SC के खिलाफ बयान पर IMA चीफ की माफी: बोले- कोर्ट की गरिमा कम करना मकसद नहीं; पतंजलि केस पर कहा था- कोर्ट ने मनोबल तोड़ा

नई दिल्ली25 मिनट पहले

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IMA प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है। - Dainik Bhaskar

IMA प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है।

इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) के चीफ डॉ. आरवी अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मीडिया में दिए बयान को लेकर शुक्रवार (5 जुलाई) को माफी मांगी। असोसिएशन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि अशोकन ने अपने बयान पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे।

दरअसल, पतंजलि भ्रामक विज्ञापन केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को पतंजलि के साथ-साथ IMA को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि IMA को अपने डॉक्टरों पर भी विचार करना चाहिए, जो अक्सर मरीजों को महंगी और गैर-जरूरी दवाइयां लिख देते हैं। अगर आप एक उंगली किसी की ओर उठाते हैं, तो चार उंगलियां आपकी ओर भी उठती हैं।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को IMA चीफ ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। 29 अप्रैल को न्यूज एजेंसी से इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा- सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों का मनोबल तोड़ा है। IMA चीफ के इस बयान पर पतंजलि के चेयरमैन बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दाखिल कर कहा था- अशोकन ने कानून की गरिमा कम की।

इसके बाद IMA चीफ ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर बिना शर्त माफी भी मांगी थी। हालांकि, कोर्ट ने माफीनामा ठुकरा दिया था।

IMA प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है।

IMA प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है।

अशोकन का कोर्ट के खिलाफ बयान, 3 पॉइंट्स में समझिए…

  • अशोकन से पूछा गया था कि 23 अप्रैल की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑब्जर्वेशन में कहा था कि वे एक अंगुली पतंजलि को दिखा रहे हैं, लेकिन बाकी चार अंगुली IMA की तरफ हैं। अशोकन ने कहा कि ये बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने IMA और प्राइवेट डॉक्टरों की प्रैक्टिस की आलोचना की।
  • उन्होंने कहा कि अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है। हमें ऐसा लगता है कि उन्हें देखना चाहिए था कि उनके सामने क्या जानकारी रखी गई है। शायद उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया कि मामला ये था ही नहीं, जो कोर्ट में उनके सामने रखा गया था।
  • आप चाहे कुछ भी कहें, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में डॉक्टर्स ईमानदारी से काम करते हैं, वे अपनी नीति और उसूलों के मुताबिक प्रैक्टिस करते हैं। सुप्रीम कोर्ट को ये शोभा नहीं देता है कि देश के मेडिकल प्रोफेशन के बारे में ऐसी बातें कहें, जिसके इतने सारे डॉक्टर्स ने कोरोना के दौरान अपनी जान तक की कुर्बानी दी है।

बालकृष्ण ने याचिका लगाई, कहा- अशोकन के खिलाफ कार्रवाई हो
अशोकन के बयान को लेकर आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें उन्होंने कहा था कि IMA चीफ अशोकन के बयान केस की चल रही कार्यवाही में हस्तक्षेप करते हैं और जस्टिस की प्रोसेस में दखलअंदाजी करते हैं।

उन्होंने अशोकन के बयान को निंदनीय बताते हुए कहा कि यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कम करने का प्रयास है। बालकृष्ण ने अपनी याचिका में अशोकन के खिलाफ कानून के अनुरूप कार्रवाई की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप सोफे पर बैठकर कुछ भी नहीं कह सकते

बालकृष्ण की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 14 मई को कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी ठीक है, लेकिन कभी-कभी इंसान को संयमित भी होना पड़ता है। आप सोफे पर बैठकर अदालत के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते।

कोर्ट ने कहा कि आप IMA के अध्यक्ष हैं। आपके असोसिएशन में 3 लाख 50 हजार डॉक्टर्स हैं। आप आम लोगों और जनता पर कैसी छाप छोड़ना चाहते हैं? आप एक जिम्मेदार पद पर हैं। आपको जवाब देना होगा। आपने 2 हफ़्ते में कुछ नही किया। आपने जो इंटरव्यू दिया उसके बाद क्या किया? हम आपसे जानना चाहते है!

पतंजलि केस के बारे में 6 पॉइंट में समझिए…

  1. सुप्रीम कोर्ट में IMA ने 17 अगस्त 2022 को याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया। वहीं खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया।
  2. IMA का तर्क था कि हर कंपनी को अपने प्रोडक्ट्स का प्रचार करने का हक है, लेकिन पतंजलि के दावे ‘ड्रग्स एंड अदर मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954’ और ‘कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019’ का सीधा उल्लंघन करते हैं।
  3. IMA ने एलोपैथी और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली (मॉडर्न सिस्टम ऑफ मेडिसिन) के बारे में फैलाई जा रहीं गलत सूचनाओं पर चिंता जताई। याचिका में कहा गया कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन एलोपैथी की निंदा करते हैं और कई बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे दावे करते हैं।
  4. IMA ने केंद्र सरकार, ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) और सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (CCPA) से मांग की थी कि आयुष चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एलोपैथी को अपमानित करने वाले विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
  5. याचिका में बाबा रामदेव के दिए कुछ विवादास्पद बयानों का भी जिक्र किया गया। मसलन, एलोपैथी को ‘बेवकूफ और दिवालिया बनाने वाला विज्ञान’ बताना, कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान एलोपैथिक दवाओं के इस्तेमाल से लोगों की मौत का दावा करना वगैरह।
  6. IMA ने यह भी आरोप लगाए कि पतंजलि ने कोविड की वैक्सीन के बारे में अफवाह फैलाई, जिससे लोगों में वैक्सीन लगवाने को लेकर डर पैदा हो गया। याचिका में ये भी कहा गया कि पतंजलि ने कोरोना के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश कर रहे युवाओं का उपहास उड़ाया। आयुष मंत्रालय ने ASCI के साथ एक समझौता किया है, इसके बावजूद पतंजलि ने निर्देशों का उल्लंघन किया।

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