‘संविधान हत्या दिवस’ के खिलाफ पीआईएल खारिज: इमरजेंसी की याद में मोदी सरकार ने 13 जुलाई को जारी की थी अधिसूचना

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नई दिल्ली30 मिनट पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को ‘संविधान हत्या दिवस’ के विरोध में दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी। केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित किया था। गृह मंत्री अमित शाह ने 12 जुलाई को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी थी। अगले दिन 13 जुलाई को सरकार ने नोटिफिकेशन भी जारी किया था।

सरकार ने इसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 1975 में लगाई गई इमरजेंसी के खिलाफ लड़ने वाले लोगों के लिए श्रद्धांजलि बताया था।

‘अधिसूचना संविधान का उल्लंघन या अपमान नहीं करती’

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच फैसला सुनाते हुए कि अधिसूचना आर्टिकल 352 के तहत इमरजेंसी की घोषणा के खिलाफ नहीं बल्कि सत्ता और संवैंधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग के खिलाफ है। यह अधिसूचना संविधान का उल्लंघन या अनादर नहीं करती।

पीआईएल समीर मलिक नाम के व्यक्ति ने दायर की थी। इसमें तर्क दिया गया था कि संविधान के आर्टिकल 352 के तहत इमरजेंसी लागू की गई थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह संविधान की हत्या है। इसी तरह की एक याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी लंबित है।

केंद्र का नोटिफिकेशन…

आखिर भाजपा को ऐसा कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भाजपा ने 400 पार का नारा दिया था। इसके बाद भाजपा के कई नेताओं ने कहा था कि 400 सीटें इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है। इनमें BJP नेता अंनत हेगड़े, लल्लू सिंह और अरुण गोविल शामिल थे। इसके बाद विपक्ष ने मुद्दा बनाते हुए कहा था कि अगर भाजपा सरकार में आई तो संविधान बदल देगी। इसके बाद PM मोदी को सफाई देनी पड़ी थी।

मोदी ने अप्रैल 2024 को सागर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि उन्हें 400 सीटें क्यों चाहिए। पीएम मोदी ने सागर की सभा में कहा था कि कांग्रेस धर्म के आधार पर आरक्षण देना चाहती है। कांग्रेस ने कर्नाटक में धर्म के आधार पर आरक्षण दे दिया। वह यही फॉर्मूला पूरे देश में लागू करना चाहती है। दलित, आदिवासी, ओबीसी के आरक्षण चोरी करने का बंद करने के लिए मोदी को 400 पार चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि मुझे दलित, आदिवासी और ओबीसी के आरक्षण की रक्षा करनी है।

इसके बाद विपक्ष ने भाजपा पर संविधान विरोधी होने का आरोप लगाया। कहा कि अगर भाजपा सरकार में आई तो वह संविधान बदल देगी। जानकार कहते हैं कि इससे भाजपा को महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में नुकसान हुआ। विपक्ष ने हाल के संसद सत्र में संविधान को लेकर हर दिन प्रदर्शन किया। संविधान बचाओं का नारा दिया। राहुल, अखिलेश समेत विपक्ष के ज्यादातर सांसदों ने संविधान की कॉपी को लेकर शपथ ली।

राहुल ने 25 जून को लोकसभा में संविधान की कॉपी लेकर सांसद की शपथ ली थी।

राहुल ने 25 जून को लोकसभा में संविधान की कॉपी लेकर सांसद की शपथ ली थी।

एक्सपर्ट बोले- दिवस घोषित कर देने से कोई फायदा नहीं होने वाला

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक, चुनाव से पहले संविधान को लेकर जिस तरह की लामबंदी हुई, उससे विपक्ष को फायदा हुआ है। विपक्ष ने इस बात को प्रचारित किया कि सरकार 400 सीटें लाकर संविधान और आरक्षण से छेड़छाड़ करने जा रही है। इससे बीजेपी थोड़ी असहज हो गई। उसी को काउंटर करने के लिए सरकार ने संविधान हत्या दिवस का ऐलान कर दिया। ताकि ऐसी पार्टियां और नेता, जो कभी इमरजेंसी की ज्यादतियों का शिकार हुए, वो कांग्रेस का साथ देने में असहज हो जाएं।

किदवई कहते हैं कि आपातकाल बुरा था, तो संविधान से आपातकाल के प्रावधान को ही निकाल देना चाहिए। सिर्फ दिवस घोषित कर देने से कोई फायदा नहीं होने वाला। संविधान की मंशा के खिलाफ तो आज भी तमाम काम हो रहे हैं।

अखिलेश ने कहा था- इमरजेंसी तो मोदी सरकार में ही लग रही

  • जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा था, ‘हम केंद्र सरकार के इस फैसले की सराहना करते हैं। आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल जाने का मौका मिला। इससे परिवार वालों को भी परेशानी हुई थी।’
  • कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था, ‘पिछले 10 सालों में इस सरकार ने हर दिन संविधान हत्या दिवस ही तो मनाया है। आपने देश के हर गरीब और वंचित तबके से हर पल उसका आत्म सम्मान छीना है। मध्य प्रदेश में आदिवासियों के अपमान, हाथरस में दलित बेटी के जबरिया अंतिम संस्कार जैसे मुद्दे गिनाए और पूछा कि क्या यह संविधान की हत्या नहीं हुई तो और क्या है? इस सरकार के मुंह से संविधान की बातें अच्छी नहीं लगती है।’
  • अखिलेश यादव ने कहा था, ‘बीजेपी बताए कि वह अपने काले दिनों के लिए कौन-कौन सी तारीख को चुनेगी। 30 जनवरी को ‘बापू हत्या दिवस’ या फिर ‘लोकतंत्र हत्या दिवस’ के संयुक्त दिवस के रूप में मनाना चाहिए, क्योंकि इसी दिन चंडीगढ़ में भाजपा ने मेयर चुनाव में धांधली की थी।
  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था, देश में सबसे ज्यादा इमरजेंसी तो मोदी सरकार में ही लग रही है। ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी। ये सरकार स्थिर नहीं है।’

PM ने कहा था- इमरजेंसी लगाने वाले संविधान पर प्यार न जताएं

इस साल 25 जून को इमरजेंसी की 49वीं बरसी थी। इससे एक दिन पहले यानी 24 जून को 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में विपक्षी सांसदों ने संविधान की कॉपी लेकर शपथ ली थी। इसे लेकर प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की आलोचना की। उन्होंने X पर एक पोस्ट में लिखा कि इमरजेंसी लगाने वालों को संविधान पर प्यार जताने का अधिकार नहीं है।

PM मोदी ने एक के बाद एक X पर चार पोस्ट किए थे। पोस्ट में उन्होंने लिखा था कि जिस मानसिकता की वजह से इमरजेंसी लगाई गई, वह आज भी इसी पार्टी में जिंदा है। इसके जवाब में कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि देश को दूसरी इमरजेंसी से बचाने के लिए जनता से इस बार वोट किया है। हमारे संविधान ने ही जनता को आने वाली एक और इमरजेंसी रोकने की याद दिलाई है।

PM ने संसद सत्र के पहले दिन इमरजेंसी का जिक्र किया था

संसद सत्र (24 जून से 3 जुलाई) शुरू होने से आधे घंटे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि 25 जून न भूलने वाला दिन है। इसी दिन संविधान को पूरी तरह नकार दिया गया था। भारत को जेलखाना बना दिया गया था। लोकतंत्र को पूरी तरह दबोच दिया गया था।

उन्होंने कहा था कि भारत के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करते हुए देशवासी संकल्प लेंगे कि भारत में फिर कभी कोई ऐसी हिम्मत नहीं करेगा, जो उस समय किया गया था। भारत की नई पीढ़ी ये कभी नहीं भूलेगी की संविधान को इमरजेंसी के दौरान पूरी तरह नकार दिया गया था। पूरी खबर पढ़ें…

जानिए कब और किसने 21 महीने के लिए लगाई गई थी इमरजेंसी

25 जून 1975 को देश में 21 महीने के लिए इमरजेंसी लगाई गई थी। तत्कालीन PM इंदिरा गांधी के कहने पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के आदेश पर दस्तखत किए थे। इसके बाद इंदिरा ने रेडियो से आपातकाल का ऐलान किया।

आपातकाल की जड़ें 1971 में हुए लोकसभा चुनाव से जुड़ी थीं, जब इंदिरा ने रायबरेली सीट पर एक लाख से भी ज्यादा वोट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को हराया था। लेकिन राजनारायण चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे।

12 जून 1975 को हाईकोर्ट ने इंदिरा का चुनाव निरस्त कर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। वे 23 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई और इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की इजाजत दे दी। इसके बाद इंदिरा ने देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया।

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