कर्पूरी ठाकुर के लिए PM मोदी का लेख: कहा- सामाजिक न्याय के लिए उनके प्रयासों से करोड़ों लोगों का जीवन बदला

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12 घंटे पहले

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कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और फिर 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे बिहार के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। - Dainik Bhaskar

कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और फिर 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे बिहार के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री थे।

हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है। जिन लोगों से हम मिलते हैं, हम जिनके सम्पर्क में रहते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं। मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर। आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है।

मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव आया। उनका संबंध नाई समाज यानी समाज के अति पिछड़े वर्ग से था। अनेक चुनौतियों को पार करके उन्होंने कई उपलब्धियों को हासिल किया।

कर्पूरी जी से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं। उनके साथ काम करने वाले लोग याद करते हैं कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी इस्तेमाल ना हो। ऐसा ही एक वाकया बिहार में उनके CM रहने के दौरान हुआ। तब राज्य के नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लिए कोई जमीन नहीं ली।

जब भी उनसे पूछा जाता कि आप जमीन क्यों नहीं ले रहे हैं, तो वे बस विनम्रता से हाथ जोड़ लेते। 1988 में जब उनका निधन हुआ तो कई नेता श्रद्धांजलि देने उनके गांव गए। कर्पूरी जी के घर की हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए कि इतने ऊंचे पद पर रहे व्यक्ति का घर इतना साधारण कैसे हो सकता है!

कर्पूरी बाबू की सादगी का एक और लोकप्रिय किस्सा 1977 का है, जब वे बिहार के CM बने थे। तब केंद्र और बिहार में जनता सरकार सत्ता में थी। उस समय जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए। उनमें शामिल कर्पूरी बाबू का कुर्ता फटा हुआ था।

ऐसे में चंद्रशेखर जी ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की ताकि कर्पूरी जी नया कुर्ता खरीद सकें, लेकिन कर्पूरी जी तो कर्पूरी जी थे। उन्होंने इसमें भी एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने पैसा तो स्वीकारा, पर उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।

सामाजिक न्याय तो कर्पूरी जी के मन में रचा-बसा था। उनके राजनीतिक जीवन को ऐसे समाज के निर्माण के प्रयासों के लिए जाना जाता है, जहां सभी लोगों तक संसाधनों का समान रूप से वितरण हो और सामाजिक हैसियत की परवाह किए बिना उन्हें अवसरों का लाभ मिले। उनके प्रयासों का उद्देश्य भारतीय समाज में पैठ बना चुकी कई असमानताओं को दूर करना भी था।

कर्पूरी ठाकुर (दाएं से दूसरे) तब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। उन्होंने विधायकों के साथ राजभवन तक बजट सेशन के स्थगित होने के खिलाफ प्रदर्शन किया था।

कर्पूरी ठाकुर (दाएं से दूसरे) तब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। उन्होंने विधायकों के साथ राजभवन तक बजट सेशन के स्थगित होने के खिलाफ प्रदर्शन किया था।

अपने आदर्शों के लिए कर्पूरी जी की प्रतिबद्धता ऐसी थी कि उस कालखंड में भी जब सब ओर कांग्रेस का राज था, उन्होंने कांग्रेस विरोधी लाइन पर चलने का फैसला किया। उन्हें काफी पहले ही इस बात का अंदाजा हो गया था कि कांग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से भटक गई है।

कर्पूरी जी की चुनावी यात्रा 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू हुई और यहीं से वे राज्य के सदन में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे। वे श्रमिक वर्ग, मजदूर, छोटे किसानों और युवाओं के संघर्ष की सशक्त आवाज बने। शिक्षा एक ऐसा विषय था, जो कर्पूरी जी के हृदय के सबसे करीब था।

उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में गरीबों को शिक्षा मुहैया कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने के बहुत बड़े पैरोकार थे, ताकि गांवों और छोटे शहरों के लोग भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और सफलता की सीढ़ियां चढ़ें। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बुजुर्ग नागरिकों के कल्याण के लिए भी कई अहम कदम उठाए।

डेमोक्रेसी, डिबेट और डिस्कशन तो कर्पूरी जी के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा था। लोकतंत्र के लिए उनका समर्पण भाव भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही दिख गया था, जिसमें उन्होंने अपने को झोंक दिया। उन्होंने देश पर जबरन थोपे गए आपातकाल का भी पुरजोर विरोध किया था। जेपी, डॉ. लोहिया और चरण सिंह जी जैसी विभूतियां भी उनसे काफी प्रभावित हुई थीं।

यह तस्वीर 1979 की है। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (बाएं), हरियाणा के तब के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल और पंजाब के तब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल (दाएं)।

यह तस्वीर 1979 की है। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (बाएं), हरियाणा के तब के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल और पंजाब के तब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल (दाएं)।

समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए कर्पूरी जी ने एक ठोस कार्ययोजना बनाई थी। यह सही तरीके से आगे बढ़े, इसके लिए पूरा एक तंत्र तैयार किया था। यह उनके सबसे प्रमुख योगदानों में से एक है। उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन इन वर्गों को भी वो प्रतिनिधित्व और अवसर जरूर दिए जाएंगे, जिनके वे हकदार थे।

हालांकि उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ, लेकिन वे किसी दबाव के आगे झुके नहीं। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। वे समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से थे, लेकिन काम उन्होंने सभी के लिए किया। उनमें किसी के प्रति कड़वाहट नहीं थी और यही उन्हें महानता की श्रेणी में ले आता है।

हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीतियों और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है। उनके विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते।

कर्पूरी बाबू का योगदान…
पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मेरे जैसे अनेक लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा।

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