UCC के प्रारूप पर फिर से विचार करेगा लॉ कमीशन: पुराने कानूनों की समीक्षा भी होगी; 22वें विधि आयोग को 1 करोड़ सुझाव मिले थे

नई दिल्ली10 मिनट पहलेलेखक: मुकेश कौशिक

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23वें आयाेग को यूसीसी के प्रारूप को बनाने के लिए आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। - Dainik Bhaskar

23वें आयाेग को यूसीसी के प्रारूप को बनाने के लिए आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सरकार द्वारा 23वें विधि आयोग के गठन की घोषणा के साथ ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) के कानूनी प्रारूप पर फिर नए सिरे से विचार का रास्ता साफ हो गया है। विधि आयोग सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में काम करेगा। इससे पहले जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग ने राय जाहिर की थी कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) की न तो जरूरत है और न यह वांछनीय है। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने आंशिक रूप से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रारूप पर आगे कदम रखा।

इसके बाद जस्टिस रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने प्रारूप तैयार कर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सार्वजनिक राय मांगी। इस महामंथन में करीब एक करोड़ सुझाव आयोग को मिले थे। सूत्रों के अनुसार अब 23वें आयाेग को यूसीसी के प्रारूप को बनाने के लिए आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

टैक्स ब्यूरोक्रेसी कानूनों का सरलीकरण भी बड़ी चुनौती
अर्थव्यवस्था में बाधक पुराने कानूनों की समीक्षा आयोग के लिए चुनौती है। दरअसल, नीति आयोग ने ऐसे कानूनों की बड़ी सूची तैयार की है जिन्हें वह विकसित भारत की रास्ते की बड़ी रुकावट मानता है। इसके साथ ही टैक्स ब्यूरोक्रेसी और सरकारी नियमों के अनुपालन की भी बाधाएं दूर करने की चुनौती है।

नीति आयोग की ही एक रिपोर्ट के अनुसार एक कंपनी को औसतन 1,536 एक्ट और 69,233 नियमों का अनुपालन करना होता है। साथ ही 6,618 वार्षिक फाइलिंग का पेपर वर्क करना पड़ता है। टैक्स से जुड़े 54 केंद्रीय कानून हैं। इसके साथ ही एक साल में 254 तक फाइलिंग करनी होती है। यह बड़ी चुनौती है।

कमजोर वर्गों को प्रभावित करने वाले कानूनों की समीक्षा
23वें विधि आयेाग को इन मुद्दों पर प्रमुखता से विचार करने का दायित्व सौंपा गया है। इनमें से कुछ अहम मुद्दे इस प्रकार हैं…

  • वर्तमान के उन कानूनों की समीक्षा करना, जो गरीबों और कमजोर वर्गों के लोगों को प्रभावित करते हैं।
  • देश में लैंगिक (जेंडर) समानता के लिए कानूनी सुधार सुझाना।
  • कानून की प्रचलित प्रक्रियाओं व शब्दावली का सरलीकरण करना।
  • जस्टिस सिस्टम को और अधिक कारगर और कार्यकुशल बनाना, ताकि न्याय देने में देरी न हो।

नए विधि आयोग का कार्यकाल 3 साल के लिए होगा
आयोग में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य और एक सदस्य सचिव की नियुक्ति होगी। उनका कार्यकाल 3 साल का होगा। यह संस्था कानूनों को नए समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाने, पुराने पड़ चुके कानूनों को हटाने और जस्टिस सिस्टम में होने वाली देरी को कम करने की दिशा में काम करेगी।

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