दिव्यांका त्रिपाठी वजन बढ़ने को लेकर ट्रोल्स पर भड़कीं: निया शर्मा-ऋचा चड्ढा को लगता है मोटापे से डर, पतली कमर की सनक ले सकती है जान

नई दिल्ली7 मिनट पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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‘ये हैं मोहब्बतें’ टीवी सीरियल से पॉपुलर हुईं दिव्यांका त्रिपाठी को हाल ही में बढ़े हुए वजन के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया। कुछ लोगों ने उन्हें प्रेग्नेंट समझा। ऐसे में एक्ट्रेस ने ट्रोलर्स को मुंहतोड़ जवाब दिया।

उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट कर लिखा ‘मेरे पास फ्लैट टमी नहीं है। दोबारा मत पूछना कि मैं प्रेग्नेंट हूं या मोटी।’

समाज की सोच में पतली कमर आदर्श है जबकि मोटापा कलंक। ऐसे में स्लिम दिखने की चाहत कुछ लोगों को मानसिक रूप से बीमार कर देती है जिसे ओबेसोफोबिया कहा जाता है।

क्या है ओबेसोफोबिया?

खाने को नाप-तोल कर खाना, बार-बार अपना वजन चेक करना, इंची टेप से टम्मी नापना, हल्की-सी डबल चिन दिखे तो कई घंटों तक एक्सरसाइज करना…सुबह-शाम सिर्फ यह सोचना कि मोटे न हो जाएं। यह सब लक्षण ओबेसोफोबिया के होते हैं। इसे पोक्रेस्कोफोबिया भी कहते हैं।

यह एक एंग्जायटी डिसऑर्डर है। इस बीमारी का संबंध इटिंग डिसऑर्डर से है।

फिटनेस इंडस्ट्री ने बना दिया खूबसूरती का पैमाना

दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता ने बताया कि आजकल ब्यूटी और फिटनेस इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है। यह लोगों के बीच खूबसूरती का पैमाना निर्धारित कर रही है। जैसे बॉलीवुड एक्टर की तरह बॉडी हो, इतना वजन हो, इतनी कमर।

इससे लड़कियां ज्यादा प्रभावित हैं। खूबसूरत दिखने की चाहत उन्हें ओबेसोफोबिया का शिकार बना सकती है और इटिंग डिसऑर्डर हो सकते हैं।

ओबेसोफोबिया में कई तरह के इटिंग डिसऑर्डर

एनोरेक्सिया नर्वोसा: इसमें इंसान को हमेशा वजन बढ़ने का डर सताता है। कई बार उन्हें लगता है कि वह ओवरवेट हैं जबकि वह कुपोषण के शिकार होते हैं। इस तरह का मरीज बेहद पतला होता है। वह हमेशा बॉडी शेप और वजन को लेकर जुनूनी होता है।

खुद को खाने से दूर रखता है। अगर खाना खा ले तो जबर्दस्ती उल्टी करता है। एनोरेक्सिया में जब शरीर में कैलोरीज की कमी होने लगती है तो इंसान की मसल्स कमजोर पड़ने लगती हैं। कई बार मल्टी ऑर्गन फेल हो जाते हैं।

बुलिमिया नर्वोसा: इसमें इंसान थोड़ा-थोड़ा करके बहुत खाना खा लेता है। इसके बाद जबरदस्ती उल्टी करता है या रेचक दवा (लैक्सेटिव और डाईयुरेटिक्स) खाने लगता है।

लैक्सेटिव खाने के बाद शरीर से मल निकलता है जबकि डाईयुरेटिक्स से पेशाब आता है। इसके अलावा कुछ लोग हद से ज्यादा एक्सरसाइज करने लगते हैं।

प्रिसेंस डायना ने साल 1994 में खुलासा किया था कि वह बुलिमिया नर्वोसा की शिकार हैं। इस बीमारी के बारे में उन्होंने लोगों को जागरूक भी किया था।

प्रिसेंस डायना ने साल 1994 में खुलासा किया था कि वह बुलिमिया नर्वोसा की शिकार हैं। इस बीमारी के बारे में उन्होंने लोगों को जागरूक भी किया था।

करियर और रिश्ते हो सकते हैं खत्म

मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता के अनुसार ओबेसोफोबिया से मरीज की प्रोफेशनल, पर्सनल लाइफ और रिलेशन खत्म हो सकता है। दरअसल इसमें इंसान को डिप्रेशन और एंग्जायटी घेर लेती है। जब व्यक्ति हमेशा वजन और खाने-पीने का सोचता है तो वह बाकी चीजों पर ध्यान नहीं दे पाता। कुछ लोगों पर यह चीजें इतनी हावी होने लगती हैं कि वह आत्महत्या तक कर लेते हैं। ऐसे लोगों के मन में हमेशा डर रहता है कि मोटे हो जाएंगे तो खराब दिखेंगे।

वहीं, अगर एनोरेक्सिया नर्वोसा नाम के इटिंग डिसऑर्डर का शिकार होंगे तो कुपोषित हो सकते हैं जिससे कई तरह की बीमारी हो सकती है और जान भी जा सकती है। ऐसे मरीजों को काउंसिलिंग के साथ-साथ दवा खाने की बेहद जरूरत होती है।

10 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा देते हैं

नेशनल इटिंग डिसऑर्डर ऑर्गनाइजेशन ने एक स्टडी की। इसके अनुसार दुनिया में 9% लोग इटिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं। 6% लोग इस कारण से अंडरवेट हैं। हर साल इस कारण से 10200 लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इटिंग डिसऑर्डर से हर 52 मिनट में 1 इंसान की जान जाती है। वहीं, 26% लोग इस बीमारी की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं।

महिलाओं में ज्यादा देखी गई ये बीमारी

नेशनल इटिंग डिसऑर्डर ऑर्गनाइजेशन ने यूएस, यूरोप और यूके के लोगों के बीच सर्वे किया। इसमें पाया गया कि एनोरेक्सिया नर्वोसा से 0.3-0.4% महिलाएं और 0.1% पुरुष ग्रस्त हैं। बुलिमिया नर्वोसा के 1.0% महिलाएं और 0.1% पुरुष मरीज हैं।

94% मरीज को डिप्रेशन

इंटरनेशनल जनरल ऑफ इटिंग डिसऑर्डर ने साल 2009 में एक स्टडी की। इसमें पाया गया कि 5 में से 1 महिला इटिंग डिसऑर्डर के लिए इलाज कराती हैं। अस्पताल में भर्ती 36.8% महिलाएं खुद को नुकसान पहुंचाती हैं। वहीं, 94% मरीज डिप्रेशन और 56% एंग्जायटी के शिकार हैं।

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