आम की 700 वैरायटी वाला ‘यूपी का मैंगोलैंड’: 1824 में आम का कोई बाग नहीं था…आज वर्ल्ड फेमस है मलिहाबादी दशहरी, इस साल 1000 टन एक्सपोर्ट का टारगेट

6 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी

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न चाशनी में डूबा रसगुल्ला न रस-मलाई न बादाम, स्वाद में सबसे उम्दा अवध का मलिहाबादी आम… महज 13 किमी में फैले मलिहाबाद को यूपी का मैंगोलैंड कहा जाता है। इस जगह को ये दर्जा यूं ही नहीं मिला। ये घर है आम की 1300 किस्मों का। 100 से ज्यादा बगीचों और 2 हजार से ज्यादा उन लोगों का, जिनकी पीढ़ियां 100 सालों से आम उगा रही हैं। मलिहाबादी आम इतना कीमती है कि सरकार ने इस पर जियो टैगिंग की है। ताकी इसके स्वाद और इसकी पहचान की कोई कॉपी न कर पाए।

लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर हरदोई हाईवे पर पहुंचते ही आपको 2 चीजें महसूस होंगी। पहली: दूर-दूर तक फैली आम की महक। दूसरी: ऐसा लगेगा कि मानो आप हाईवे पर नहीं बल्कि आम के बगीचों के बीच चल रहे हैं। पूरे यूपी में इस जगह से हर साल 500 टन से ज्यादा आम एक्सपोर्ट होता है। दुबई, जापान, अमेरिका से लेकर न्यूजीलैंड तक मलिहाबादी दशहरी, जौहरी सफेदा और लखनउवा चौसा आम की दीवानगी है।

इस साल आम की यहां पैदावार कैसी है? मार्केट कैसा है? ये सीजन यहां के किसानों और एक्सपोर्टर्स के लिए कैसा रहना वाला है? यहां के नायाब आम से जुड़ी कौन- कौन सी रोचक कहानियां- किस्से हैं। सब कुछ जानने हम मलिहाबाद पहुंचे।

  • तो चलिए आपको संडे स्टोरी में ‘यूपी के मैंगोलैंड’ की सैर करा लाते हैं। शुरुआत इस ग्राफिक से…

पैदावार अच्छी न हो तो शादियां टाल दी जाती हैं…
मलिहाबाद के रहमानखेड़ा में सड़क किनारे दूर-दूर तक फैले बगीचे आम से लदे हुए हैं। यहां हमारी मुलाकात बाग की रखवाली कर रहे किसान धर्मेंद्र सिंह से हुई। आम की पैदावार के बारे में पूछने पर धर्मेंद्र मुस्कराते हुए कहते हैं, “भइया ये मलिहाबाद है। यहां आम की वजह से ही घर चलते हैं। बच्चों की पढ़ाई होती है। बीते साल हमारे भाई की शादी इसलिए टाल दी गई क्योंकि आम की पैदावार अच्छी नहीं हुई थी। इस बार आम भी डबल है और रेट भी। मंडी भी तय समय से पहले खुल गई है। लग रहा है इस साल सारे रुके काम पूरे हो जाएंगे।”

धर्मेंद्र के बगल में खड़े संतोष बताते हैं, “पिछले 2 साल की तुलना में इस बार आम अच्छा हुआ है। अगर 27, 28 मई को आंधी न आती तो और भी अच्छी फसल मिलती। तूफान के कारण पेड़ों पर लदे 30% आम गिर गए। हालांकि, इससे किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि आढ़तियों ने फसल की पहली खेप को हाथों-हाथ खरीदा है। जो दशहरी आम पिछले साल 25 रुपए किलो बिका था, उसका रेट इस साल 40 से 50 रुपए के बीच है। उम्मीद है 15 जून के बाद मंडी भाव और अच्छा हो जाएगा।”

साल 1919 में यहां 1300 किस्मों के आम पाए जाते थे। लेकिन समय के साथ आबादी बढ़ी और जमीनें कम होती गईं। इसका असर आम पर भी पड़ा। अब मलिहाबाद में बमुश्किल 600 से 700 वैरायटी के आम ही बचे हैं।यहां के मलिहाबादी दशहरी और चौसा आम की सबसे ज्यादा डिमांड है।

दिल्ली, महाराष्ट्र और बेंगलुरु के व्यापारी पहुंच रहे मलिहाबाद
रहमानखेड़ा के किसानों की बात सुनकर ये समझ आया कि इस बार आम का प्रोडक्शन अच्छा रहने वाला है। लेकिन बागों से निकलकर मंडी तक पहुंचने पर आम की कहानी बदल जाती है। वही आम सबसे ज्यादा बिकता है, जिस पर दाग कम और वजन ज्यादा हो। मलिहाबादी आम मार्केट को करीब से जानने के लिए हम रहमानखेड़ा से 5 किलोमीटर दूर नई सड़क चौराहा पहुंचे। यहां पर लगने वाली आम मंडी में दिल्ली, महाराष्ट्र और बेंगलुरु से व्यापारी आम खरीदने पहुंच रहे हैं।

मलिहाबाद आम मंडी के अध्यक्ष नसीम बेग कहते हैं, “इस साल पेड़ों पर बौर उम्मीद से जल्दी और ज्यादा आया। इसका फायदा अब मार्केट में भी हुआ है। जून के पहले हफ्ते में ही दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से ऑर्डर मिलना शुरू हो गए हैं। मंडी में आम सप्लाई के लिए 70 फर्म रजिस्टर्ड हैं। आप देख लीजिए सभी दुकानों के आगे आम से लदी हुई गाड़ियां खड़ी हैं। यहां के किसानों से अच्छे रेट पर अचारी आम भी खरीदा जा रहा है। आम की आवक ऐसी ही बनी रही, तो इस बार मार्केट पिछले साल से 40% ज्यादा होने की उम्मीद है।”

आम मंडी में आदर्श फ्रूट सेंटर और नगमा फ्रूट कंपनी पर मिले व्यापारियों के मुताबिक, जून के आखिर से जुलाई के पहले हफ्ते में आम की और भी किस्में बाजार में आनी शुरू हो जाएंगी। अभी सफेदा और दशहरी आम की आवक ज्यादा है। गर्मी कम होने पर चौसा, लंगड़ा, अंबिका, तोतापारी और गुलाबखास आम भी आने लगेगा।

इस बार 1000 टन आम के एक्सपोर्ट का टारगेट
अच्छी पैदावार और बढ़िया मार्केट की वजह से इस साल मलिहाबादी आम के एक्सपोर्ट में भी रिकॉर्ड टूट सकता है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी जून का पहला ही सप्ताह चल रहा है। लेकिन सरकारी मैंगो पैक हाउस में आम का शिपमेंट शुरू हो गया है। ये शिपमेंट आमतौर पर जून का महीना बीतने के बाद होता है।

मलिहाबाद में एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी APEDA का मैंगो पैक हाउस है। ये भारत का सबसे बड़ा मैंगो पैक हाउस भी है। यहीं से पैक होकर मलिहाबादी आम पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं। यहां के जनरल मैनेजर अकरम बेग से हमने बात की।

बेग कहते हैं, “पिछले साल आमों पर सेमी लूपर्स कीड़े की बीमारी लगने से 60% फसल खराब हो गई थी। इससे सिर्फ 100 टन फ्रेश मैंगो ही एक्सपोर्ट हो पाया। लेकिन इस बार प्रोडक्शन अच्छा है। अभी तक यहां से ओमान, जर्मनी, इटली, दुबई और स्विटजरलैंड में आम भेजे जाते थे। लेकिन इस बार हमें जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से भी ऑर्डर मिले हैं। इस साल हमारा टारगेट 1000 टन आम एक्सपोर्ट करने का है।”

पैक हाउस के वर्किंग मैनेजर मोहसिन खान के मुताबिक, दुबई, ओमान और गल्फ कंट्रीज में मलिहाबादी चौसा आम की डिमांड सबसे ज्यादा होती है। जो चौसा आम यहां पर 140 रुपए किलो बिकता है, उसका दाम विदेशों में 200 से 250 रुपए प्रति किलो तक चला जाता है। दरअसल, शिपमेंट के प्रोसेस में कंपनी कंटेनर से लेकर कार्गो सर्विस चार्ज का भुगतान करती है। इसे मैनेज करने के लिए रेट में बढ़ोतरी की जाती है।

सिर्फ उगाया ही नहीं, खत्म होने से बचाया भी जा रहा
समय के साथ-साथ मैंगोलैंड में आम की कुछ किस्में खत्म होने की कगार पर हैं। इनमें 2 किलो वजन वाला ‘हाथी झूल’, 25 से 40 दिन में पकने वाला ‘सुर्ख बर्मा’ और चूसने वाला लंबा आम ‘गिलास’ शामिल है। ऐसी ही मलिहाबादी आम की 300 प्रजातियों को खत्म होने से बचाने के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) आगे आया है।

CISH के डायरेक्टर डॉ. टी दामोदरण कहते हैं, “मलिहाबादी आम की प्रजातियों को बचाने के लिए CISH ने सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ मैंगो डायवर्सिटी नाम से बागवानों का संगठन बनाया है। इसमें किसानों को आम की फसल की शुरुआती स्टेज से लेकर मार्केटिंग तक मदद दी जाती है। हमारी कोशिश है कि हम ज्यादा से ज्यादा किस्मों को संरक्षित करें और किसानों को बेहतर दाम दिलवा पाएं।”

CISH ने खुद मलिहाबादी आम की 2 वैरायटी (अंबिका-2000 और अरुणिका-2008) विकसित हैं। आम की इन किस्मों को यूपी के अलग-अलग हिस्सों में उगाया जा रहा है। संस्थान मलिहाबाद के किसानों को इन किस्मों के बीज सस्ते दर पर मुहैया करवाता है।

यहां रुकते हैं। अब तक आप ने मलिहाबादी आम के प्रोडक्शन, मार्केटिंग और एक्सपोर्ट के बारे में जाना। खबर के अगले हिस्से में आपको 83 साल के ‘मैंगो मैन’ से मिलवाते हैं…

7वीं फेल कलीमुल्लाह को आम ने दिलवाया पद्मश्री
83 साल के हाजी कलीमुल्लाह खान ने मलिहाबादी आम की किस्मों को बचाने के लिए 5 एकड़ में ‘अब्दुल्ला नर्सरी’ बनाई है। इसमें एक ऐसा आम का पेड़ है, जिसमें एक साथ 300 से ज्यादा किस्मों के आम निकलते हैं। हर किस्म का टेस्ट अलग होता है। पत्ते भी अलग हैं। इसके लिए उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें लोग मैंगो मैन के नाम से भी जानते हैं।

7वीं क्लास में फेल होने के बाद कलीमुल्लाह अपने पिता के साथ नर्सरी जाने लगे। साल 1957 में उन्होंने 7 किस्मों का आम का पेड़ तैयार कर दिया। लेकिन 1960 में वह बाढ़ में डूब गया। हाजी साहब ने उस पेड़ को बचाने की तमाम कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाए। घर में गरीबी थी। पेड़ों में दिलचस्पी के साथ कलीमुल्लाह अपनी गुजर-बसर के लिए मजदूरी करने लगे। उनकी शादी हुई, बच्चे हुए, 9 साल छप्पर में रहे। इसी तरह 27 साल बीत गए, लेकिन कलीमुल्लाह का पेड़ों से प्यार कम नहीं हुआ।

साल 1987 में कलीमुल्लाह के एक करीबी दोस्त ने उन्हें 5 एकड़ जमीन कर्ज पर दी। दोस्त भोपाल शिफ्ट हो गए और यहां कलीम साहब ने अब्दुल्ला नर्सरी की शुरुआत की। नर्सरी में आम की 13 खास किस्मों को डेवलप किया। साथ ही उन्होंने एक ऐसा पेड़ तैयार किया, जो अकेले 300 से ज्यादा किस्मों के आम देता है। इस पेड़ को तैयार करने में उन्हें 18 साल से ज्यादा का वक्त लगा। हालांकि, वह और उनके बेटे नजीमुल्लाह इस पेड़ में और भी किस्में बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

मोदी, योगी और सचिन समेत 13 हस्तियों के नाम वाले आम

UAE और ईरान जैसे देश भी कलीम साहब को अपने यहां बुलाकर सम्मानित कर चुके हैं।

UAE और ईरान जैसे देश भी कलीम साहब को अपने यहां बुलाकर सम्मानित कर चुके हैं।

कलीम साहब ने अपनी नर्सरी में आम की 13 किस्में तैयार की हैं, जो अपने आप में बेहद खास हैं। इन किस्मों को पीएम मोदी, सीएम योगी, ऐश्वर्या राय और सचिन तेंदुलकर समेत देश की बड़ी हस्तियों का नाम दिया है। साल 2008 में खास बागवानी के लिए कलीमुल्लाह खान को पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। उसी साल उन्हें उद्यान पंडित पुरस्कार से भी नवाजा गया था। कलीम साहब का नाम एशिया के 100 शोधकर्ताओं में भी आता है। साल 2002 में दुबई में 10 तोले के सोना की बिस्किट भी भेंट की गई।

अब आपको 200 साल पीछे ले चलते हैं, जब मलिहाबाद में आम का कोई बगीचा नहीं था….
बात 200 साल पुरानी है। अफगानिस्तान के खंदर क्षेत्र से पलायन करके फकीर मोहम्मद खान उर्फ ​​गोया की अगुआई में अफरीदी पठानों का एक समुदाय राजस्थान के टोंक पहुंचा। गोया की कदकाठी और हथियार चलाने के ढंग को देख टोंक के नवाब ने उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया। एक दिन लखनऊ के नवाब शुजा उद दौला टोंक आए और वहां पर उन्होंने गोया की तलवारबाजी और घुड़सवारी कौशल को देखा। इससे खुश होकर उन्होंने टोंक के नवाब से कहा, ‘ये पठान हमें दे दो।’

शुजा उद दौला, गोया से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे अपनी सेना का कमांडर-इन-चीफ बना दिया। यही नहीं उन्होंने फैजाबाद, मलिहाबाद और मोहान जैसे कस्बों की हिफाजत का जिम्मा गोया के नाम कर दिया। ये साल था 1824… पठानों ने मलिहाबाद में बसना शुरू किया। यहां मकान बनाए। ये वो दौर था जब मलिहाबाद में आम के बाग नहीं हुआ करते थे। गोया ने इन कस्बों में रहते हुए यहां का विकास करवाया। एक दिन वह लखनऊ के रास्ते काकोरी होकर मलिहाबाद जा रहे थे। रास्ते में थकान मिटाने के लिए वह काकोरी में एक विशाल आम के पेड़ के नीचे बैठ गए। इस पेड़ पर दशहरी आम लदे हुए थे।

उन्हें देख उस पेड़ का माली पुरुषोत्तम भी वहां पहुंचा। उसने गोया को आम तोड़कर खिलाए। फल खाकर गोया इतना खुश हुए कि उन्होंने मलिहाबाद में भी ऐसे ही पेड़ लगवाने का इरादा बना लिया। उन्होंने नवाब से यहां दशहरी आम के बगीचे लगाने की इजाजत मांगी। शुजा उद दौला ने हां कह दिया। इसके बाद मलिहाबाद में आम की खेती शुरू हुई और फकीर मोहम्मद उर्फ गोया मलिहाबादी आम उगाने वाले पहले व्यक्ति बने।

यह 300 साल पुराना वही दशहरी आम का पेड़ है, जिसके फल गोया मलिहाबादी ने खाए थे।

यह 300 साल पुराना वही दशहरी आम का पेड़ है, जिसके फल गोया मलिहाबादी ने खाए थे।

मलिहाबादी आम ने पाकिस्तान में बवाल करवा दिया
लखनऊ के मशहूर किस्सागो हिमांशु बाजपेयी आम को लेकर किस्से-कहानियां सुनाते हैं। मलिहाबादी आम से जुड़ा एक किस्सा बयां करते हुए हिमांशु कहते हैं, “एक बार पाकिस्तान में आम पर बहस छिड़ गई। दरअसल, मामला एक मुशायरे का था, जिसमें बात फलों पर आकर टिक गई। इस सभा में हिंदुस्तान के मशहूर शायर जोश मलिहाबादी भी पहुंचे थे। जब पाकिस्तानी शायर ने उनसे पूछा कि जनाब क्या पाकिस्तान के अनार की टक्कर का कोई फल है आपके मुल्क में? इस पर जोश मलिहाबादी ने आवाज तेज करते हुए कहा… मलिहाबादी दशहरी।”

“सवालों का दौर यहीं नहीं रुका। पाकिस्तानी शायर ने फिर पूछा- क्या अंगूर जैसा भी कोई फल है। इस पर जोश मलिहाबादी बोले – जी…चौसा। इसके बाद पाकिस्तानी शायर ने एक के बाद एक कई फलों के नाम लिए और सभी के जवाबों में जोश साहब आम की अलग-अलग वैरायटी का नाम लेते रहें। फिर झल्लाकर पाकिस्तानी शायर ने पूछ लिया- मियां क्या आपके मुल्क में आम को छोड़कर दूसरा कोई फल नहीं होता? इस पर मुस्कराते हुए जोश मलिहाबादी ने कहा- अरे जनाब दूसरे फलों पर आएंगे। पहले आम की सभी किस्में पूरी तो हो जाएं। ये सुनकर सभा में तालियां बजने लगीं।”

आखिर में आम से जुड़े कुछ फैक्ट्स जान लीजिए…

  • भारत दुनिया में आम का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत दुनिया भर में 10 किस्म के आमों का निर्यात कर रहा है।
  • भारत को पल्प किस्म के आमों के निर्यात से 27.83 मिलियन अमरीकी डालर की कमाई हुई है।
  • आज भारत में करीब 1,000 किस्मों के आम होते हैं।
  • मालदहा, अल्फांसो, केसर, तोतापुरी और बंगनपल्ली भारत से प्रमुख निर्यात किस्में हैं।
  • भारत में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा आम उत्पादक क्षेत्र है।
  • यहां से दसियों हज़ार टन आम निर्यात होता है।
  • कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी APEDA के अनुसार, यूपी में 2019-20 में 49,658 मीट्रिक टन आम का उत्पादन हुआ।
  • ये उत्पादन देश भर में फैली लगभग 1,000 किस्मों का है।

संदर्भ:

Afridi Pathans of Uttar Pradesh ‘lost tribes’ of Israel : स्टडी:

Malihabad – The Land Of Mangos, A Fascinating History! : फार्मिजन

अस्मत मालीबाबादी ​​​​की किताब ​​​‘दास्तान-ए-माइल मलिहाबादी’।

मलिहाबादी अफरीदी पठान बिरादरी के इतिहासकार कलीम शिकोह के बातचीत।

https://en.wikipedia.org/wiki/Malihabad

https://lucknowobserver.com/mad-about-mangoes/

https://en.wikipedia.org/wiki/Mango

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