सीजेआई रमण बोले: पहले मिला था उत्कृष्ट संविधान और दोषरहित कानून, अब संसद में कानूनी पेशवरों की संख्या घटी

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भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण ने सोमवार को कहा कि पहले संसद में कानूनी पेशेवरों का वर्चस्व था, जिन्होंने एक उत्कृष्ट संविधान और दोषहरित कानून दिए, लेकिन अब वकीलों की संख्या कम हो गई है और जगह दूसरों ने ले ली है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को सम्मानित करते हुए जस्टिस रमण ने कहा कि उनका (धनखड़) उत्थान हमारी स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं और समृद्ध संवैधानिक मूल्यों के लिए एक सम्मान है। सीजेआई ने कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि हमारा प्रगतिशील संविधान जाति, पंथ, धर्म, क्षेत्र और वित्तीय स्थिति के बावजूद सभी को अवसर प्रदान करता है। 

धनखड़ का उपराष्ट्रपति बनना लोकतंत्र की ताकत
चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि यह लोकतंत्र की ताकत है कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता (धनखड़) ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने और बिना राजनीतिक गॉडफादर के देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम और संविधान के निर्माण में कानूनी समुदाय के योगदान का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि संविधान सभा में और हमारी संसद के शुरुआती दिनों में सदन में कानूनी पेशेवरों का वर्चस्व था। 

सीजेआई ने कहा, नतीजतन हमें उत्कृष्ट संविधान और दोषरहित कानून मिले। आजकल वकीलों की संख्या कम हो गई है और उनका स्थान दूसरों ने ले लिया है। मैं आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि अपने अनुभव और राज्यसभा के सभापति के कार्यालय से मार्गदर्शन के साथ उन्हें आशा और विश्वास है कि कानूनों की गुणवत्ता में निश्चित रूप से सुधार होगा। अब तक उनके द्वारा संभाले गए कार्यालयों के विपरीत उपराष्ट्रपति का उच्च पद कहीं अधिक बड़ी जिम्मेदारियों वाला है। अपने कार्यकाल के दौरान धनखड़ के पास पदेन सभापति के रूप में राज्यसभा के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने का अनूठा और चुनौतीपूर्ण अवसर होगा।  

रिजिजू बोले, मीडिया में अब व्यवधान और शोर की खबरें आती हैं
समारोह में रिजिजू ने कहा कि वह धनखड़ से अक्सर मिलेंगे क्योंकि वह राज्यसभा के सभापति के रूप में अध्यक्षता करेंगे। मैं केवल उन्हें सावधान कर सकता हूं कि अतीत में सभी पदों पर रहना पीठासीन अधिकारी की भूमिका की तुलना में बहुत आसान साबित होगा। जब मैंने संसद में प्रवेश किया था, हमारे दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी वहाँ थे और लोकसभा के साथ-साथ राज्य सभा में भी बहुत सारी बहसें होती थीं। बहस अब भी होती है लेकिन दुर्भाग्य से मीडिया में केवल व्यवधान और शोर की सूचना आती है। उन्होंने कहा कि बहस की गुणवत्ता की रिपोर्ट नहीं की जा रही है जैसा कि होना चाहिए।

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भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण ने सोमवार को कहा कि पहले संसद में कानूनी पेशेवरों का वर्चस्व था, जिन्होंने एक उत्कृष्ट संविधान और दोषहरित कानून दिए, लेकिन अब वकीलों की संख्या कम हो गई है और जगह दूसरों ने ले ली है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को सम्मानित करते हुए जस्टिस रमण ने कहा कि उनका (धनखड़) उत्थान हमारी स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं और समृद्ध संवैधानिक मूल्यों के लिए एक सम्मान है। सीजेआई ने कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि हमारा प्रगतिशील संविधान जाति, पंथ, धर्म, क्षेत्र और वित्तीय स्थिति के बावजूद सभी को अवसर प्रदान करता है। 

धनखड़ का उपराष्ट्रपति बनना लोकतंत्र की ताकत

चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि यह लोकतंत्र की ताकत है कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता (धनखड़) ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने और बिना राजनीतिक गॉडफादर के देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम और संविधान के निर्माण में कानूनी समुदाय के योगदान का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि संविधान सभा में और हमारी संसद के शुरुआती दिनों में सदन में कानूनी पेशेवरों का वर्चस्व था। 

सीजेआई ने कहा, नतीजतन हमें उत्कृष्ट संविधान और दोषरहित कानून मिले। आजकल वकीलों की संख्या कम हो गई है और उनका स्थान दूसरों ने ले लिया है। मैं आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि अपने अनुभव और राज्यसभा के सभापति के कार्यालय से मार्गदर्शन के साथ उन्हें आशा और विश्वास है कि कानूनों की गुणवत्ता में निश्चित रूप से सुधार होगा। अब तक उनके द्वारा संभाले गए कार्यालयों के विपरीत उपराष्ट्रपति का उच्च पद कहीं अधिक बड़ी जिम्मेदारियों वाला है। अपने कार्यकाल के दौरान धनखड़ के पास पदेन सभापति के रूप में राज्यसभा के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने का अनूठा और चुनौतीपूर्ण अवसर होगा।  

रिजिजू बोले, मीडिया में अब व्यवधान और शोर की खबरें आती हैं

समारोह में रिजिजू ने कहा कि वह धनखड़ से अक्सर मिलेंगे क्योंकि वह राज्यसभा के सभापति के रूप में अध्यक्षता करेंगे। मैं केवल उन्हें सावधान कर सकता हूं कि अतीत में सभी पदों पर रहना पीठासीन अधिकारी की भूमिका की तुलना में बहुत आसान साबित होगा। जब मैंने संसद में प्रवेश किया था, हमारे दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी वहाँ थे और लोकसभा के साथ-साथ राज्य सभा में भी बहुत सारी बहसें होती थीं। बहस अब भी होती है लेकिन दुर्भाग्य से मीडिया में केवल व्यवधान और शोर की सूचना आती है। उन्होंने कहा कि बहस की गुणवत्ता की रिपोर्ट नहीं की जा रही है जैसा कि होना चाहिए।