द्वारका29 मिनट पहले
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भगवान श्रीकृष्ण की नगरी ‘द्वारका’ के इतिहास में शायद ये पहला ही मौका है, जब द्वारकाधीश मंदिर के दरवाजे आधी रात को खोले गए। जी हां, बुधवार की रात यहां कुछ ऐसा ही हुआ। इतना ही नहीं, मंदिर के पट किसी वीआईपी के लिए बल्कि 25 गायों के लिए खोले गए थे, जो भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करने करीब 450 किमी की पैदल यात्रा कर कच्छ से द्वारका पहुंची थीं।
रात के करीब 12 बजे मंदिर पहुंचीं गायें।
मालिक ने मांगी थी मन्नत
दरअसल, कच्छ में रहने वाले और भगवान द्वारकाधीश के भक्त महादेव देसाई की पशुशाला की 25 गायें करीब दो महीने पहले लंपी वायरस से ग्रस्त हो गई थीं। इस दौरान पूरे सौराष्ट्र में लंपी वायरस से गायों के मरने का सिलसिला जारी था। इसी बीच महादेव ने भगवान द्वारकाधीश से मन्नत मांगी थी कि अगर उनकी गायें ठीक हो गईं तो मैं इन गायों के साथ आपके दर्शन करने आऊंगा।
भगवान द्वारकाधीश के दर्शन के बाद की मंदिर की परिक्रमा।
ठीक हो गईं गायें, दूसरी गायों में भी नहीं फैला वायरस
महादेव बताते हैं कि भगवान द्वारकाधीश पर सबकुछ छोड़कर मैं गायों के इलाज में लग गया। कुछ दिन बाद ही गायें ठीक होने लगीं। करीब 20 दिन बाद सभी 25 गायें पूरी तरह स्वस्थ हो गईं। इतना ही नहीं, पशुपाला की दूसरी गायों में भी लंपा वायरस का संक्रमण नहीं फैला। इनके पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद मैं इन्हें लेकर पैदल ही कच्छ से द्वारका के लिए रवाना हो गया।
दर्शन के बाद द्वारकाधीश का प्रसाद ग्रहण किया।
आधी रात को खोले गए मंदिर के पट
मंदिर प्रशासन के लिए सबसे बड़ी समस्या गायों की मंदिर में एंट्री को लेकर ही थी। क्योंकि यहां दिन भर हजारों भक्तों की भीड़ रहती है। ऐसे में गायों के पहुंचने से मंदिर की व्यवस्था बिगड़ जाती। इसलिए तय किया गया कि मंदिर आधी रात को खोला जाए। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण तो गायों के ही भक्त थे तो वे रात में भी इन्हें दर्शन दे सकते हैं। इस तरह रात के 12 बजे के बाद मंदिर के दरवाजे खोल दिए गए। गायों ने अपने प्रिय भगवान द्वारकाधीस के दर्शन भी किए और प्रसाद भी ग्रहण किया।
करीब दो घंटे के विश्राम के बाद मंदिर से हुईं रवाना।
मंदिर की परिक्रमा भी की
द्वारका पहुंचकर गायों ने सबसे पहले भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करने के बाद मंदिर की परिक्रमा भी की। इस समय भी मंदिर परिसर में कई लोग गायों के स्वागत के लिए मौजूद थे। जगत मंदिर में ये दृश्य देखकर वे भी अभिभूत हो गए। मंदिर के पुजारियों ने भगवान के प्रसाद के अलावा इनके लिए चारे-पानी की भी व्यवस्था की थी।