कारगिल शहीद रामदुलार की शौर्यगाथा: कारगिल में पाकिस्तानी सेना के लिए काल बन गई थी रामदुलार की AK-47

4 घंटे पहले

मई 1999 में ऑपरेशन विजय के दौरान कारगिल में भारत और पाकिस्तान की फौजें आमने-सामने थीं। रामदुलार यादव की यूनिट जम्मू-कश्मीर के पूंछ में ही तैनात थी। युद्ध शुरू होते ही यूनिट को कारगिल भेज दिया गया। द्रास सेक्टर के एक चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी राम दुलार के यूनिट को सौंपा गया।

21 अगस्त 1999 रात की घटना है। हमले की पूरी तैयारी हो चुकी थी। दोनों तरफ से ताबड़तोड़ गोलियां चल रही थीं। रामदुलार अपने साथियों के साथ दुश्मन सेना की तरफ बढ़ रहे थे। वह अपने AK 47 से दुश्मनों पर काल बनकर बरस रहे थे। रामदुलार की टुकड़ी रेजिमेंट के युद्ध घोष ‘बजरंग बली की जय और दादा किशन की जय’ का नारा लगाते हुए पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी।

25 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके थे। राम दुलार टीम के साथ आगे बढ़ रहे थे तभी तोप का एक गोला पास आकर गिरा। हमले में शरीर से खून की धारा बहने लगी। रामदुलार यादव और उनके 5 साथी पाकिस्तानी फौज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

ट्रेनिंग के बाद रामदुलार यादव 13 कुमाऊं रेजिमेंट में तैनाती मिली। पहली बार परमवीर चक्र जीतने का सम्मान इसी रेजिमेंट के पास है।

ट्रेनिंग के बाद रामदुलार यादव 13 कुमाऊं रेजिमेंट में तैनाती मिली। पहली बार परमवीर चक्र जीतने का सम्मान इसी रेजिमेंट के पास है।

यह कहानी उनके साथ लड़ाई में शामिल दोस्तों ने पिता को बताई थी। रामदुलार यादव को कारगिल में वीरता और अदम्य साहस का उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए सेना ने उनको सेना मेडल से नवाजा था।

कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ था। 3 महीने तक चले इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। कारगिल वॉर हीरोज की कहानी के चौथे और अंतिम पार्ट में गाजीपुर के जांबाज फौजी रामदुलार यादव की बात करेंगे।

शहीद रामदुलार यादव का यही घर है। गांव के लोग अपनी पहचान शहीद गांव पड़ैनिया बताने पर गर्व महसूस करते हैं।

शहीद रामदुलार यादव का यही घर है। गांव के लोग अपनी पहचान शहीद गांव पड़ैनिया बताने पर गर्व महसूस करते हैं।

राम दुलार के पिता बताते हैं, “22 अगस्त को हम सभी अपने घर पर ही थे, गांव का एक लड़का दौड़ता हुआ घर आया बोला चाचा का टेलीफोन आया है। हम वहां तेजी से पहुंचे और फोन के पास ही बैठ गए। लगभग 5 मिनट बाद फोन की घंटी बजी, पूछा आप रामदुलार के पिता बोल रहे हैं। बेटे की जगह किसी अनजान की आवाज थी। फोन यूनिट कमांडिंग ऑफिसर का था। उन्होंने कहा राम दुलार मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए हैं।

गांव के जिस टेलीफोन पर बेटे ने पहुंचने की खबर दी थी, उसी टेलीफोन पर बेटे की शहादत की खबर आई, शहादत की खबर सुनकर कलेजा फटा जा रहा था। मां बेसुध हो चुकी थीं। पत्नी को मानो काटो तो खून नहीं। एक तरफ दो बेटे और एक तरफ रामदुलार का चेहरा आंखों के सामने तैर रहा था।

पिता राम नगीना 95 साल के हैं। रामदुलार को याद करते हुए कहते हैं कि वो परिवार को एकजुट रखने वाला था। मेरा लड़का हीरा था।

पिता राम नगीना 95 साल के हैं। रामदुलार को याद करते हुए कहते हैं कि वो परिवार को एकजुट रखने वाला था। मेरा लड़का हीरा था।

95 साल के पिता राम नगीना यादव बेटे रामदुलार को याद करते हुए कहते हैं, “वो शहादत से 4 महीने पहले यानी अप्रैल 1999 में 15 दिन की छुट्टी पर घर आए थे। जिस दिन उनको वापस अपने यूनिट जाना था, मैं बैलों को लेकर खेत पर हल जोत रहा था। दोपहर का वक्त था। चिलचिलाती धूप में गर्मी कहर बरपा रही थी। घर से सबसे विदा लेने के बाद वो मुझसे मिलने पगडंडी पकड़ कर खेत पर आ रहा था। मुझे लगा कुछ काम होगा। पास आकार बोला कि पिताजी मैं वापस जा रहा हूं, छुट्टी खत्म हो गयी है।

मैंने कहा इतनी जल्दी? उसने सिर हिलाते हुए कहा, हां पिताजी। मैंने बैलों को पेड़ की छावं में किनारे खड़ा किया। मुझको पसीने में भीगा देखकर उत्साहित स्वर में कहा कि अगली बार छुट्टी आऊंगा तो नया ट्रैक्टर खरीद कर लाऊंगा। फिर आपको हल जोतने से छुटकारा मिल जाएगा। आपका बेटा कमाने लगा है। अब आपको हल नहीं जोतने देगा।

उस वक्त मुझे क्या पता था कि नए ट्रैक्टर की बजाय तिरंगे में लिपटी ताबूत बेटे की लाश लिए दरवाजे पर आएगी। बेटे का किस्सा सुनाने के बाद पिता रामनगीना निःशब्द थे। आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी।

खानदान से पहले फौजी थे राम दुलार रामदुलार यादव का जन्म 1 जुलाई 1974 को गाजीपुर जिले के पड़ैनिया गांव में हुआ था। 26 अक्टूबर 1992 को राम दुलार सेना में भर्ती हुए। रानीखेत में ट्रेनिंग के बाद उनको 13 कुमाऊं रेजीमेंट में पोस्टिंग मिली। आर्मी में भर्ती होने की एक रोचक किस्सा सुनाते हुए उनसे 2 साल छोटे भाई रामदरस यादव कहते हैं, “राम दुलार आर्मी में भर्ती होने वाले खानदान से पहले लड़के थे। उन्होंने आने वाली जेनेरशन को देश सेवा के लिए मोटिवेट करने का काम किया है। घर से 2 बच्चे अभी सेना में हैं। घर का हर बच्चा आर्मी में भर्ती होना चाहता है।”

बड़े भाई रामदरस रामदुलार के बारे में कहते हैं कि घर में जब कोई फंक्शन होता है तब सभी उनको बहुत मिस करते हैं।

बड़े भाई रामदरस रामदुलार के बारे में कहते हैं कि घर में जब कोई फंक्शन होता है तब सभी उनको बहुत मिस करते हैं।

2 छोटे दुलारों को छोड़ गए राम दुलार
रामदुलार की शादी उनके भर्ती होने से 3 साल पहले हुई थी। पति से जुड़ीं बातों को साझा करते हुए उनकी पत्नी प्रमिला देवी बताती हैं, “उनके भर्ती होने से पहले ही हमारी शादी हो गई थी। मेरे साथ उनका स्वाभाव हमेशा ही सरल था। बेटे की तरफ देखते हुए कहती हैं जब उनकी शहादत हुई तब बच्चे बहुत छोटे थे। तब से लेकर अब तक मैंने कभी उनको पिता की कमी महसूस नहीं होने दी है।”

पत्नी प्रमिला देवी ने बच्चों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी है। 23 साल बाद भी पति का जिक्र आते भावुक हो जाती हैं।

पत्नी प्रमिला देवी ने बच्चों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी है। 23 साल बाद भी पति का जिक्र आते भावुक हो जाती हैं।

पापा की शहादत पर बेटे को गर्व
रामदुलार के एक बेटी और एक बेटा है। बेटी का नाम प्रियंका यादव और बेटे का नाम अमित यादव है। प्रियंका की शादी हो गई है वह अपने ससुराल में रहती हैं, जबकि अमित अपनी मां प्रमिला देवी के साथ गाजीपुर में रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं।

बेटे अमित पापा को याद करते हुए कहते हैं कि दुनिया से सभी लोग विदा लेते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने बेमिसाल कारनामों से अपनी पहचान छोड़ जाते हैं।

पापा को याद करते हुए अमित कहते हैं कि 23 साल से उनको नहीं देखा लेकिन मां के रूप में हमेशा सामने मौजूद रहते हैं।

पापा को याद करते हुए अमित कहते हैं कि 23 साल से उनको नहीं देखा लेकिन मां के रूप में हमेशा सामने मौजूद रहते हैं।

(यह स्टोरी विकास सिंह ने की है। विकास दैनिक भास्कर के साथ इंटर्नशिप कर रहे हैं।​​​​​​)

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