SC ने असम के अप्रवासियों की नागरिकता का डेटा मांगा: कोर्ट ने कहा- बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने का असर असम पर नहीं पड़ा

  • Hindi News
  • National
  • Citizenship Act 1955 Section 6A Supreme Court | Constitution Bench News Update

नई दिल्लीएक घंटा पहले

  • कॉपी लिंक
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 6 दिसंबर को इस केस की सुनवाई करेगा। - Dainik Bhaskar

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 6 दिसंबर को इस केस की सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (5 दिसंबर) को असम में सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A से जुड़ी 17 याचिकाओं पर 5 जजों की बेंच में सुनवाई शुरू कर दी। दो जजों की बेंच ने 2014 में इस मामले को कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के पास भेज दिया था।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। बेंच ने इस एक्ट के लाभार्थियों का डेटा मांगा है।

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता हो कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का असर असम की जनसंख्या और सांस्कृतिक पहचान पर पड़ा हो।

असम में सीमा पार से हो रही घुसपैठ को स्वीकार करते हुए CJI ने कहा कि बांग्लादेश की मुक्ति के लिए 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण अप्रवासी भी आए थे।

इसके बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार से 1966 से 16 जुलाई 2013 तक कानून के तहत लाभ हासिल करने वाले लोगों का डेटा सबमिट करने कहा।

याचिकाकर्ताओं ने प्रावधान अमान्य घोषित करने और 1951 के बाद असम आए भारतीय मूल के लोगों के पुनर्वास के लिए नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की है।

क्या कहती है सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A
असम समझौते के तहत भारत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। जिसमें कहा गया है कि जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

नतीजतन, इस प्रावधान ने असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख 25 मार्च 1971 तय कर दी।

कोर्ट ने कहा- बांग्लादेश बनने में हमारी भी अहम भूमिका थी
CJI की बेंच ने कहा- एक बात ध्यान रखें यदि संसद अवैध आप्रवासियों के केवल एक ग्रुप को माफी दे देती है तो यह बहुत अलग है। लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकते कि धारा 6ए तब लागू किया गया था जो हमारे इतिहास से जुड़ा है। बांग्लादेश बनने में भारत की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी, क्योंकि बांग्लादेश की तरह हम भी युद्ध का हिस्सा थे और तब अवैध रूप से लोग भारत आए थे।

याचिकाकर्ता के वकील बोले
नागरिकता अधिनियम 1955 के संशोधित प्रावधान का विरोध करने वाले असम के कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए एडवोकेट दीवान ने कहा कि इस संशोधन ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है जो राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे पर आधारित है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में असम से ज्यादा अवैध अप्रवासी हैं। यह प्रावधान असम के लिए इस तरह लागू किया गया जैसे कि यह बाहरी लोगों को आने और भारतीय नागरिकता हासिल करने का लाइसेंस हो।

दीवान ने बांग्लादेश से असम में आए लोगों की वजह से होने वाले खतरों पर असम के पूर्व राज्यपाल एस के सिन्हा द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अंश भी कोर्ट के सामने रखे। जिसमें लिखा था कि अवैध प्रवासियों के आने से जिले मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बदल रहे हैं। कुछ समय बाद बांग्लादेश के साथ उनके विलय की मांग की जा सकती है।

खबरें और भी हैं…