संसद से सड़क: आज की राजनीति, कांग्रेस, राहुल से लेकर महात्मा गांधी तक…

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11 मिनट पहले

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ये अगस्त है। आज़ादी का महीना। 1947 में 14 और 15 अगस्त की दरमियानी रात जब विभाजन को मूर्त रूप दिया जा रहा था, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने कहा- विभाजन मेरे देश की भावनाओं पर कुठाराघात है। सीमांत गांधी खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान ने कहा- विभाजन मेरी चौड़ी छाती पर कुल्हाड़ा चलाने जैसा है … और महात्मा गांधी, आज़ादी की रोशनी में जगमगा रही दिल्ली से हज़ार किलोमीटर दूर कोलकाता के पास लाशों के बीच सुबक रहे थे। सच रो रहा था …और झूठ का राजतिलक हो रहा था।

इधर हिंदुस्तान में,… उधर पाकिस्तान में। सुबकते गांधी जी से तब एक बीबीसी संवाददाता ने पूछा था- वाई आर यू क्राइंग मिस्टर गांधी? जवाब में गांधी जी ने कहा- भूल जाओ कि गांधी अंग्रेज़ी जानता है! इस जवाब में केवल भाषा से मतलब नहीं है, उस अंग्रेज़ीयत से भी है जिसने लोगों को बांटा, आपस में लड़ाया और ग़रीबों, मज़बूरों पर अत्याचार किए। अफ़सोस, कि आज़ादी के 76 साल बाद भी गांधी जी की इस भावना का सम्मान किसी ने नहीं किया। न नेताओं ने। न राजनीतिक दलों ने। जबकि हर राजनीतिक दल गांधी के नाम पर वोट ज़रूर कबाड़ना चाहता है।

पूजता भी है लेकिन उनका अनुसरण नहीं करता। सच है, जिस तरह आक के फूल उड़कर जहां जाते हैं, वहीं उग आते हैं, उसी तरह सच के भी बीज होते हैं और वह भी जहां उड़कर जाता है, वहीं उग आता है लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि आजकल सच की खेती कोई नहीं करना चाहता!

राहुल गांधी की यह फोटो 8 अगस्त की है। जब वे मोदी सरकार के खिलाफ ला गए अविश्वास प्रस्ताव चर्चा में शामिल हुए थे।

राहुल गांधी की यह फोटो 8 अगस्त की है। जब वे मोदी सरकार के खिलाफ ला गए अविश्वास प्रस्ताव चर्चा में शामिल हुए थे।

अब आते हैं राहुल गांधी पर। चार महीने बाद ही सही, उन्हें लोकसभा में आने का अवसर मिल ही गया। बेशक, निचली अदालतों ने चार महीने उनके होंठ सिल दिए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आख़िर वह सीवन उधेड़ी और मुँह खोल दिया। ये बात और है कि निचली अदालत के फ़ैसले के बाद राहुल को सांसद पद से बर्खास्त करने में जो जल्दबाज़ी दिखाई गई थी, उतनी ही

जल्दी में उनकी सदस्यता बहाल भी कर दी गई। सवाल यह उठता है कि सर्वोच्च अदालत के फ़ैसले के बाद जो राहुल की वापसी हुई है इसका फ़ायदा कांग्रेस को होगा या नहीं? होगा तो कितना? निश्चित ही कांग्रेस के लिए यह सुनहरा मौक़ा है लेकिन लगता है इस पार्टी में नेतृत्व का संकट जो बहुत पहले से खड़ा हुआ है, वह लगभग स्थायित्व की तरफ़ जा रहा है। क्योंकि जब राहुल की सदस्यता गई, मौक़ा तो तब भी था लेकिन एक- दो दिन के मामूली प्रदर्शनों के बाद सारे नेता- कार्यकर्ता घर बैठ गए थे। कांग्रेस का नेतृत्व कभी राजस्थान का गहलोत- पायलट विवाद सुलझाने में उलझा रहा तो कभी अजय माकन की भूमिका मापने में लगा रहा। पार्टी को जो सहानुभूति मिलनी थी, वह नहीं मिल पाई। इतना ज़रूर तय है कि इस पूरे घटनाक्रम से सत्तारूढ़ भाजपा ज़रूर कुछ हद तक दबाव महसूस कर रही है। इस दबाव के कई कारण हैं। पहला और सबसे बड़ा कारण है मणिपुर।

तीन महीने से मणिपुर जल रहा है और कार्रवाई, ख़ासकर राजनीतिक कार्रवाई के नाम पर वहाँ कुछ नहीं किया गया। हर कोई जानता है कि अगर मणिपुर में दूसरे किसी दल की सरकार होती तो चार- छह दिन में ही वहाँ राष्ट्रपति शासन लग चुका होता। यहाँ तो निर्वस्त्र महिलाओं का वीडियो वायरल होने पर भी राज्य सरकार के कानों में जूं नहीं रेंगी जबकि इस घटना की रिपोर्ट वहां के थाने में ढाई महीने पहले लिखी जा चुकी थी। ख़ैर दबाव का दूसरा कारण है-इंडिया। दरअसल, ये इंडिया उस संगठन के नाम का शॉर्ट फ़ॉर्म है, जो छब्बीस विपक्षी दलों ने मिलकर हाल में बनाया है। सत्ता पक्ष की परेशानी यह है कि वह इंडिया का विरोध आख़िर कैसे करे? वो तो देश का नाम है। देश से याद आया- हाल में एक याचिका कोर्ट में दाखिल की गई है।

यह फोटो मणिपुर हिंसा की है। राज्य में मई से कुकी और मैतेई समुदाय में हिंसक झड़प जारी हैं। अब तक 150 ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

यह फोटो मणिपुर हिंसा की है। राज्य में मई से कुकी और मैतेई समुदाय में हिंसक झड़प जारी हैं। अब तक 150 ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

याचिकाकर्ता को इंडिया नाम पर आपत्ति है। कहा यह गया है कि राजनीतिक दलों के संगठन का नाम इंडिया रखना ग़लत है क्योंकि यह एम्ब्लम एण्ड नेम्स एक्ट का उल्लंघन है। वास्तव में एम्ब्लम एक्ट 1950 के अनुसार कोई भी व्यक्ति या संस्था देश के नाम और उसके कुछ मान्य प्रतीकों का व्यावसायिक उपयोग बिना केंद्र सरकार की अनुमति के नहीं कर सकता। अब यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि राजनीतिक दलों द्वारा किए गए या किए जाने वाले काम बिज़नेस या व्यावसायिक हैं या नहीं! अगर हैं तो सभी दल ये मानें कि वे लोगों और देश की सेवा करने की बजाय व्यापार या व्यवसाय कर रहे हैं! बहरहाल।

सत्ता पक्ष पर दबाव का तीसरा कारण है राहुल गांधी के खिलाफ केस। इस पूरे केस में आगे चलकर कांग्रेस या राहुल को कितना फ़ायदा होगा यह तो उनकी खुद की कोशिशों पर निर्भर करेगा लेकिन इतना तय है कि फ़िलहाल तो राहुल के प्रति पॉजिटीविटी बनी ही है। वैसे, लोकसभा में इन दिनों विश्वास और अविश्वास की जंग छिड़ी हुई है। अब तक गलियों, पहाड़ों और घाटियों में रेंगता हुआ मणिपुर, अब लोकसभा में सुबक रहा है। विपक्षी तमाम वक्ता मणिपुर पर बोल रहे हैं। सत्ता पक्ष के वक्ताओं ने पहले दिन मणिपुर का नाम तक नहीं लिया जबकि यह अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर मुद्दे पर ही लाया गया है।