नई दिल्ली14 मिनट पहले
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BNS की धारा 479, IPC की धारा 436ए की जगह लाई गई है। इसमें विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि के प्रावधान हैं।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार (23 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNS) की धारा 479 को 1 जुलाई से पहले दर्ज किए गए सभी विचाराधीन मामलों में लागू किया जाएगा।
जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की बेंच ने देशभर के जेल अधीक्षकों से कहा- वे धारा 479 में दी गई हिरासत की अवधि का एक तिहाई समय पूरा कर चुके कैदियों के आवेदनों पर कार्रवाई करें। इसे 3 महीने के अंदर निपटाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने देश की जेलों में भीड़भाड़ से निपटने के लिए अक्टूबर 2021 में नजर बनाए हुए है। इस मामले पर खुद ही एक्शन लेते हुए इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
एमिकस क्यूरी ने कहा था- जेलों में भीड़ कम करने में मदद मिलेगी
पिछली सुनवाई में सीनियर एडवोकेट और एमिकस क्यूरी (कोर्ट की तरफ से नियुक्त किए गए वकील) गौरव अग्रवाल ने धारा 479 के तहत विचाराधीन कैदियों को हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि से जुड़े प्रावधान पर कोर्ट का ध्यान खींचा था।
उन्होंने कहा था कि धारा 479 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति, किसी विशेष कानून के तहत किसी अपराध के लिए तय सजा का एक तिहाई वक्त हिरासत में रह चुका है, तो उसे कोर्ट जमानत पर रिहा करे। उन्होंने कहा कि इसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए।
गौरव अग्रवाल ने कहा था कि इससे जेलों में भीड़ कम करने में मदद मिलेगी।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के जेलों में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
जेलों में आधे कैदी गैर संगीन अपराध के
गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देश की जेलों में साढ़े पांच लाख कैदी हैं। कैदियों की कुल संख्या में करीब आधे गैर संगीन अपराधों के कैदी हैं। गैर संगीन अपराध के अंडर ट्रायल वालों की संख्या 2 लाख है। इनमें ज्यादातर तो अधिकतम सजा से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं।