9 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया में मेयर शैली ओबेरॉय को नजरअंदाज करने पर सवाल उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली नगर निगम (MCD) की स्टैंडिंग कमेटी के छठे सदस्य की चुनाव प्रक्रिया पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना के MCD एक्ट की धारा 487 का इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया।
कोर्ट लोकतांत्रिक प्रक्रिया में LG के दखल देने और चुनाव प्रक्रिया में मेयर शैली ओबेरॉय को नजरअंदाज करने पर भी सवाल उठाया। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने एलजी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय जैन से पूछा-
धारा 487 के तहत चुनाव में बाधा डालने का अधिकार आपको कहां से मिला, खासकर तब जब यह स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य के चुनाव का मामला हो? आपको इतनी जल्दी क्या थी कि आप दो दिन में ही चुनाव कराना चाहते थे? अगर आप इस तरह से दखलअंदाजी करते रहेंगे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्या होगा?
कोर्ट ने चुनाव को चुनौती देने वाली ओबेरॉय की याचिका पर नोटिस जारी किया। साथ ही मौखिक रूप से एलजी से कहा कि जब तक याचिका पर दो सप्ताह बाद सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष के चुनाव न कराए जाएं। अगर आप चुनाव कराते हैं तो हम इसे गंभीरता से लेंगे।
क्या है पूरा मामला
मामला 27 सितंबर को हुए MCD की स्टैंडिंग कमेटी के छठे सदस्य के चुनाव का है। यह सीट बीजेपी के कमलजीत सेहरावत के लोकसभा के लिए चुने जाने पर खाली हुई थी। चुनाव में बीजेपी के सुंदर सिंह ने ही जीत हासिल की थी। जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस ने चुनाव का बहिष्कार किया था।
इसे लेकर MCD मेयर शैली ओबेरॉय ने 1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा कि चुनाव प्रक्रिया असंवैधानिक और निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों का खुला उल्लंघन है। MCD प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस रेग्युलेशन, 1958 के नियम 51 का संदर्भ देते हुए कहा गया कि स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव मेयर की अध्यक्षता में निगम की बैठक में होना चाहिए।
इसके अलावा नियम 3 (2) के अनुसार ऐसी बैठक की तारीख, समय और जगह केवल मेयर ही तय कर सकता है। वहीं, MCD Act की धारा 76 कहती है कि इन बैठकों की अध्यक्षता मेयर या उनकी अनुपस्थिति में डिप्टी मेयर करेगा।
हालांकि, चुनाव कराने के निर्देश LG ने धारा 487 के तहत दिए थे। इसके बाद एडिशनल कमिश्नर जितेंद्र यादव ने बैठक बुलाई और चुनाव कराए। याचिकाकर्ता का तर्क है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध और असंवैधानिक है।
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