नेहा मुर्मू से बात की है और उनके रहन-सहन, तौर-तरीके और खान-पान के बारे में जाना है।

संथालों के लोक कथाओं में इस बात का दावा किया जाता है कि यह हिहिरी से आए थे, जिसे बाद में हजारीबाग जिले के अहुरी के रूप में पहचाना गया। एक समय में ये घना जंगला हुआ करता था। अहुरी से उन्हें छोटा नागपुर, फिर झालदा, पटकुम और साउंट तक फैलते गए, जो लोग संथाली भाषा बोलते हैं।

संथालों की ड्रेसिंग स्टाइल क्या होती है

वुमन भास्कर से बात करते हुए स्नेहा मुर्मू बताती हैं कि संथाली ज्यादातर हैंडलूम (नेचुरल तरीके से बने कपड़े) से बने कपड़े पहनते है। लड़के कांचा (धोती) पहनते हैं। वहीं लड़किया कॉटन जैसे मटेरियल से बनी साड़ी पहनती हैं, जिसे झल या फुटा साड़ी बोलते हैं। हालांकि, कुछ लोगों के शहरों में सेटल होने के बाद उनके पहनावे में अंतर आया है, लेकिन आज भी किसी भी शादी या त्योहार में अपने पारंपरिक कपड़ों को ही महत्व देते हैं।

पारंपरिक रूप से संथाली महिलाएं रंगीन धागों के चेक्स वाली साड़ी पहनती हैं, शादी या किसी खास मौके पर वो ऐसे ही डिजाइन वाली लाल साड़ी पहनती हैं।

पारंपरिक रूप से संथाली महिलाएं रंगीन धागों के चेक्स वाली साड़ी पहनती हैं, शादी या किसी खास मौके पर वो ऐसे ही डिजाइन वाली लाल साड़ी पहनती हैं।

संथाली महिलाएं पहले मिट्टी से बनी ज्वेलरी पहनती थीं

पहले के समय में संथाली महिलाएं मिट्टी से ज्वेलरी बनाकर पहनती थीं, जिसे वो खुद बनाती थीं। मगर, धीरे-धीरे महिलाओं ने चांदी की ज्वेलरी (रुपा) पहनना शुरू किया। संथाली भाषा में चूरी, ईयररिंग्स सबके अलग-अलग नाम होते हैं।

संथाली महिलाएं पहले खुद से बनाई हुई मिट्टी की ज्वेलरी पहनती थीं, अब चांदी का चलन है।

संथाली महिलाएं पहले खुद से बनाई हुई मिट्टी की ज्वेलरी पहनती थीं, अब चांदी का चलन है।

घर को सजाने के लिए दीवारों पर करते हैं पेटिंग

आदिवासी समाज के ज्यादातर घरों के दीवारों पर कुछ डिजाइन बनाए जाते थे, जिसे पुराने समय में इसे घर को सजाने के लिए बनाया जाता था। साल में एक बार या मकर संक्रांति या फिर दीवाली में घर के दीवारों पर कुछ डिजाइन बनाए जाते हैं। इस डिजाइन के पैटर्न इंटरनेट या किताबों में मिलना मुश्किल है। ये संथाली महिलाओं की खुद की क्रिएटिविटी होती है या फिर वो बचपन से अपने घर मे सीखती हैं।

घर की दीवारों को सुंदर बनाने के लिए कुछ इस तरह के डिजाइन बनाती हैं संथाली महिलाएं।

घर की दीवारों को सुंदर बनाने के लिए कुछ इस तरह के डिजाइन बनाती हैं संथाली महिलाएं।

प्रकृति से जुड़ाव, जीवन पेड़-पौधों पर निर्भर

संथाली मूल रूप से अपने जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर हैं। स्नेहा बताती हैं आज भी झारखंड में कई गांव ऐसे हैं, जिनके घर में बाजार से सिर्फ कपड़े ही खरीदे जाते हैं। बाकी सारी चीजों के लिए वो प्रकृति पर निर्भर रहते हैं। आज भी कई लोग कपड़े भी अनाज के बदले खरीदते हैं।

रीति-रिवाज और मुख्य त्योहार क्या होते हैं

संथाली मूर्ति पूजा नहीं करते, वो नेचर और अपने पूर्वजों को पूजते हैं। घर का कोई पुरुष ही पूजा करता है और पूजा के तरीके को वो अपने बेटों को सिखाते हैं। उसके अलावा बाहा पर्व के दौरान पूजा की जाती है। उसमें कम्यूनिटी के पांच बड़े लोग, जिनको संथाली भाषा में मोड़ेहोड़ कहा जाता है, इस पूजा को करते हैं। इस दिन संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर थिरकते हैं और एक-दूसरे पर पानी डालते हैं। इसके अलावा संथालों में बाहा पर्व का सिलसिला होली के पहले ही शुरू हो जाता है। अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथियों पर बाहा पर प्रकृति पूजा का विशेष आयोजन होता है, बाहा का मतलब है फूलों का पर्व। इस दिन संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर थिरकते हैं और जिस रिश्ते में मजाक चलता है, उनपर पानी डालते हैं।

बाहा पर्व के मौके पर ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचती संथाली महिलाएं।

बाहा पर्व के मौके पर ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचती संथाली महिलाएं।

दउरा यानी टोकरी में बिठा कर भरते हैं मांग

स्नेहा बताती हैं कि शादी में हमारे यहां औरों से अलग लड़की को टोकरी यानी ‘दउरा’ में बिठा कर मांग भरी जाती है। इसके अलावा हमारे यहां शादी मंगलसूत्र नहीं पहनाया जाता है। हमारे यहां दूल्हा-दुल्हन के लेफ्ट हाथ में लोहे की चूड़ी पहनाता है, जिसको संथाली भाषा में ‘मेढ़हे सांकोम’ बोला जाता है। संथाल में शादी के बाद लड़की सिंदूर या मंगलसूत्र ना लगाए चलेगा, लेकिन ये लोहे की चूड़ी पहनना महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि ये चूड़ी सुहाग की निशानी होती है।

दउरा में बिठा कर कुछ ऐसे पूरी की जाती है मांग भरने की रस्म।

दउरा में बिठा कर कुछ ऐसे पूरी की जाती है मांग भरने की रस्म।

लड़के ने किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो करनी पड़ती है शादी

यदि किसी भी युवक ने कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो समाज की पंचायत लड़की से उसकी शादी करवा देती है। अगर लड़की को शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है। पूजा के बाद वह सखुआ, महुआ और साल के फूल बांटते हैं। इस पूजा के साथ संथाल समाज में शादी विवाह का सिलसिला शुरू होता है। संथाल समाज में कोई दहेज का चलन नहीं है। घर में कोई गेस्ट आते हैं तो काशा के लोटे में पानी भर के उनको पैर धोने देते हैं और इसे लोग शहर में रहने के बाद भी फॉलो करते हैं।

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