CBI को पिंजरे का तोता बताने पर उपराष्ट्रपति की नसीहत: बोले- अहम संस्थानों पर टिप्पणी से उनका मनोबल गिर सकता है, सचेत रहें

मुंबई14 मिनट पहले

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उपराष्ट्रपति धगदीप धनखड़ ने रविवार को मुंबई के एक स्कूल में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया। - Dainik Bhaskar

उपराष्ट्रपति धगदीप धनखड़ ने रविवार को मुंबई के एक स्कूल में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि राज्य के सभी अंगों को मिलकर काम करने की जरूरत है। देश की संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में काम करती हैं। किसी को भी अहम संस्थानों के बारे में टिप्पणी करने को लेकर सचेत रहना चाहिए।

उनका इशारा सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के संदर्भ में था। सुप्रीम कोर्ट पिछले दिनों कहा था कि CBI को पिंजरे के तोते की छवि से बाहर आना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने मुंबई के एक स्कूल में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह में रविवार को यह टिप्पणी की।

धनखड़ ने कहा कि चुनाव आयोग और जांच एजेंसियां मुश्किल हालातों में काम करते हैं। इनके बारे में कोई भी टिप्पणी करना उनका मनोबल गिरा सकता है। इन संस्थाओं को हर तरह की गड़बड़ियों पर नजर रखनी होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल को CBI ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई को किसी भी दबाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए। बेंच में शामिल जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा था कि CBI को निष्पक्ष दिखना चाहिए और हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए ताकि गिरफ्तारी में मनमानी न हो। जांच एजेंसी को पिंजरे में बंद तोते की धारणा को दूर करना चाहिए।

राज्य के सभी अंगों का एक ही उद्देश्य उपराष्ट्रपति ने कहा कि राज्य के सभी अंगों – न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का एक ही उद्देश्य है-संविधान की मूल भावना की सफलता सुनिश्चित करना, आम लोगों को सभी अधिकारों की गारंटी देना और भारत को समृद्ध और फलने-फूलने में मदद करना।

धनखड़ ने कहा कि सभी संस्थाओं को लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का पालन करते हुए साथ मिलकर काम करना होता है। इन पवित्र मंचों को राजनीतिक भड़काऊ बहस को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों को कठिन माहौल और दबाव में काम करना होता है। इसलिए ऐसी कोई भी विपरीत टिप्पणी उनका मनोबल गिरा सकती है।

धनखड़ ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां राजनीतिक बहस पैदा कर सकती हैं। एक नरेटिव बना सकती हैं। हमें अपने संस्थानों को लेकर बेहद सचेत रहना होगा। ये संस्थाएं मजबूत हैं, वे स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं। वे कानून के शासन के तहत काम करती हैं।

ऐसे में अगर हम सिर्फ कुछ सनसनी पैदा करने के लिए, किसी राजनीतिक बहस या धारणा बनाने का काम करते हैं तो मैं संबंधित लोगों से अपील करूंगा कि इसे पूरी तरह से टाला जाना चाहिए। लोकतंत्र में, धारणा मायने रखती है।

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