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भारतीय सेना के लिए तैयार हो रहे विभिन्न उपकरणों से जुड़ी सूचनाएं लीक हो सकती हैं। क्या सैन्य तैयारी से जुड़े अहम रणनीतिक फैसलों में सेंध लगने की आशंका है? सेना के लिए उपकरण तैयार कर रही प्राइवेट कंपनियों को ‘पेन ड्राइव’ में भारतीय रक्षा क्षेत्र से जुड़ी अहम जानकारी कौन दे सकता है? अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ‘एआईडीईएफ’ के महासचिव श्रीकुमार द्वारा यह आशंका जाहिर की गई है। उन्होंने कहा, डिफेंस से जुड़े रहे ऐसे अधिकारियों की पेंशन रोकी जाए, जो रिटायर होने के बाद रक्षा क्षेत्र की निजी कंपनियां ज्वाइन कर लेते हैं। यह देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। ऐसा संभव है कि रिटायरमेंट से पहले वे अधिकारी बहुत सी सूचनाओं का एक पिटारा तैयार कर लें। चूंकि उन्हें यह पता होता है कि रिटायरमेंट के बाद वे कौन सी कंपनी में ज्वाइन करेंगे, इसलिए ऐसी स्थिति में रक्षा क्षेत्र के कुछ जरूरी ‘राज’ इधर-उधर हो सकते हैं।
निजी कंपनियों का प्रचार करती है सरकार
श्रीकुमार ने कहा, केंद्र सरकार ने गत वर्ष ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) को भंग कर दिया था। ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड की संपत्ति, उसके कर्मचारियों और मैनेजमेंट को सात नए स्थापित रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू) में बांट दिया गया। ये निजीकरण की दिशा में पहला कदम है। केंद्र सरकार की मंशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह पहले छह माह में रक्षा कंपनियों द्वारा जो कुछ तैयार किया गया है, उसका बढ़ा चढ़ाकर बखान कर रही है। स्वतंत्रता के बाद अब तक आयुध कारखानों ने सशस्त्र बलों के लिए आवश्यक सैकड़ों नए उत्पाद विकसित किए हैं। उनके बारे में सरकार कुछ नहीं बता रही है। भारत के सशस्त्र बल उन उत्पादों से खुश हैं। इससे पहले आयुध कारखानों को लेकर कभी कोई ढोल नहीं पीटा गया। केंद्र सरकार, आयुध कारखानों द्वारा तैयार किए गए रक्षा उत्पादों को लेकर अपना मुंह बंद कर लेती हैं।
सरकार ने कर्मचारी संगठन के नेताओं को अपने पैम्फलेट में रक्षा उत्पादों के नाम प्रकाशित करने के लिए चार्जशीट कर दिया था। अब सरकार ने निजी क्षेत्र के लिए रक्षा उत्पादन का दरवाजा खोल दिया है। इनके उत्पादों को खूब प्रचार किया जा रहा है। निजी क्षेत्र जब पहली बार किसी ऐसी वस्तु का ऐसा उत्पादन करता है, जिसे आयुध कारखाने दशकों से तैयार करते आए हैं, तो सरकार द्वारा उसका जमकर प्रचार किया जाता है। आयुध कारखानों की घोर उपेक्षा की गई। चेन्नई स्थित ओसीएफ अवादी ने बुलेटप्रूफ वेस्ट और जैकेट तैयार की थी, उसे राज्यों की पुलिस को सप्लाई किया गया। वही फैक्टरी अब नई आर्मी डिजिटल यूनिफॉर्म का निर्माण कर रही है। सेना की इकाइयां सैनिकों के लिए व्यक्तिगत रूप से मापी और सिली हुई वर्दी के लिए कारखाने से संपर्क कर रही हैं। इसका कोई प्रचार नहीं हुआ।
रिटायरमेंट के बाद निजी कंपनी ज्वाइन नहीं करें सेना अफसर
आयुध निर्माणी, भंडारा ने स्वदेशी रॉकेट मोटरचार्ज्ड प्रोपेलेंट, आयुध निर्माणी खमरिया को भेजा है। आयुध निर्माणी भंडारा द्वारा 15 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद यह उपलब्धि हासिल की गई है। अभी तक वही प्रोपेलेंट, आयुध निर्माणी खमरिया द्वारा स्वीडन से आयात किया जाता था। भारत में इस उत्पाद को बनाने के लिए आयुध निर्माणी भंडारा के कर्मचारियों ने दिन-रात संघर्ष किया। नतीजा, आयुध निर्माणी ने रॉकेट मोटर चार्ज्ड प्रोपेलेंट 551 हथियार को सफलतापूर्वक विकसित कर लिया। इसने सभी अनिवार्य परीक्षण पास कर लिए हैं। इसे सेना को सप्लाई करेंगे, लेकिन सरकार कोई पीठ नहीं थपा रही। श्रीकुमार ने कहा, क्या यह उपलब्धि मेक इन इंडिया नहीं है। क्या यह आयात प्रतिस्थापन नहीं है, क्या यह वास्तविक आत्मानिर्भर नहीं है। राष्ट्र को आयुध कारखानों के खिलाफ सुनियोजित साजिशों को समझना चाहिए।
सरकार ने आयुध कारखानों को निगमित करने का गलत निर्णय लिया है। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ‘एआईडीईएफ’ के महासचिव ने कहा, ओएफबी के पूर्व डीजी सरताज सिंह रक्षा कंपनी के कंसलटेंट बन गए हैं। इसी तरह से कुछ दूसरे अफसर भी रिटायरमेंट के बाद कंपनी ज्वाइन करने का रास्ता तैयार कर रहे हैं। एआईडीईएफ की सरकार से मांग है कि आर्मी अफसर रिटायरमेंट के बाद, कोई भी डिफेंस की प्राइवेट कंपनी ज्वाइन नहीं करें। ऐसा राष्ट्र एवं सुरक्षा के हित में नहीं है। ऐसे पूर्व अधिकारियों की पेंशन बंद हो। इस तरह की पोस्ट रिटायरमेंट जॉब में रक्षा क्षेत्र से जुड़ी अहम सूचनाएं प्राइवेट कंपनी तक पहुंच जाती हैं। जब एक तकनीक, किसी दूसरी कंपनी के पास पहुंचेगी तो वह देश से बाहर भी जा सकती है। शत्रु राष्ट्र के हाथ भी लग सकती है।