श्रीकृष्ण जिस मिट्‌टी में खेले…उसका सालाना कारोबार 108 करोड़: 3 हजार रुपए किलो तक बिक रही रज, ब्रजवासी बोले- बेचने वालों को शर्म आनी चाहिए

ब्रज की रज यानी वो मिट्टी, जिसमें श्रीकृष्ण खेले। जिसे खाकर मां यशोदा को मुंह में ही ब्रह्मांड दिखा दिया। इसी मिट्‌टी में गोसेवा की, गोपियों संग लीलाएं कीं।

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लोग इस रज को वैसे ही महत्व देते हैं, जैसे भगवान को। मान्यता है कि यहां की रज जिसके शरीर को छू जाए, उसका उद्धार हो जाता है।

पहले लोग ब्रज आते थे, छोटी-छोटी थैलियों में मिट्‌टी रखकर घर ले जाते थे। समय के साथ कारोबारियों ने इस रज का भी मोल लगा दिया। अब यह डिजाइनर पैकेट्स में दुकानों पर और ऑनलाइन बिकती है। इसका सालाना कारोबार 108 करोड़ तक पहुंच गया है। मगर, ब्रज के लोगों में रज के कारोबार को लेकर गुस्सा है।

पहले रज से जुड़ी मान्यता समझिए…

कारोबार को समझिए…

84 कोस में फैले ब्रज में हर जगह श्रीकृष्ण की लीलाएं
वैसे तो ब्रज के पूरे 84 कोस में फैली रज का महत्व माना जाता है, मगर कुछ स्पॉट ऐसे हैं, जहां की रज लेने के लिए लोग आतुर दिखते हैं।

द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। बाल लीलाओं में श्रीकृष्ण ने ब्रज की मिट्टी खाई थी। मां यशोदा के डांटने पर उन्हें ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। युवा अवस्था में ब्रज में श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ लीलाएं कीं। स्वामी हरिदास ने साधना की। इसी मिट्‌टी से बांके बिहारी प्रकट हुए। यही वजह है कि लोग यहां आकर प्रभु के चरणों से छुई रज को साथ लेकर जाना चाहते हैं।

दुकानदार की सफाई- हम बेचते नहीं, काउंटर पर रखते हैं, ताकि आसानी से लोगों को मिल सके
इस नाराजगी को समझने के लिए हम लोई बाजार के कंठी माला दुकान पर पहुंचे। यहां दुकानदार विकास अग्रवाल कहते हैं- हम मिट्‌टी को बेचने के लिए काउंटर पर नहीं रखते हैं। लोग सैकड़ों किमी दूर से ब्रज में आते हैं। उन्हें आसानी से मिट्‌टी मिल जाए, इसलिए पैकेट बनाकर रखा जाता है। पैसे भी हम सिर्फ पैकेजिंग के लेते हैं। मिट्टी की कोई कीमत नहीं लगा सकता।

आगे एक दुकान पर नारायण दास कहते हैं- जो अनमोल है, उसका कोई क्या मोल लगाएगा। मिट्‌टी का व्यापार आस्था से खिलवाड़ है। जिसको भक्त अपने माथे पर लगाते हैं, उसे बेचना शर्म की बात है। अगर कोई हमसे मांगता है तो उसको यमुना तट या निधि वन भेज देते हैं।

अब विरोध को समझिए…

ऐसे लोगों पर सिर्फ कार्रवाई होनी चाहिए
आचार्य मृदुल कांत शास्त्री कहते हैं- ब्रज का मतलब गोशाला। गायों की जो चरण रज है, उसको ब्रज रज कहते हैं। सिर्फ श्रीकृष्ण इस रज में नहीं खेले। यहां किशोरीजी भी चली हैं। गोपियों की चरण रज को उद्धव जैसे ज्ञानी नमन करते हैं, वह भी ब्रज रज है। यहां के कण-कण में श्रीकृष्ण-राधा विराजमान हैं।

ऐसी ब्रज रज को आप तिजोरी में रख सकते हैं। सबसे अच्छा है कि ठाकुर जी चरणों में रखे। वो खुश होंगे, तो उनकी कृपा मिलेगी। यह रज अगर आपके घर में हैं तो सभी ऊर्जा संतुलित होती है। यहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनि आकर मिट्‌टी में लेटते हैं। अगर इसको कोई बेचता है तो उसके खिलाफ सिर्फ कार्रवाई ही होनी चाहिए।

ऑनलाइन बिक्री बैन होनी चाहिए
वृंदावन के बिहारी लाल कहते हैं- हम चाहते हैं कि लोग खुद ही इस रज को बेचना बंद कर दें। ऑनलाइन बिक्री को बैन कर देना चाहिए। बाहर से आने वाले श्रद्धालु इस रज में लोटपोट होकर इसको माथे से धारण करते हैं। कुछ लोग इसको बेचने का जो काम कर रहे हैं, वो दुखद है।

इस रज को खरीदना-बेचना, सब गलत
बांके बिहारी मंदिर के सेवायत आनंद बल्लभ गोस्वामी कहते हैं- मुझे लगता है कि लोग खुद ही नहीं समझ पा रहे हैं कि इस रज को खरीदना और बेचना दोनों गलत हैं। निधि वन से लेकर हर जगह यह रज है, लोग ऐसे ही ले सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि आप बोरियों में लेकर जाएं, थैली में थोड़ी-सी रज ले जाना पर्याप्त है।

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