कश्मीर में मनाया गया जूल त्योहार: मशाल लेकर जैन-उद-दीन वली गुफा पहुंचे लोग; ठंड के बाद कृषि संबंधी गतिविधियों की शुरुआत का प्रतीक

46 मिनट पहलेलेखक: रउफ डार

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जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में लोगों ने जूल त्योहार मनाया। ये त्योहार हर साल अप्रैल महीने में सूफी संत हजरत जैन-उद-दीन वली की याद में मनाया जाता है। इस दिन लोग हाथों में मशालें लेकर सड़कों पर उतरते हैं और एशमुकाम गांव में सूफी संत की गुफा तक रैली निकालते हैं। गुफा के पास लोग मशालें जलाकर रोशनी करते हैं और सूफी संत से दुआएं मांगते हैं।

मान्यता है कि जैन-उद-दीन वली पहले किश्तवाड़ के हिन्दू राजकुमार थे। उनका नाम जिया सिंह था। जब वो 13 साल के थे तब उनके पिता की मौत हो गई थी। उस वक्त उनकी भी तबीयत खराब रहती थी। तभी कश्मीर में एक सूफी संत शेख नूर-उद-दीन किश्तवाड़ से गुजर रहे थे। शेख नूर-उद-दीन अपने चमत्कारी इलाज के लिए जाने जाते थे। जिया की मां ने उनसे अपने बेटे का इलाज करने की गुजारिश की। सूफी संत ने कहा की में इसका इलाज तो कर दूंगा लेकिन आपको ठीक होने के बाद इसे कश्मीर लाना होगा। इस पर जिया की मां ने हामी भर दी। लेकिन जब वो ठीक हुआ तो उनकी मां कश्मीर नहीं गई। कुछ समय बाद उनकी फिर तबीयत खराब हुई। इस बार उनकी मां ने कहा की अगर उनका बेटा ठीक हुआ तो वो जरूर कश्मीर जाएंगी और जब जिया ठीक हुए तो वो उन्हें लेकर कश्मीर चली गईं। कश्मीर में उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया और बेटे का नाम जिया सिंह से बदलकर जैन-उद-दीन वली रख दिया।सूफी संत शेख नूर-उद-दीन की शरण में जाकर जैन-उद-दीन वली भी सूफी संत बन गए थे।

मान्यता है कि जैन-उद-दीन वली एक ऐसी गुफा में रहते थे, जो जहरीले सांपों से भरी थी। जैन-उद-दीन वली ने सांपों के जहर को खत्म कर दिया और वो हमेशा यहीं रहे। इसी गुफा के पास लोग मशालें लेकर पहुंचते हैं और सूफी संत को याद करते हैं। इस त्योहार को हिन्दू, मुस्लिम और सूफी परंपरा को मानने वाले लोग धूमधाम से मनाते हैं। यह त्योहार ठंड के बाद कश्मीर में कृषि संबंधी गतिविधियों की शुरुआत का भी प्रतीक है।

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