अपराधीकरण: न्याय मित्र के सुझावों पर सुनवाई और फ़ैसला दिलचस्प होगा

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  • The Hearing And Decision On The Suggestions Of The Amicus Curiae Will Be Interesting.

एक घंटा पहले

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राजनीति के अपराधीकरण पर कोई सचेत नहीं है। कोई इस दिशा में कदम नहीं उठाता। कोई माँग भी नहीं करता। न सत्ता पक्ष और न विपक्ष। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देशभर में सांसदों और विधायकों पर 5,175 केस दर्ज हैं। इनमें से लगभग 2100 यानी लगभग चालीस प्रतिशत केस तो पाँच साल पुराने हैं। नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके वकीलों के ज़रिए तारीख़ें बढ़वाते रहते हैं और केस चलते जाते हैं। सालो-साल।

रिपोर्ट कहती है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखण्ड में नेताओं पर सबसे ज़्यादा आपराधिक मामले चल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट,द्वारा नियुक्त न्याय मित्र ने सलाह दी है कि नेताओं से जुड़े इन मामलों का जल्द से जल्द निपटारा करने के लिए इनकी रोज़ सुनवाई होनी चाहिए। सलाह यह भी दी गई है कि जिन जजों के पास नेताओं से जुड़े मामले चल रहे हैं उन्हें इन केसों के निपटारे से पहले दूसरे केस नहीं दिए जाने चाहिए। ताकि उनका फ़ोकस इन्हीं मामलों पर बना रहे।

न्याय मित्र ने कहा है कि सभी हाईकोर्ट से यह कहना चाहिए कि वे अपने अधीनस्थ न्यायालयों से कहें कि नेताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई न टाली जाए। यह भी कि ऐसे मामलों में दो- दो लोक अभियोजकों की नियुक्ति की जानी चाहिए ताकि किसी एक की छुट्टी के कारण सुनवाई नहीं टाली जा सके।

अपराधियों का सफ़ाया करने का दावा करने वाले उत्तर प्रदेश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ सर्वाधिक केस लम्बित हैं। इनकी संख्या 1377 हैं जिनमें से 719 केस तो पाँच साल से ज़्यादा पुराने हैं।

महाराष्ट्र में नेताओं का केस देख रहे जजों पर सर्वाधिक भार है। वहाँ हर जज के ऊपर नेताओं से जुड़े कम से कम 31 केसों का भार है। दरअसल, इन केसों के अलावा भी जजों पर अन्य मामलों का भार होता है इसलिए नेताओं से जुड़े केस चलते जाते हैं। जबकि क़ानून बनाने वाले इन नेताओं से जुड़े गंभीर अपराध किसी भी हालत में टलने नहीं चाहिए।

अगर सुप्रीम कोर्ट अपने न्याय मित्र की सलाह मान लेता है तो निश्चित रूप से राजनीति को पाक- साफ़ बनाने में बड़ी मदद मिलेगी जिसकी आज के समय में सबसे बड़ी ज़रूरत है। निश्चित रूप से न्याय मित्र की सलाह पर जब कोर्ट विचार करेगा तो इस बारे में केंद्र सरकार से भी उसके विचार माँगे जाएँगे। सरकार क्या तर्क देती है, यह देखना दिलचस्प होगा।