ढलती उम्र में अपनों ने छोड़ा साथ: जान देने निकली थी, पहुंची वृंदावन-किसी का परिवार बना रिटायरमेंट होम, बच्चों से छीना अंतिम संस्कार का हक

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नई दिल्ली12 घंटे पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा

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हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी ताकत इसकी युवा आबादी को बताया जाता है, लेकिन साल 2050 तक यह युवा आबादी बूढ़ी हो जाएगी। तब भारत युवाओं का नहीं, बुजुर्गों का देश कहलाएगा। अभी देश की कुल आबादी की 14 करोड़ जनसंख्या बुजुर्गों की है, जिनमें से डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग अकेलेपन के दर्द से गुजर रहे हैं। इस बुजुर्ग भारत के आने वाले कल की झलक हमें आज में दिखाई देने लगी है। आज ‘वर्ल्ड सीनियर सिटिजन डे पर जानें’ कैसे उम्रदराज लोग समाज के एक कोने में धकेल दिए गए हैं और ये पुराने दरख्त एकसाथ रहने पर मजबूर हैं।

सीन-1: अजनबी बन गए दोस्त, हम सब हैं परिवार

नोएडा सेक्टर-45 में तपस्या रिटायरमेंट होम के गेट से अंदर घुसते ही बाईं और हरा-भरा पार्क, जिसमें करीने से प्लास्टिक की कुर्सियां रखी हैं। दूसरी ओर बैडमिंटन कोर्ट बना है। थोड़ा आगे बढ़ते ही एक एसी वाला बड़ा सा हॉल है, जिसमें एक शानदार सोफा और सेंटर टेबल सजी है। दाईं ओर बड़ा सा किचन और बाईं ओर मंदिर। सोफे पर बैठे कुछ बुजुर्ग स्टाफ के सदस्यों के साथ बैठकर टीवी देख रहे हैं। दोपहर का वक्त होने के कारण ज्यादातर लोग आराम कर रहे है।

तभी 88 साल की रामदेवी (बदला हुआ नाम) छड़ी के सहारे हॉल में आती हैं और वहीं पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ जाती हैं। पूछने पर बताती हैं, ’घर-परिवार सब है। पति सरकारी नौकरी में थे। वो नहीं रहे तो उनकी पेंशन के पैसे मुझे मिलते हैं। बेटे-बहू को दो वक्त का निवाला बोझ लगने लगा। तीन बेटियां भी हैं, जो 3-3 महीने मुझे अपने घर रखती थीं। पेंशन के पैसे ले लेतीं, लेकिन दो वक्त के खाने, दवाई और मेरी छोटी-छोटी चीजों का ख्याल रखना भूल जातीं। मेरे बच्चे मुझे बोझ समझने लगे। हर दिन भगवान से मरने की दुआ करती। फिर पिछले साल नवंबर की बात है, मेरा पोता मुझे यहां छोड़ गया। दो-चार दिन अजनबी लोगों के बीच रहना अजीब लगा, लेकिन अब ये लोग मेरा परिवार बन गए हैं। अब मैं चाहती हूं कि जब मैं मरूं, तो मेरा अंतिम संस्कार भी यही लोग कर दें।’

नोएडा सेक्टर-45 में तपस्या रिटायरमेंट होम में रहने वाले बुजुर्ग। लेफ्ट से बुजुर्ग महिला के बाद नीली शर्ट में रिटायरमेंट होम के संचालक निखिल शर्मा।

नोएडा सेक्टर-45 में तपस्या रिटायरमेंट होम में रहने वाले बुजुर्ग। लेफ्ट से बुजुर्ग महिला के बाद नीली शर्ट में रिटायरमेंट होम के संचालक निखिल शर्मा।

रिटायरमेंट होम चलाने वाले निखिल शर्मा बताते हैं, ‘एकरोज अचानक माताजी रामदेवी ने मुझे पूछा कि मैं मर गई तो तुम क्या करोगे, उस पल मैं सकपका गया। रोंगेट खड़े हो गए, क्योंकि मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। मैंने उन्हीं से पूछा- आप बताइए, क्या चाहती हैं, उन्होंने जवाब दिया- मेरा अंतिम संस्कार तुम्हीं करना। चाहो तो किसी पेपर पर लिखकर साइन करवा लो, जो मेरा बच्चों को दिखा देना। उसके बाद मैं ऐसी स्थिति के लिए भी तैयार हूं।’

दरअसल, तपस्या रिटायरमेंट होम में ढलती उम्र के पड़ाव पर आ चुके ऐसे बुजुर्ग रह रहे हैं, जिनके पास पैसे की कमी नहीं है, लेकिन उनका ख्याल रखने के लिए उनके अपनों के पास वक्त नहीं है। बिल्डिंग में हॉल के अलावा पांच बड़े-बड़े कमरे हैं, जिनमें 8 पुरुष और सात महिलाएं रह रहीं हैं। ये सभी एक वक्त पर एक-दूसरे के लिए अजनबी थे, लेकिन अब एक-दूसरे के दोस्त बन गए। साथ बैठकर खाते हैं, एक-दूसरे को हंसाते हैं और दुख-सुख वाली यादें साझा करते हैं और इन सबके बीच है सिमटा, सहमा, सिकुड़ा और उदास बुढ़ापा।

बुजुर्गों की आबादी वाली लिस्ट में चीन का 60वां नंबर है तो भारत का 100वां नंबर।

बुजुर्गों की आबादी वाली लिस्ट में चीन का 60वां नंबर है तो भारत का 100वां नंबर।

सीन-2 : पर्सनल स्पेस है और हमउम्र दोस्त भी

देहरादून स्थित अंतरा सीनियर लिविंग कम्यूनिटी परिसर में सुबह कुछ बुजुर्ग योग कर रहे हैं तो कुछ वॉक। कुछ पार्क में बेंच पर बैठकर सूरज की सुनहरी किरणों के साथ आपस में हंसी मजाक कर रहे हैं। इसके बाद सब अपने-अपने घर जाकर नहाना, खाना और आराम करते हैं। फिर शाम के वक्त कहीं चाय पर जलेबी छन रही होती है तो कहीं 72 साल के बुजुर्ग कैरम खेलते हुए ‘रानी’ की जुगत में हैं, लेकिन तभी ग्रे बालों वाली आंटी का सटीक निशाना रानी पर लगता है और सब तेजी से तालियां बजा उठते हैं। हॉल हंसी-मजाक और ठहाकों से गूंज उठता है, जिसमें बुढ़ापे और अकेलेपन का दर्द धुआं होता नजर आता है।

सोसाइटी में रहने वाली नीलम शर्मा बताती हैं, ‘मैं सिंगल वर्किंग वुमन रही। जिंदगी भागमभाग में गुजर रही थी। इसलिए मुझे रिटायरमेंट के बाद किसी ऐसी जगह रहना था, जहां अपने हर दिन को सुकून से जी सकूं। इसलिए मैं यहां आ गई। यहां पर्सनल स्पेस भी है और हमउम्र दोस्त भी। यहां सभी सुविधाएं भी ढलती उम्र के हिसाब से तैयार की गईं हैं, इसलिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है।’

अंतरा सीनियर लिविंग कम्यूनिटी परिसर साथ बैठकर ताश खेलते बुजुर्ग महिला और पुरुष।

अंतरा सीनियर लिविंग कम्यूनिटी परिसर साथ बैठकर ताश खेलते बुजुर्ग महिला और पुरुष।

सीन-3 सीनियर सिटीजन कॉम्प्लेक्स, ग्रेटर नोएडा

ग्रेटर नोएडा में सीनियर सिटीजन कॉम्प्लेक्स के गेट के बाहर से सड़क गुजरती है। डिवाइडर पर बेंच लगी हैं, जिस पर बैठे बुजुर्ग ओमवीर किसी का इंतजार कर रहे हैं। वहीं दूसरी बेंच पर तीन बुजुर्ग महिलाएं बैठी हैं, जो किसी बात पर हंसती नजर आती हैं। क्या यहां सभी बुजुर्ग लोग ही रहते हैं, इसके जवाब में ओमवीर कहते हैं- नहीं, यहां सारे फ्लैट बुजुर्गों के नाम पर हैं, लेकिन उनके बेटे-बेटी, बहुएं और नाती-पोते भी रहते हैं।

दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने हाल ही में ऐलान किया है कि वो बुजुर्गों के लिए काम करने वाले एक स्टार्टअप ‘गुडफेलोज’ में निवेश करेंगे।

एल्डरली इन इंडिया की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 13.80 करोड बुजुर्ग हैं। इनमें से जो संपन्न हैं, वे रिटायरमेंट होम्स या फिर सीनियर सिटीजन सोसाइटी सुख-सुविधाओं के साथ रह रहे हैं, जबकि कुल बुजुर्गों में से गांवों में 79 और शहरों 76 फीसदी खाने-रहने के लिए बच्चों के मोहताज हैं।

यमुना में कूदकर दे देती जान….
उत्तर प्रदेश के भदोही की दो बुजुर्ग महिलाएं हाल ही में वृंदावन के एक वृद्धाश्रम में पहुंचीं। रोईं-गिड़गिड़ाईं और ‘राधे करुणामयी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट’ से रहने के लिए जगह मांगी। उनमें से एक शशि देवी बताती हैं, पति की बहुत पहले ही मौत हो चुकी थी। दिन-रात मेहनत कर बच्चों का पालन पोषण किया। शादी हो गई। अब वहीं बेटे और उनकी बहुएं हर रोज गाली-गलौज करते हैं। दिनभर घर के काम में लगे रहना है, लेकिन भरपेट खाने की आजादी नहीं थी। हद तो तब हो गई जब मुझे सबके सामने पीटा। न बेटे को तरस आया और न बहू को। बस तभी घर से निकल पड़ी। अगर उस दिन मुझे यहां शरण नहीं मिलती तो मैं शायद यमुना में कूदकर अपनी जान दे देती। इस तरह न जाने कितने बड़े-बुजुर्ग हर दिन अपनों से अपमानित होते हैं। हैरानी की बात ये हैं कि केरल जिसे संपन्न राज्यों में गिना जाता है, वहां बुजुर्गों और वृद्धाश्रम दोनों की ही संख्या सबसे अधिक है।

फिल्मों में दिखाई गई समाज की सच्चाई

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बेटों वाली विधवा’ समाज की बेहद कड़वी सच्चाई पेश करती है। कैसे पिता पंडित आयोध्यानाथ के निधन के बाद उनके बेटे सारी संपत्ति हथिया लेते हैं और मां फूलमती के साथ अपने ही घर में नौकरों जैसे व्यवहार करते हैं। फिल्मों में भी ऐसी कहानियों की कमी नहीं है। साल 2003 में आई फिल्म ‘बागबान’ हो या हॉलीवुड फिल्म ‘नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन’ दोनों में बुजुर्गों के प्रति अपनों और समाज की बेरुखी और हिकारत को स्क्रीन पर दिखाया गया है। जिसे देखते वक्त दर्शकों की भी कई दफा आंखें भीग जाती हैं।

नियम है 60 दिन में मिले न्याय, लेकिन 4 साल से लगा रहे कोर्ट के चक्कर

सरिता विहार में रहने वाली सीता देवी कहती हैं, ‘पति की मौत कई साल पहले हो चुकी है। बेटा-बहू अलग रहते हैं। एक रोज पोता घर आ गया और बोला दादी मुझे आपके साथ ही रहना है। फिर शादी करके बहू को भी लेकर आ गया। 10-15 दिन सब ठीक रहा, उसके बाद पोता और उसकी बहू का रंग-ढंग बदल गया। अपने ही घर में नौकरानी बना दिया। न फैसला लेने की आजादी न भरपेट खाना। अपने ही घर में जमीन पर सोती हूं। तंग आकर मैंने थाने में जाकर शिकायत की। पोता-बहू को घर से बेदखल कराने की याचिका लगाई, लेकिन अदालत से हर बार तारीख मिलती, न्याय नहीं।

यही हाल हर्ष विहार में रहने वाले बुधीराम का है। बुधीराम के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा-बहू अलग रहते हैं और छोटे-बेटा-बहू ने उनके अपने ही घर में जीना दूभर कर दिया है।बुधीराम 3 साल से कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अब तक 17 तारीखें मिली, न्याय नहीं। बुधीराम कहते हैं, कई दफा सोचता हूं कि न्याय मिलने में इतनी देर न हो जाए कि फिर उसका कोई मतलब ही न बचे।

बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए बना कानून फैमिली और क्रिमिनल लॉ एक्सपर्ट मनीष भदौरिया के मुताबिक, बुजुर्गों को फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, मेंटेनेंस (जिंदगी जीने के लिए खर्च) और प्रोटेक्शन देने के लिए सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 लागू किया गया। इसके तहत ऐसे माता-पिता, दादा-दादी और बुजुर्ग, जो अपनी आय और संपत्ति से अपना खर्च नहीं चला पा रहे हैं, वे इस एक्ट के तहत मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं। परिवार की ओर से बुजुर्ग की देखरेख न करना, मेंटेनेंस न देना और परेशान करना कानूनी अपराध है, इसलिए तीन माह की कैद तथा पांच हजार रुपए जुर्माना लग सकता है। इसके तहत सात से 60 दिन में फैसला आ जाना चाहिए, जबकि हकीकत में ऐसा होता नहीं है।

सीनियर सिटीजन जानें अपने अधिकार

  • संतान देखभाल न करे तो बुजुर्ग उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराकर उनसे गुजारा-भत्ता मांग सकते हैं।
  • अगर बच्चे परेशान करें तो बुजुर्ग जीते जी उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं।
  • माता-पिता के जीते जी संपत्ति पर बच्चों का कोई अधिकार नहीं होता है।
  • 2007 के बाद अपनी संपत्ति बच्चों को गिफ्ट कर दी है और बच्चे जरूरी सुविधाएं न दें तो संपत्ति वापस ली जा सकती है।
  • बुजुर्गों को घर से निकालना गंभीर अपराध है। इसके लिए 5 हजार रुपए का जुर्माना या 3 महीने की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं।
  • जिसका कोई वारिस नहीं है, उनकी देखभाल सरकार करती है। राज्य के हर जिले में एक वृद्धाश्रम होना चाहिए।

सावधानी जरूरीः बुजुर्ग नजदीकी पुलिस स्टेशन में कराएं खुद को रजिस्टर्ड

दिल्ली पुलिस की स्पेशल कमिश्नर इंटेलिजेंस गरिमा भटनागर बताती हैं कि अकेले रहने वाले बुजुर्गों के प्रति क्राइम बढ़ रहा है। कभी अपने ही जुर्म ढहाते हैं तो कभी अपराधी घात लगाते हैं, ऐसे में जरूरी है कि वे प्रिवेंटिव मैजर अपनाएं। बुजुर्ग नजदीकी पुलिस स्टेशन में अपना रजिस्ट्रेशन कराएं ताकि पुलिस अधिकारी समय-समय पर जाकर उनकी खैर-खबर ले सकें। दिल्ली-मुंबई समेत भोपाल, जयपुर, पटना, लखनऊ समेत तमाम बड़े शहरों में सीनियर सिटीजन ऐसे उपाय अपना रहे हैं।

बुजुर्गों के साथ ज्यादातर अपराध की घटनाएं पॉश एरिया में होती हैं। अपराधी जानते हैं कि बुजुर्ग संपन्न हैं और अकेले रहते हैं, जबकि उनके बच्चे किसी दूसरे शहर या फिर विदेश में रहते हैं। क्राइम करने वालों में मेड, ड्राइवर, चौकीदार भी शामिल होते हैं। ये लोग पहले रेकी करते हैं, फिर गुड बुक में आने के लिए अच्छा व्यवहार करते हैं, इसके बाद घटना को अंजाम देते हैं। बुजुर्ग शारीरिक तौर पर कमजोर होते हैं, जिससे वे हमले का विरोध नहीं कर पाते हैं।
– अजय सिंह, रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी

बुजुर्गों को मिलने वाली सुविधाएं और छूट

  • 60 से 79 साल के नागरिकों को 3 लाख और 80 साल से ऊपर के बुजुर्गों को 5 लाख सालाना आय पर कोई कर नहीं देना पड़ता।
  • बुजुर्गों के लिए बस के किराये में छूट है। बस और मेट्रो में सीटें भी आरक्षित होती हैं। रेलवे की ओर से बुजुर्गों के लिए अलग काउंटर और स्टेशन पर व्हील चेयर की व्यवस्था होती है।
  • इनकम टैक्स एक्ट-1961 की धारा 80डी के तहत वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम भुगतान में 50 हजार रुपए तक की छूट मिलती है।
  • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के तहत वरिष्ठ नागरिकों को मासिक पेंशन विकल्प चुनने पर 10 वर्षों के लिए 8% और वार्षिक पेंशन पर 10 वर्षों के लिए 8.3% का रिटर्न मिलेगा।
  • बैंकों ने सीनियर सिटीजन के लिए डोर-स्टेप सर्विस दी है, जिससे लाइफ सर्टिफिकेट, कैश का लेनदेन, डिमांड ड्राफ्ट, KYC डॉक्यूमेंट जैसे कई काम घर बैठे कराए जा सकते हैं।
  • भारत बिल पेमेंट सिस्टम के जरिये NRI बच्चे भारत में रह रहे बूढ़े मां-बाप के बिजली -पानी और कैब समेत सभी बिल विदेश में बैठे-बैठे भर सकते हैं।
  • अस्पतालों में बुजुर्गों के लिए अलग लाइन की व्यवस्था है। कैंसर, मोटर न्यूरॉन, एड्स जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के दौरान मेडिकल बिल में भी छूट रहती है।

हेल्पलाइन पर बताएं समस्या और लें मदद
अगर कोई बुजुर्ग किसी समस्या में हैं तो अपने पड़ोसी और पुलिस से मदद लें। इसके अलावा, टोल फ्री एल्डर हेल्पलाइन नंबर 14567 पर कॉल करके भी मदद ले सकते हैं। इस हेल्पलाइन के जरिए बुजुर्ग पेंशन और कानूनी मुद्दों के बारे में निशुल्क जानकारी ले सकते हैं।

व्यस्त रहेंगे तो स्वस्थ रहेंगे
दिल्ली स्थित एम्स के जेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और हेल्दी एजिंग इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. प्रसून चटर्जी के मुताबिक, बुजुर्गों में ब्लड प्रेशर, दिल की समस्या, एनीमिया, बोलने की बीमारी आम है। उम्र ढलने के साथ वे बच्चों से व्यवहार करने लगते हैं, इसलिए बुजुर्ग जितने ज्यादा व्यस्त रहेंगे, अपनों के साथ समय बिताएंगे, उतने ही स्वस्थ रहेंगे। हम ओल्ड एज होम में भी तरीका अपनाते हैं।

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