जोधपुर में पर्यावरण और खेजड़ी के पेड़ बचाने के लिए 294 साल पहले 363 लोगों ने जान दी थी। उनकी याद में जोधपुर जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर खेजड़ली गांव में शहीदों की याद में हर साल की तरह इस साल भी मेला लगा। शुक्रवार को भी मेले में बड़ी संख्या में बिश
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जोधपुर, फलोदी, नागौर, बीकानेर, सांचौर, जालोर, पाली सहित विभिन्न जिलों में रहने वाले समाज के लोग मेले में शामिल होने पहुंचे। इसके अलावा हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश राज्यों से भी लोग आए और शहीदों को नमन किया। खेजड़ली में बिश्नोई समाज के आराध्य जम्भेश्वर भगवान का मंदिर बनाया गया है। 1 दिन पहले मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। भास्कर रिपोर्टर ने मेले का जायजा लिया और भारी-भारी गहने पहनकर पहुंचीं महिलाओं से बात की।
प्रोफेशनल अच्छे पदों पर आसीन महिलाएं लाखों रुपए के गहने पहनकर मेले में पहुंचीं।
आधा किलो तक सोना पहनकर पहुंचीं महिलाएं मान्यता है कि खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा के लिए शहीद हुए लोगों के सम्मान में ये महिलाएं गहने पहनकर पहुंचती है। मेले में महिलाएं करीब आधा किलो तक सोना पहनकर पहुंचीं। इसके माध्यम से ये बताते हैं कि महिलाएं भी सज-धजकर बलिदान देने के लिए तैयार हैं। लाखों के गहने पहनकर महिलाएं बेफिक्र होकर मेले में घूमती हैं।
पीडब्ल्यूडी की अधिकारी 400 ग्राम सोने के गहने पहनकर पहुंचीं पीडब्ल्यूडी विभाग में JEN निशा बिश्नोई करीब 400 ग्राम सोने के गहने पहनकर मेले में शामिल होने आईं। निशा ने बताया- मेले में समाज की सभी महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा पहनकर आती हैं। सोने के गहने भी पहनते हैं। ये गहने हमारा परिधान हैं। इससे हमारी संस्कृति झलकती है। बीएड की पढ़ाई कर रहीं मंजू बिश्नोई करीब तीस तोला सोने के गहने पहनकर पहुंचीं। उनके साथ आईं रुक्मा 400 ग्राम सोने के गहने पहनकर पहुंचीं। उन्होंने बताया कि ये हमारी संस्कृति है। उन्हें खुशी है कि वो इस परंपरा का निर्वाहन कर रही हैं।
मां और दादी के बाद निभा रही परंपरा ममता बिश्नोई ने बताया- ये परंपरा सालों से चली आ रही है। वो भी यहां गहने पहनकर पहुंचती हैं। उनकी मां, दादी ने भी गहने पहनकर इस परंपरा को निभाया। अब वो भी गहने पहनकर पहुंची है। मेले में टीचर मंजू बिश्नोई भी करीब 350 ग्राम सोने के गहने पहनकर पहुंचीं। उन्होंने बताया- मेले में आकर बहुत अच्छा लगा।
मेले में आईं एक-एक महिला ने करीब 35-35 लाख रुपए कीमत के गहने पहन रखे थे।
हवन कुंड में दी आहुतियां मेले में सुबह से ही लोगों की भीड़ जुटना शुरू हो गई थी। बिश्नोई समाज के लोगों ने हवन कुंड में नारियल की आहुतियां देकर शहीदों को नमन किया। गुरु जम्भेश्वर के बताए रास्ते पर चलने का हवन किया। यहां आने वाले लोगों ने 363 शहीदों के बलिदान स्थल पर उन्हें पुष्प चढ़ाए। इसके बाद गुरु जम्भेश्वर भगवान के मंदिर में दर्शन कर सुख-समृद्धि की मंगल कामना की। पर्यावरण संरक्षण और जीव दया के लिए हमेशा तत्पर रहने की शपथ भी ली। मेले के चलते शहीद स्थल के दोनों तरफ के प्रमुख रास्ते पर करीब 2 किलोमीटर लंबा जाम लग गया।
कलश के लिए लगी सबसे ज्यादा 6.11 करोड़ की बोली खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के आराध्य जम्भेश्वर भगवान का मंदिर बनाया गया है। मंदिर की गुरुवार को प्राण-प्रतिष्ठा की गई। प्राण-प्रतिष्ठा के अलग-अलग धार्मिक आयोजन के लिए समाज के लोगों ने करीब 8 करोड़ 62 लाख रुपए की बोली लगाई।
कलश के लिए 6 करोड़ 11 लाख, ध्वजा के लिए 1 करोड़ 11 लाख, पट खोलने के लिए 11 लाख, झालर टंकोरा के लिए 13 लाख, आरती के लिए 25 लाख, दीपक के लिए 15 लाख, माला के लिए 21 लाख, तस्वीर के लिए 16 लाख की बोली लगाई गई।
देशभर से बिश्नोई समाज की महिलाएं मेले में आईं। उनका कहना था- इसके माध्यम ये बताते हैं कि महिलाएं सज-धजकर बलिदान देने के लिए तैयार हैं। मेले में आई JEN और बीएड कर रही मंजू।
पायलट ने की तारीफ, कहा-मोटे-मोटे गहने पहनो, मुस्कराते रहो मेले में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व डिप्टी सीएम पायलट भी पहुंचे थे। उन्होंने कहा- हमारी माता-बहनें लाल कपड़ों में, इतने सारे गहने मैंने पहले कभी देखे नहीं। मैं सोच रहा था- ये शौक समाज को है। हर उम्र की बहन हमारी, छोटी बच्चियां, बड़ी माता-बहनें हों, इतने शौक से सज-धज कर, मोटे-मोटे गहने गले-हाथ में डालकर आई है। ये देखकर मुझे इतनी प्रसन्नता हुई। सफेद कपड़ों में हमारे भाई और साथी आए हैं। एक प्रेम का भाव निकलकर जाता है। पायलट ने कहा- मुस्कराते रहो…मोटे-मोटे गहने पहनो।
मेले में आई महिलाओं ने गल में आड़ पहन रखी थी। इसके अलावा हाथों में बाजू बंद, सिर पर रखड़ी-टीका, हाथों में हथफूल, बंगड़ी, चूड़ी पहनी थी।
363 लोगों ने खेजड़ी को बचाने के लिए दिया था बलिदान मेले को लेकर अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र बुड़िया ने बताया- आज का मेला एक राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व का मेला है। समाज के 363 लोगों ने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। ऐसे शहीदों को नमन करने के लिए हर साल यह मेला भरता है, जिसमें समाज के लोग बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाते हैं। समाज की महिलाएं शहीद हुए लोगों के सम्मान में बढ़-चढ़कर गहने पहनकर पहुंचती हैं।
मेले में हर उम्र की महिलाएं सोने के गहने पहने हुए नजर आईं।
ये है इतिहास खेजड़ली शहीदी मेला पूरी दुनिया में सबसे अनूठा है। काफी साल पहले अमृता देवी के नेतृत्व में 363 महिला-पुरुषों व बच्चों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। उनकी याद में यह मेला लगता है। खेजड़ली मेला जोधपुर के खेजड़ली गांव में लगता है। यह भादो की दशमी को लगता है। इस दिन यानी 21 सितंबर 1730 को बिश्नोई महिला-पुरुषों ने खेजड़ी के वृक्षों की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। पेड़ों के लिए ऐसी शहादत कहीं देखने को नहीं मिलती।
यह है मान्यता मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह नया महला बनवा रहे थे। महल निर्माण के लिए लकड़ियों को दरकार थी। महल से 24 किलोमीटर दूर खेजड़ली से पेड काटकर लाने का हुक्म हुआ। सैनिक खेजड़ली गांव में पहुंच गए। रामू खोड़ के घर के बाहर लगा खेजड़ी का पेड़ काटने लगे तो रामू की पत्नी अमृता देवी ने विरोध किया। वह पेड़ से चिपक गईं। सैनिकों ने उन्हें कुल्हाड़ी से काट दिया। इसके बाद अमृता देवी की तीनों बेटियों आसू, रत्नी और भागू बाई भी एक-एक पेड़ को बचाने के लिए तने से लिपट गई और सैनिकों ने उन्हें भी काट दिया। यह बात पूरे गांव में फैली तो लोग खेजड़ी के पेड़ों से लिपट गए। राजा के सैनिकों ने 71 महिलाओं और 292 पुरुषों यानी कुल 363 लोगों को काट डाला।
महाराजा अभय सिंह तक यह बात पहुंची तो उन्होंने पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी और बिश्नोई समाज को लिखित में वचन दिया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी का पेड़ नहीं काटा जाएगा। इस दिन की याद में खेजड़ली में हर साल शहीदी मेला लगता है। वन्यजीवों को बचाने में भी बिश्नोई समाज हमेशा आगे रहा है। हिरणों को बचाने के प्रयास में समाज के कई लोग शिकारियों की गोली का शिकार हो चुके हैं।
जम्भेश्वर भगवान के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा में हवन करते समाज के लोग।
बलिदान की याद में पैनोरमा और स्टैच्यू राजस्थान सरकार ने ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए खेजड़ली में विशेष बजट से मां अमृता देवी की प्रतिमा स्थापित कर 363 शहीदों के नामों की सूची स्थापित की थी। इसके साथ ही खेजड़ली बलिदान से जुड़ी जानकारी के लिए पूरी घटना का पैनोरमा भी बनाया है।
मेले में देशभर से बिश्नोई समाज के लोग पहुंचे।
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