नई दिल्ली10 मिनट पहले
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15 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने जया ठाकुर की याचिका को सुनवाई 21 मार्च के लिए लिस्ट किया था।
सुप्रीम कोर्ट आज चुनाव आयोग में नियुक्ति से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। 2023 के नए कानून के तहत होने वाली आयुक्तों की नियुक्तियों को चुनौती दी गई थी। नए कानून के तहत CJI को चयन पैनल से बाहर करने पर आपत्ति जताई गई है।
केंद्र सरकार ने बुधवार 20 मार्च को दायर हलफनामे में कहा है कि ये दलील गलत है कि किसी संवैधानिक संस्था की स्वतंत्रता तभी होगी, जब सिलेक्शन पैनल में कोई ज्यूडिशियल मेंबर जुड़े। इलेक्शन कमीशन एक स्वतंत्र संस्था है।
याचिका कांग्रेस कार्यकर्ता जया ठाकुर ने दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
पूर्व चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप पांडे के रिटायरमेंट के बाद नए कानून के अनुसार 2 नए चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार-सुखबीर संधु की नियुक्ति 14 मार्च को हुई है।
CEC राजीव कुमार के साथ नवनियुक्त चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधु।
चुनाव आयुक्ताें की नियुक्ति की प्रक्रिया…
29 दिसंबर 2023 को ही CEC और EC की नियुक्ति का कानून बदला है। इसके मुताबिक, विधि मंत्री और दो केंद्रीय सचिव की सर्च कमेटी 5 नाम शॉर्ट लिस्ट कर चयन समिति को देगी। प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता या सबसे बड़े विरोधी दल के नेता की तीन सदस्यीय समिति एक नाम तय करेगी। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नियुक्ति होगी।
नए कानून पर विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई थी
विपक्षी दलों का कहना था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ बिल लाकर उसे कमजोर कर रही है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में एक आदेश में कहा था कि CEC की नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और विपक्ष के नेता की सलाह पर राष्ट्रपति करें।
याचिका में आरोप- ये कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन
जया ठाकुर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि धारा 7 और 8 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि यह चुनाव आयोग के सभी सदस्यों की नियुक्ति के लिए फ्री सिस्टम प्रदान नहीं करता है।
ये कानून सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के फैसले को पलटने के लिए बनाया गया, जिसने CEC-EC को एकतरफा नियुक्त करने की केंद्र की शक्तियां छीन ली थीं। यह वो प्रथा है जो आजादी के बाद से चली आ रही है।
चुनाव आयोग में कितने आयुक्त हो सकते हैं?
चुनाव आयुक्त कितने हो सकते हैं, इसे लेकर संविधान में कोई संख्या फिक्स नहीं की गई है। संविधान का अनुच्छेद 324 (2) कहता है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि इनकी संख्या कितनी होगी। आजादी के बाद देश में चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे।
16 अक्टूबर 1989 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की। इससे चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया। ये नियुक्तियां 9वें आम चुनाव से पहली की गईं थीं। उस वक्त कहा गया कि यह मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के पर कतरने के लिए की गईं थीं।
2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह सरकार ने नियमों में संशोधन किया और चुनाव आयोग को फिर से एक सदस्यीय निकाय बना दिया। एक अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने फिर अध्यादेश के जरिए दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी दी। तब से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
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